भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने शुक्रवार से अपनी संसदीय पारी की शुरुआत कर दी है। आज उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता ग्रहण की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्राचीन दार्शनिक चार्वाक की उक्ति, कवि काका हाथरसी की कविता और संस्कृत के श्लोकों के माध्यम से कांग्रेस पर तंज कसा और विपक्षी पार्टी की नीयत में खोट होने का आरोप लगाते हुए कहा कि कोई भी बड़ा काम करने के लिए पुरूषार्थ चाहिए जो वर्तमान सरकार में है।
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अयोध्या मुद्दा जहां फिर सुर्खियों में है, वहीं एक पूर्व आईपीएस अधिकारी द्वारा लिखी गई किताब में दावा किया गया है कि अयोध्या में राम मंदिर बाबर के शासनकाल के दौरान नहीं, बल्कि औरंगजेब के शासनकाल में तोड़ा गया था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े एक संगठन ने शिक्षा नीति में बदलाव कर संस्कृत या अन्य शास्त्रीय भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, लैटिन और ग्रीक को कम से कम चार वर्ष तक स्कूली शिक्षा में अनिवार्य बनाने की सलाह दी है।
दूरदर्शन द्वारा संस्कृत-समाचार प्रसारण की अवधि बढ़ाने के निर्णय पर कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि संस्कृत मोदी सरकार के एजेंडे में है। इस निर्णय का निहितार्थ भी आसानी से समझ में आने वाला है, इसलिए इस पर सवाल भी उठेंगे ही। इस ऐलान के बाद लोगों के जेहन में सबसे पहला सवाल तो यह है कि संस्कृत में न्यूज बुलेटिनों और समाचार-चर्चा के कार्यक्रमों का दर्शक या श्रोता वर्ग कौन है? दूसरा सवाल यह है कि देश में कितने लोग ऐसे होंगे जो वास्तव में संस्कृत माध्यमों से इन कार्यक्रमों की बाट जोह रहे हैं? ये महज शोशा है या इसकी कोई ठोस जरूरत है?