यह लेखिका की पहली किताब है और इस किताब से पहले इसका शीर्षक पास खींचता है। यह भले ही पहली किताब हो लेकिन कहीं कोई कच्चापन नहीं है। अनुभव के की आंच पर पकी यह पुस्तक पठनीय है।
समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 30 विद्यार्थियों को देश के प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में प्रतिवर्ष भेजने वाले सुपर-30 की सफलता की कहानी जल्द ही एक किताब के रूप में प्रकाशित होकर लोगों के सामने आएगी। भारतीय मूल के डॉक्टर और मनोचिकित्सक डॉ. बीजू मेथ्यू सुपर-30 की सफलता पर करीब 250 पन्नों और छह से सात अध्याय वाली एक किताब लिख रहे हैं, जो कि लगभग दो से तीन माह में बिक्री के लिए बाजार में आ जाएगी। इसे पेन्गुइन बुक्स और रेंडम हाउस द्वारा प्रकाशित किया जाएगा।
‘किनारे की चट्टान’ काव्य संग्रह के लेखक के अनुसार कविता लिखना जटिल प्रक्रिया है। सच कहूं तो मुझे कविता की सारी टेक्निकल डिटेल का आज भी कोई खास पता नहीं है। बस, मन को जो चीज कचोटती है उसे पन्नों पर उतार लेता हूं और कविता बनने या न बनने का निर्णय पाठकों पर छोड़ देता हूं।’ ये बातें काव्य संग्रह ‘किनारे की चट्टान’ के लेखक पवन चौहान ने अपने काव्य संग्रह में कही हैं।
आत्मकथाएं वैसे भी अलग से रेखांकित की जाती हैं। ऐसे में यदि कोई आत्मकथा स्त्री द्वारा लिखी गई हो, इसके प्रति उत्सुकता बढ़ना स्वाभाविक है। और यदि यह आत्मकथा अध्यापक, आलोचक निर्मला जैन की हो तो जिज्ञासा कहां तक पहुंचेगी यह नापने का कोई पैमाना नहीं है।
कल्पना कीजिए, राशन की सूची बन रही है, तेल, साबुन, नमक, हल्दी, निर्मल वर्मा की लाल टीन की छत। लाल टीन की छत? राशन की सूची में? हां अब तो जहां से राशन आता है वहां से मनपसंद किताबें भी आ सकती हैं।
भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता से पहला कविता संग्रह-दूसरे दिन के लिए प्रथम कृति प्रकाशन माला के अंतर्गत चयनित एवं प्रकाशित। दूसरा कविता संग्रह-पदचाप के साथ बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित। कुछ कहानियां भी।
अनिल कार्की विकल, विकट और अंतहीन छटपटाहटों का कवि है। ये मनुष्यि से आगे एक विचारवान मनुष्या होने की छटपटाहटें हैं, जो उसे समय में आगे-पीछे ले जाती रहती हैं। अनिल के पास विचार है और उसे वह दिमाग के किसी कोने में पस्त नहीं पड़े रहने देता।
दो काव्य-संग्रह, नदी के पार नदी (2002), नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, मैं सड़क हूं (2011), बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित। देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं,आलेख,समीक्षाएं प्रकाशित। कुछ संपादित संग्रहों में कविताओं का चयन। हिंदी समय, (महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा) पर काव्य संग्रह' मैं सड़क हूं' की ई पुस्तक सहित कई कविताएं शामिल। कुछ कहानियां/लघु-कथाएं प्रकाशित। दूरदर्शन/आकाशवाणी से कविताओं/कहानियों का प्रसारण।
‘निर्वासन मर्जी से हो या जबरदस्ती, देश से आप खुद निकलें या निकाले गए हों, इसका दर्द और विसंगत स्थितियों से उत्पन्न दुविधा उसके प्रभाव को एकपक्षीय नहीं रहने देती। किसी अनजान मुल्क की तमीज-तहजीब सीखने और उसकी संस्कृति में रचने-बसने की कोशिश, खासी त्रासदायी होती है। विडंबना और विसंगतियों से भरी।’
राजकमल प्रकाशन से आठ खंडों में प्रकाशित राजकमल चौधरी रचनावली के प्रथम दो खंडों में कविता, तीसरे-चौथे खंड में कथा, पांचवे-छठे खंड में उपन्यास, सातवें खंड में निबंध-नाटक और अंतिम खंड में पत्र-डायरी को शामिल किया गया है।