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साहित्य को लेकर हम लापरवाह - उदयन वाजपेयी

साहित्य को लेकर हम लापरवाह - उदयन वाजपेयी

साहित्यिक पत्रिका समास के संपादक और साहित्यकार उदयन वाजपेयी अपनी कहानियों से ज्यादा उनके द्वारा लिए गए विभिन्न हस्तियों के साक्षात्कार के लिए पहचाने जाते हैं। कई साहित्यिक पत्रिकाओं के बीच समास का अलग तेवर है। स्थानीय पुट के साथ-साथ इसमें राष्ट्रीयता का दखल भी इसमें कम नहीं होता। साहित्यिक पत्रिकाओं की कमी और इस दुनिया के बदलते तेवर पर उन्होंने कई पहलुओं पर अपनी बात साझा की।
यूनान संकट: भारत और दुनिया के लिए सबक

यूनान संकट: भारत और दुनिया के लिए सबक

जहां तक यूनान के मौजूदा संकट का सवाल है, इससे जुड़े मजाक की भी अपनी-अपनी विचारधाराएं हैं। एक प्रचलित चुटकुले का पूंजीवादी संस्करण इस प्रकार है। डच होने की पहचान यह है कि एक रेस्तरां में एक टेबल पर साथ में खाना खाए लोग मिलकर बिल का भुगतान करते हैं जबकि ग्रीक होने का मतलब है खाना खा लेने और शराब पी लेने के बाद जब सभी उठते हैं तो पता चलता है कि बिल देने के लिए किसी के पास पैसे नहीं हैं। इसी लतीफे का समाजवादी संस्करण यह है कि जिन लोगों ने खाने का आर्डर दिया है उन्हें पता चलता है कि उनका खाना रेस्‍तरां का मालिक खा गया और अब बिल उनको भरना है।
रिलायंस जियो को हजारों करोड़ रुपये का अनुचित लाभ

रिलायंस जियो को हजारों करोड़ रुपये का अनुचित लाभ

संसद में पेश सीएजी (कैग) की ड्राफ्ट रिपोर्ट में पहले 22,842 करोड़ रुपये का रिलायंस जियो को 'अनुचित लाभ’ देने की बात कही गई मगर फाइनल रिपोर्ट में आश्चर्यजनक रूप से यह रकम घटकर 3,367 करोड़ रुपये हो गई। दिलचस्प यह है कि आरबी सिन्‍हा, जिनकी निगरानी में ये ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार हुई, उनका इसी महीने तबादला हो गया।
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