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Search Result : "लखीमपुर हिंसा. लखीमपुर खीरी हिंसा कांड"

फेसबुक की नई गाइडलाइंस क्यों

फेसबुक की नई गाइडलाइंस क्यों

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने अपनी नई कम्यूनिटी गाइडलाइंस जारी की है। इन गाइडलाइंस के मुताबिक घोषित तौर पर अस्वीकृत सामाजिक व्यवहार पर अंकुश लगाने की तैयारी है। इनमें नग्नता, हिंसा, नफरत फैलाने वाले संदेशों और विवादास्पद मुद्दों पर रोक लगाने की बात कही गई है। लेकिन फेसबुक ने ये गाइडलाइंस दुनियाभर के सत्ता प्रतिष्ठानों की तरफ से पड़ने वाले दबावों के बाद जारी की हैं। इनका खतरा यह है कि विभिन्न सरकारें जिन संदेशों को अपने हित में नहीं पाएंगी उनको रोकने की कोशिश कर सकती हैं।
स्नूपगेट की रोशनी में राहुल जासूसी कांड

स्नूपगेट की रोशनी में राहुल जासूसी कांड

दिल्ली पुलिस द्वारा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के कार्यालय में जिस तरह से पूछताछ की गई उससे स्नूपगेट कांड की याद ताजा हो गई। भले ही दिल्ली पुलिस यह कह रही हो कि यह रुटीन में की गई पूछताछ है लेकिन जिस तरह से पूछताछ की गई उसके कई पहलुओं पर गौर करने की जरुरत है।
हिंसा का राजमार्ग

हिंसा का राजमार्ग

नई फिल्म एनएच 10 की हिंसा प्रतिरोध की नहीं प्रतिशोध की हिंसा है। निर्देशक नवदीप सिंह ने मूल कहानी को पृष्ठभूमि में रख कर उस कहानी के बहाने कई बातें साधने की कोशिश की है। यह प्रयोग नया तो नहीं है पर हाल के सिनेमा में सीधी-सीधी बातें कह देने से अलग जरूर है।
कॉरपोरेट जासूसी कांड- और होंगी गिरफ्तारियां

कॉरपोरेट जासूसी कांड- और होंगी गिरफ्तारियां

सनसनीखेज कॉरपारेट जासूसी कांड में १२ गिरफ्तारियों के बाद पुलिस को भरोसा है कि अभी और लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता है। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि मामले की तह तक जाने के लिए और लोगों को‌ गिरफ्तार किया जा सकता है या फिर पूछताछ की जा सकती है।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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