Advertisement

Search Result : "रजा अकादमी"

रुबी के रौब के पीछे क्या है राज

रुबी के रौब के पीछे क्या है राज

मसूरी स्थित आईएएस प्रशिक्षण अकादमी में फर्जी महिला आईएएस के मामले में एक रहस्य गहराता जा रहा है कि आखिर रूबी चौधरी की इतनी हेकड़ी के पीछे कौन है।
आइएएस प्रशिक्षण अकादमी की सुरक्षा सवालों के घेरे में

आइएएस प्रशिक्षण अकादमी की सुरक्षा सवालों के घेरे में

मसूरी ‌स्थित आइएएस प्रशिक्षण अकादमी में फर्जी प्रशिक्षु के नाम पर रह रही महिला का मामला उजागर होने के बाद सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। क्योंकि एक महिला छह महीने से इस अकादमी में फर्जी कार्ड बनाकर रह रही थी लेकिन किसी को खबर तक नहीं लगी।
कला संस्थाओं का बजट घटाया

कला संस्थाओं का बजट घटाया

नए बजट में कला संस्थाओं के बजट में कटौती हो गई है। सरकार को लगता है कि कलाकारों को पैसों की कुछ खास जरूरत नहीं होती। वे कला को ही ओढ़-बिछा कर अपना जीवन यापन कर सकते हैं।
सांस्कृतिक दूत होते हैं कलाकार-सेन

सांस्कृतिक दूत होते हैं कलाकार-सेन

भारत सरकार की ओर से नाटककार, गायक, संगीतकार और अभिनेता शेखर सेन को इस वर्ष पद्मश्री से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गई है। हाल ही में, उन्हें संगीत नाटक अकादेमी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। उनके पास अकादमी के लिए कई योजनाएं हैं। प्रबंधन के अलावा उनके प्रशंसक उन्हें 'कबीर’ के तौर पर जानते हैं। कबीर उनकी एकल नाट्य प्रस्तुति है, जो दर्शकों के बीच खासी लोकप्रिय है।
खाक हो चुकी नौका पर विवाद जारी

खाक हो चुकी नौका पर विवाद जारी

पाकिस्तान की तरफ से 31 दिसंबर 2014 की रात भारतीय सीमा में प्रवेश करने वाली रहस्यमय नौका को लेकर नौसेना अधिकारियों और भारत सरकार के विवादास्पद बयानों से रहस्य और गहराता जा रहा है।
शांति के पासे फेंकने की जरूरत

शांति के पासे फेंकने की जरूरत

निर्मला देशपांडे की पाकिस्तान में बरसी से उठी ये सदाएं मनमोहन सिंह पहुंची या यह उनकी अंत: प्रेरणा थी अथवा अमेरिकी उत्प्रेरणा, जैसा कि कुछ लोग विश्‍वास करना चाहते हैं, शर्म अल शेख के संयुक्त वक्तव्य में ब्लूचिस्तान के जिक्र के लिए राजी होकर और भारत-पाक समग्र वार्ता के लिए भारत में आतंकवादी हमले रोकने की पूर्व शर्त को ढीला करके भारतीय प्रधानमंत्री ने शांति के लिए एक जुआ खेला है। मुंबई हमले के बाद दबाव की कूटनीति से भारत को जो हासिल होना था वह हो चुका और पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकतंत्र के खिलाफ अपेक्षया गंभीर कार्रवाई के लिए बाध्य होना पड़ा। दबाव की कूटनीति की एक सीमा होती है और विनाशकारी परमाणु युद्ध कोई विकल्प नहीं हैं। इसलिए वार्ता की कूटनीति के लिए जमीन तैयार करने की जरूरत थी। ब्लूचिस्तान के जिक्र को भी थोड़ा अलग ढंग से देखना चाहिए।
Advertisement
Advertisement
Advertisement