हर व्यक्ति का अपना एक अतीत होता है। बल्कि कहना गलत न होगा कि हमारा वर्तमान हमारे अतीत की नींव पर टिका होता है। ऐसे में अगर हमारे भीतर से अतीत विस्मृत हो जाए तो हमारा पूरा वजूद डावांडोल होने लगता है। हम अपनी पहचान के संकट से आक्रांत हो उठते हैं। ऐसे में किसी संवेदनशील व्यक्ति का अपने अतीत की तहों में उतरकर स्मृतियों के रेशे तलाशना स्वाभाविक है।
3 जून 1944 को नजीबाबाद, जिला बिजनौर में जन्म। लहरों का संघर्ष लघुकथा संग्रह। स्वप्न भंग, टूटते संवाद कहानी संग्रह। नारी - तन मन गिरवी, कब तक (नारी विमर्श), सफाई का नरक (दलित विमर्श) और अंधेरे में रोशनी (दलित संघर्ष) पर निबंध संग्रह। कई पुरस्कारों से सम्मानित।