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सुजेट जॉर्डन: जिंदादिल की ख्वाहिशों की मौत

सुजेट जॉर्डन: जिंदादिल की ख्वाहिशों की मौत

यह एक ब्रांड की तरह ऐसी छवि बनाता है जिससे मुक्त हो पाना लगभग असंभव है। भारत में तो इससे बाहर निकल पाना और भी मुश्किल है क्योंकि यहां हर पड़ोसी के पास खास निगाहें, कान और जुबान है। जहां देखने वाले रात में खिड़की के पर्दों के पीछे से इंतज़ार करते हैं कि कौन कब घर लौटता है। कौन किससे मिलने आ रहा है। ख़ास तौर पर तब जब घर में कोई दूसरा न हो। बलात्कार की पीड़ा भोग चुके लोग खास तौर पर इसे जानते हैं क्योंकि यह जो भी सकारात्मक या रचनात्मक है उस पर धब्बा लगा देता है। सार्वजनिक कामों में इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। अगर ‘पार्क स्ट्रीट बलात्कार पीड़ित’ की बात की जाए तो तब वह एक जीवंत पार्टीपसंद लड़की थी, जिसे नाइटक्लब पसंद थे। उसने एक छोड़ी की भूल की जिसने उसकी सारी ज़िंदगी बदल दी। वैसे भी जीवंत पार्टीपसंद लड़कियां आधी रात के आसपास सबके निशाने पर होती हैं। ख़ास तौर पर तब संदेहास्पद पहचान वाले शिकारी घूमते रहते हैं।
पंजाबी फिल्म द ब्लड स्ट्रीट सेंसर बोर्ड में अटकी

पंजाबी फिल्म द ब्लड स्ट्रीट सेंसर बोर्ड में अटकी

पंजाबी फिल्म द ब्लड स्ट्रीट को सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र न मिलने के कारण यह फिल्म भारत में रिलीज नहीं हो पा रही है। इससे पहले कौम दे हीरे भी ऐसी स्थिति झेल चुकी है। ज्यादा तर पंजाबी फिल्मों की पृष्ठभूमि 84 के दंगे या उसके बाद की स्थितियों पर ही बन रही हैं।
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