2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म मुजफ्फरनगर बाकी है काफी चर्चा में रही है। यह फिल्म दंगे के दौरान के हालात और वहां के स्थानीय लोगों की भावनाओं का बखूबी इजहार करती है। फिल्म के जरिये उन तत्वों की तरफ इशारा किया गया है जो मुजफ्फरनगर के हालात के जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि इस फिल्म का प्रदर्शन कई संगठनों के गले नहीं उतर रहा है। कई बार फिल्म के प्रदर्शन को बलपूर्वक रोकने की कोशिश की गई। ऐसे ही दमनकारी आक्रमणों के प्रतिरोध में फिल्म की टीम और अन्य कई संगठनों ने मिलकर एक ही दिन पूरे देश में फिल्म का प्रदर्शन किया।
मुंबई की लाइफ लाइन लोकल में सफर करना कितना मुश्किलों भरा रहता है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। सैकड़ों लटके हुए यात्रियों को देख कर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन ट्रेन से सफर करने से पहले टिकट खरीदने के लिए भी कम ‘सफर’ नहीं करना पड़ता।
संजीव श्रीवास्तव पेशे से टीवी पत्रकार हैं। उनकी एक पुस्तक - समय, सिनेमा और इतिहास भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से प्रकाशित है। संजीव की कविताओं में धर्म, राजनीति और इस सबके बीच पिसती मनुष्यता का ऐसा विवरण है जो किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है।
प्रेम रतन धन पायो, बजरंगी भाईजान, शुद्धि, दबंग 3, पार्टनर 2, सुल्तान, नो एंट्री में एंट्री, शेरखान, इन सभी नामों में एक चीज आम है और वह हैं सलमान खान। इन सभी फिल्मों के निर्माताओं ने सलमान खान के नाम पर पैसा लगाया या लगाने वाले हैं और अब अगर सलमान खान जेल चले गए तो जाहिर है कि ये फिल्मे लटक जाएंगी।