राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय निशानेबाज अपूर्वी चंदेला ने शनिवार को कोरिया के चांगवोन में चल रहे आईएसएसएफ विश्व कप की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर अगले साल होने वाले ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया।
भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह सीआरपीएफ के एक कार्यक्रम में लिफ्ट में फंस गए। वह वहां लगभग 5 मिनट फंसे रहे। इसके बाद अलार्म बजाने पर उन्हें बाहर निकाला गया। इसे देश के गृहमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक माना जा रहा है।
बायें हाथ के तेज गेंदबाजों की त्रिमूर्ति की कहर बरपाती गेंदबाजी और अपना आखिरी वनडे खेल रहे कप्तान माइकल क्लार्क के दर्शनीय अर्धशतक से ऑस्ट्रेलिया ने आज यहां न्यूजीलैंड को 101 गेंद शेष रहते हुए तीन विकेट से करारी शिकस्त देकर पांचवीं बार आइसीसी क्रिकेट विश्व कप जीता।
सीएनएन आईबीएन के पुरस्कार समारोह में चेतन भगत को मनोरंजन श्रेणी में पुरस्कार दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार टू स्टे्स, किक की पटकथा लिखने, एक नए चैनल पर 7 रेसकोर्स नाम की श्रृंखला और हाफ गर्ल फ्रैंड की सफलता के लिए दिया गया।
नोबल पुरस्कार विजेता और नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति अमर्त्य सेन ने गहरी पीड़ा से लिखे पत्र में इस बात का खुलासा किया है कि केंद्र सरकार उन्हें इस विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर दूसरी पारी नहीं देने की इच्छुक है। इस पत्र के बाद से आकादमिक जगत में बढ़ती राजनीतिक दखलंदाजी पर तीखी चर्चा शुरू हो गई है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की प्रचंड लहर में भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर झाड़ू फिर गया। आप ने 70 में से 67 सीट जीतकर ऐतिहासिक जीत हासिल की। ऐसे हालात में भाजपा के तीन उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब रहे।
राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।