एक लंबे चौड़े डिस्क्लेमर के बाद बस पांच मिनट में ही दर्शकों को पता चल जाता है कि दरअसल असली "इंदू सरकार" कौन है। लचर नरैशन, उससे भी ढीली पटकथा और अपने पात्र को स्थापित करने के लिए ही मधुर भंडारकर आधा घंटा लेते हैं। मधुर ने फिल्म ऐसे बनाई है जैसे आपातकाल आज लगा हो और उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है। वरना सावधानी हटी और दुर्घटना घटी जैसा कुछ होगा और वह सीधे तिहाड़ दर्शन कर लेंगे।
अपकमिंग फिल्म 'इंदु सरकार' पर बढ़ते विवाद को देखते हुए मुंबई पुलिस ने डायरेक्टर मधुर भंडारकर को विशेष सुरक्षा मुहैया कराई है। इस फिल्म को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ता विरोध जता रहे हैं।
निर्देशक मधुर भंडारकर की अपकमिंग फिल्मक 'इंदु सरकार' का ट्रेलर रिलीज हो गया है और जब से यह ट्रेलर लॉन्च हुआ उसके बाद से ही इस फिल्म को कांग्रेस की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है।
क्या इंदु सरकार फिल्म रीलिज होने का यह सबसे मुफीद वक्त है। फिल्म और राजनीति का रिश्ता पुराना है। राजनैतिक घटनाओं पर फिल्में बनती रही हैं और फिल्मी संवादों को बहुत बार संसद में दोहराया गया है। फिल्म का ट्रेलर देख कर लग रहा है कि कांग्रेस की सबसे सशक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कई ऐतिहासिक फैसलों और कामों को छोड़कर सिर्फ आपातकाल के मुद्दे को दिखाना कहीं फिल्मों के जरिए राजनैतिक फायदा उठाना तो नहीं है। अब तक इस ट्रेलर को देख कर चुप्पी भी बहुत सी कहानियों को जन्म दे रही है।
मधुर भंडारकर से सन 2004 से अदावत कर रहीं मॉडल प्रीति जैन को एक सेशन कोर्ट ने निर्देशक मधुर भंडारकर को मारने की साजिश रचने का दोषी मानने के बाद सजा दी है।
जैसे ही पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कारों की घोषणा हुई वैसे ही सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं। खासकर फिल्म अभिनेता अनुपम खेर को पद्म भूषण दिए जाने पर सोशल मीडिया पर उन्हें आड़े हाथों लिया जा रहा है। बीते महीनों में जब दादरी कांड और असहिष्णुता वाले मुद्दे पर अवॉर्ड वापसी अभियान चल रहा था तो अनुपम खेर के नेतृत्व में दिल्ली में इस अभियान के खिलाफ एक मार्च निकाला गया था। खेर ने देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में अवॉर्ड लौटाए जाने की मुहिम को गलत बताया था। हालांकि आज खेर ने पद्म भूषण के लिए चुने जाने को जिंदगी की सबसे बड़ी खबर बताया।
महिला केंद्रित फिल्में बनाने के लिए पहचाने जाने वाले निर्देशक मधुर भंडारकर का मानना है कि अब भी ऐसे बहुत से मुद्दे हैं, जिन्हें फिल्मों के जरिये उठाया जाना बाकी है।