मां-बाप के द्वारा 'बच्चे का भविष्य' संवारने के उद्देश्य से उन्हें स्कूल भेजा जाना, फिर उस बच्चे का कभी न लौटकर आना या कुछ ऐसे घाव साथ लेकर आना जिससे उबरने में शायद जिंदगी बीत जाए। ऐसे मां-बाप पर क्या गुजरेगी?
चंडीगढ़ के सरकारी स्कूल से 12वीं के छात्र हर्षित शर्मा को गूगल में नौकरी मिलने का झूठा दावा पहला नहीं है। पहले भी ऐसे मामले आ चुके हैं और इससे भारत की विश्वसनीयता को वैश्विक स्तर पर झटका लगता है।
रिमझिम गिरे सावन,मेरे नैना सावन भादों, ओ मेरे दिल के चैन, करवटें बदलते रहे, तुझसे नाराज नही जिंदगी, तुम आ गए हो नूर आ गया है या यम्मा-यम्मा या जय-जय - शिवशंकर जैसे थिरकने वाले गीत, पर शायद ही कभी जानने की कोशिश की हो, कि आखिर कौन था वो चितेरा जिसने ऐसा कालजयी संगीत दिया।
फिल्म निर्देशक नंदिता दास की एक चिट्ठी खूब पढ़ी जा रही है। फेसबुक पर उन्होंने जाने माने लेखक सआदत हसन 'मंटो' की याद में एक चिट्ठी पोस्ट की है जिसकी लोगों द्वारा खूब सराहना की जा रहा है।
रोमांटिक शैली पसंद करने के कारण ही यामी गौतम ने प्रेम कहानी पर आधारित ‘सनम रे’ और उसके बाद आगामी फिल्म ‘जुनूनियत’ में काम किया। यामी ने कहा, मेरे किरदार ने मुझे बहुत आकर्षित किया क्योंकि ये मेरी पिछली फिल्मों से बहुत अलग है।
लघु कहानियां लिखने वाले मशहूर किस्सागो सआदत हसन मंटो की कहानियों का संग्रह का अब अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध है। युनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन मेडिसन में उर्दू साहित्य और इस्लामी अध्ययन के मानद प्रोफेसर मुहम्मद उमर मेमन ने इस संग्रह का अनुवाद किया है। इसे माई नेम इज राधा : द एसेंशियल मंटो नाम से प्रकाशित किया गया है जो हिंदी या उर्दू न समझ पाने वाले पाठकों को मंटो की दुनिया में ले जाएगी
नंदिता दास यूं तो पहले भी दो बार जूरी के सदस्य के रूप में कान फिल्मोत्सव में शिरकत कर चुकी हैं। लेकिन इस बार वह फिल्में देखने या रेड कारपेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बजाय कुछ खास काम ले कर गई हैं।
मिसरा बेशक यह साहिर लुधियानवी के गीत का है लेकिन अफसानानिगार सआदत हसन मंटो पर सटीक बैठता है। ताउम्र ढोंग, तमाशे और साहित्य की राजनीति से दूर रहने वाले मंटो ने कहा था- ‘ हर शहर में बदरौएं और मोरियां मौजूद हैं जो शहर की गंदगी को बाहर ले जाती हैं। हम अगर अपने मरमरी गुसलखानों की बात कर सकते हैं, अगर हम साबुन और लैवेंडर का जिक्रकर सकते हैं तो उन मोरियों और बदरौओं का जिक्र क्यों नहीं कर सकते जो हमारे बदन की मैल पीती हैं।‘ मंटो की 100वीं जन्मशताब्दी से लेकर आज तक उनके नाम पर उनके तथाकथित मुरीदों ने राजनीति, तमाशा और ढोंग ही किया है। मंटो के इन मुरीदों को वह सब चाहिए जो मंटो को नहीं चाहिए था। मंटो के माएने तो यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।