राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े एक संगठन ने शिक्षा नीति में बदलाव कर संस्कृत या अन्य शास्त्रीय भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, लैटिन और ग्रीक को कम से कम चार वर्ष तक स्कूली शिक्षा में अनिवार्य बनाने की सलाह दी है।
दूरदर्शन द्वारा संस्कृत-समाचार प्रसारण की अवधि बढ़ाने के निर्णय पर कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि संस्कृत मोदी सरकार के एजेंडे में है। इस निर्णय का निहितार्थ भी आसानी से समझ में आने वाला है, इसलिए इस पर सवाल भी उठेंगे ही। इस ऐलान के बाद लोगों के जेहन में सबसे पहला सवाल तो यह है कि संस्कृत में न्यूज बुलेटिनों और समाचार-चर्चा के कार्यक्रमों का दर्शक या श्रोता वर्ग कौन है? दूसरा सवाल यह है कि देश में कितने लोग ऐसे होंगे जो वास्तव में संस्कृत माध्यमों से इन कार्यक्रमों की बाट जोह रहे हैं? ये महज शोशा है या इसकी कोई ठोस जरूरत है?
बुंदेलखण्ड के महोबा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना की मांग को पुरजोर तरीके से उठाने के लिए इस क्षेत्र मुसलमानों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संस्कृत में पत्र लिखने की मुहिम शुरू की है।
उपाध्याय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्याल में प्राध्यापक हैं। अध्यापन से पहले वह प्रखर पत्रकार रह चुके हैं। अमर उजाला और हिंदुस्तान अखबार में काम करते हुए उन्होंने रिपोर्टिंग के क्षेत्र में जो भी विविधताएं महसूस कीं उन्हें बाद में कविता में ढाला। उनकी खबरों की समझ और कविता की संवेदना मिल कर जो काव्य पैदा करती है, वह कविता को नई भाषा देती है।
भारत के सरकारी स्कूलों में जर्मन भाषा की जगह संस्कृत को लाए जाने पर उठे विवाद की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार रात कहा कि भारत की धर्मनिरपेक्षता इतनी कमजोर नहीं है कि यह एक भाषा की वजह से हिल जाएगी।