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सुप्रीम कोर्ट और सरकार बड़े टकराव की ओर

सुप्रीम कोर्ट और सरकार बड़े टकराव की ओर

बीते हफ्ते सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय खंड पीठ के सामने जिस तरह सरकार और पीठ के बीच तीखे शब्दों का आदान-प्रदान हुआ, उसे देखते हुए अब तक फुसफुसाए जा रहे कुछ सवाल थोड़ा ज्यादा जोर से सुनाई पडऩे लग गए हैं। क्या कार्यपालिका और न्यायपालिका एक बड़े टकराव की ओर बढ़ रही हैं? क्या संसद ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) विधेयक पारित करने में हड़बड़ी दिखाई ?
दाऊद प्रकरण में संसद में बयान दूंगा: गृहमंत्री

दाऊद प्रकरण में संसद में बयान दूंगा: गृहमंत्री

माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम को लेकर केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पर लगातार हमलों के बीच गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि वह जल्द ही इस सिलसिले में संसद में बयान देंगे।
एक साल में इस सरकार के पास दिखाने को कुछ नहीं: सोनिया

एक साल में इस सरकार के पास दिखाने को कुछ नहीं: सोनिया

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र भी भाजपा नीत एनडीए सरकार पर जमकर हमला बोला है। लोकसभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी कड़ी आलोचना की।
कालाधन बिल पर अगले सप्ताह संसद में चर्चा: जेटली

कालाधन बिल पर अगले सप्ताह संसद में चर्चा: जेटली

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को कहा कि सरकार कालाधन विधेयक पर संसद में अगले सप्ताह बहस कराएगी। इस विधेयक का उद्देश्य भारतीयों द्वारा विदेशों में जमा कराए गए कालेधन और संपत्तियों की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटना है।
शिशिर की शर्वरी हिंस्र पशुओं भरी

शिशिर की शर्वरी हिंस्र पशुओं भरी

बढ़ती कन्या भ्रूण हत्या के अलावा आउटलुक के अस्तित्व के इन 12 वर्षों में भारतीय समाज की दूसरी हिंसा कृषि संकट और बढ़ते शहरीकरण के प्रसंग में दिखती है। सन 2001 के पूर्ववर्ती दशक में शहरी आबादी 6.18 करोड़ बढ़ी थी जो 2001 से 2011 के बीच 9.1 करोड़ बढ़ी। ग्रामीण आबाद 2001 के पूर्ववर्ती दशक में 11.3 करोड़ बढ़ी थी लेकिन 2001 से 2011 के बीच यह सिर्फ 9.06 करोड़ बढ़ी। यानी शहरी आबादी वृद्धि दर के मुकाबले ग्रामीण आबादी वृद्धि दर कम हुई। यानी आजीविका के अभाव में या विभिन्न परियोजनाओं के चलते बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी उजडक़र शहरों में आई। यह तर्क दिया जा सकता है कि विकास के कारण ग्रामीण आबादी की गतिशीलता बढ़ी और वह शहरों में बेहतर अवसर तलाशने आई इसलिए इसे आपदा-पलायन नहीं कह सकते। लेकिन इस दौरान शहरों में भी संगठित रोजगार घटा यानी गांवों से शहरों में होने वाला आव्रजन आपदा-पलायन ही था। यही कृषि संकट का भी दौर रहा जब देश में बड़े पैमाने पर किसानों ने आत्महत्या की।
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