गुजरात हाईकोर्ट ने अारक्षण पर गुजरात सरकार को एक बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने आनंदी बेन सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें उन्होंने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया था। सरकार ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का अध्यादेश जारी किया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। अदालत ने इस याचिका के आधार पर सरकार के फैसले पर रोक लगा दी।
गोवा में महिला सशक्तीकरण की दिशा में सकारात्मक संकेत देखने को मिला है। दरअसल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण :एनएफएचएस: में यह पाया गया है कि राज्य में 93.8 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी घर के फैसलों में होती है। एनएफएचएस आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 का एक हिस्सा है जिसे यहां चल रहे राज्य विधानसभा सत्र के दौरान पेश किया गया। हालिया सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि पिछले दशक से इस बार घर के फैसले लेने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।
कहते हैं औरत का मन कोई नहीं जान सकता। उसके दिल के जज्बातों को जब तक वह खुद अपनी जुबान से न कहे, अंदाजा लगाना मुश्किल है। इसके उलट, औरत सहजता से इस बात का अंदाजा लगा लेती है कि उसके सामने आए शख्स के दिल में उसको लेकर क्या चल रहा है और पाया भी यही जाता है कि ज्यादातर मामलों में औरत का अनुमान एक दम सही और सटीक होता है।
कर्नाटक के प्रतिभावान सलामी बल्लेबाज लोकेश राहुल को खुशी है कि नये मुख्य कोच अनिल कुंबले ने राष्ट्रीय टीम के सदस्यों को अधिकार देने का फैसला किया है जिससे कि वे अपने फैसले स्वयं कर सकें।
दिल्ली सरकार ने आज एक अहम् फैसला लेते हुए राज्य के स्कूलों में मैनेजमेंट कोटा पूरी तरह से खत्म कर दिया। आम आदमी पार्टी की सरकार के इस फैसले से हर साल दिल्ली के स्कूलों का चक्कर लगाने वाले हजारों अभिभावकों को काफी राहत मिलेगी।
जापानी अपराध कथा लेखक कीगो हिगाशिमो के उपन्यास, द डिवोशन ऑफ सस्पेक्ट एक्स पर मलयालम में एक फिल्म बनी, दृश्यम। मोहनलाल अभिनीत यह फिल्म खूब चली। अब यही फिल्म हिंदी में दर्शकों के लिए हाजिर है।
हिंदी में सिनेमा के इतिहास पर सबसे नई पुस्तक है - समय, सिनेमा और इतिहास। हिंदी सिनेमा के सौ साल पूरे होने पर जश्न तो कई हुए, अखबारों, पत्रिकाओं में कई अहम विशेषांक भी निकले लेकिन पुस्तक के रूप में बॉलीवुड के इतिहास को नए तरीके से समेटने का काम कम हुआ। कुछ देर से ही सही, लेकिन संजीव श्रीवास्तव की यह पुस्तक इस मायने में काफी सराहनीय है। पुस्तक में शामिल सौ साल से अधिक के हिंदी सिनेमा की बड़ी तस्वीरें, व्यक्ति और समाज की अनुभूति और अभिव्यक्ति की बहुरंगी भाव-भंगिमाओं को विविघता से संजोए हुए हैं। यहां व्यावसायिकता की चकाचौंध है, तो कला की प्रांजलता भी। बाजार के दबाव और समझौते की कहानियां हैं तो प्रतिबद सामाजिक सरोकार के नजीर भी हैं।