अभिव्यक्ति की आजादी के लिए यह वर्ष नाटकीय रहा है। यह इंडियाज डॉटर पर सेंसरशिप से लेकर श्रेया सिंघल फैसले के उत्साह और फिर गुपचुप तरीके से इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी को ब्लॉक करने की सरकारी कोशिश के बीच झूलता रहा। हालांकि हर घटना ने अलग-अलग नाराजगी पैदा की मगर सच यही है कि ये सभी जुड़ी हुई हैं। ये सभी अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे को दूर रखने वाले संवैधानिक सुरक्षा उपायों में मौजूद खामियों को बताने वाले चेतावनी संकेत हैं।
आंध्र प्रदेश में पुलिस द्वारा २० लोगों की हत्या और तेलंगाना में पांच लोगों की हिरासत में मौत ने एक बार फिर इस क्षेत्र में कानून के रक्षकों द्वारा ठंडे दिमाग हत्याएं करने की पुराने तरीके को जिंदा किया है।