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Search Result : "प्रो. एके बियानी"

मधुकर मेहेंदले और अमृत सोमेश्वर को मिलेगा साहित्य अकादेमी का भाषा सम्मान

मधुकर मेहेंदले और अमृत सोमेश्वर को मिलेगा साहित्य अकादेमी का भाषा सम्मान

साहित्य अकादेमी, दिल्ली ने अपने महत्वपूर्ण ‘भाषा सम्मान’ के लिए वेद-वेदांगों, महाभारत आदि पुरा महाकाव्यों के विद्वान प्रो. मधुकर अनंत मेहेंदले और डॉ. अमृत सोमेश्वर का चयन किया है। वर्ष 1996 में शुरू हुआ यह सम्मान तीन दशक पूरा कर चुका है।
प्रो कबड्डी की पुरस्कार राशि में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी

प्रो कबड्डी की पुरस्कार राशि में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी

प्रो कबड्डी टूर्नामेंट ने 28 जुलाई से हैदराबाद में शुरू हो रहे सीजन-5 के लिए अपने कुल पुरस्कार राशि में जबरदस्त बढ़ोतरी कर दी है। इस सीजन के लिए कुल इनामी राशि 8 करोड़ रुपये कर दी गई है।
एमसीडी चुनाव से पहले एके वालिया ने दी पार्टी छोड़ने की धमकी

एमसीडी चुनाव से पहले एके वालिया ने दी पार्टी छोड़ने की धमकी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व मंत्री एके वालिया ने एमसीडी चुनाव में टिकट वितरण में कथित अनियमितताओं के चलते पार्टी छोड़ने की धमकी दी है।
प्रो.कुश्ती लीगः साक्षी मलिक पर टिकी है निगाहें

प्रो.कुश्ती लीगः साक्षी मलिक पर टिकी है निगाहें

पहले मैच में बजरंग पूनिया के ब्लॉक होने के बाद जयपुर निंजास के हाथों पराजित होने वाली कलर्स दिल्ली सुल्तांस की टीम अपने दूसरे मैच के लिए तैयार है। इस बार उसके सामने होगी एनसीआर पंजाब की टीम, जो अपना पहला मैच जयपुर से हारने के बाद दूसरे मैच में मुम्बई को हरा चुकी है।
सामाजिक परिवर्तन में हमारी जिम्मेदारियों के मद्देनजर राष्ट्रीय संगोष्ठी नौ दिसंब

सामाजिक परिवर्तन में हमारी जिम्मेदारियों के मद्देनजर राष्ट्रीय संगोष्ठी नौ दिसंब

नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटैट सेंटर के गुलमोहर हॉल में सद्भावना सेवा संस्थान एवं इंटरफेथ फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 9 दिसंबर, गुरुवार को किया जा रहा है। विषय है- ‘सामाजिक-धार्मिक परिदृश्य - सामाजिक परिवर्तन और जिम्मेदारियां।’
‘भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि मजहब को भाषा की जरूरत होती है’

‘भाषा का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि मजहब को भाषा की जरूरत होती है’

उर्दू जबान की तरक्की के लिए फिक्रमंद साहित्यकारों और शिक्षाविदों का मानना है कि इस भाषा को सिर्फ मुसलमानों की जबान के तौर पर पेश कर एक दायरे में सीमित करने की कोशिशें की जा रही हैं जबकि असलियत यह है कि यह पूरे देश में और विभिन्न समुदायों में बोली जाती है और इसके विकास में सभी का अहम योगदान है। इसके अलावा उर्दू और हिंदी छोटी और बड़ी बहने हैं और इनमें आपस में कोई टकराव नहीं है।
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