प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की दूसरी पुण्यतिथि पर तमिलनाडु के रामेश्वरम में एपीजे अब्दुल कलाम स्मारक का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम ने डॉ. कलाम के परिजनों से मुलाकात की।
शिवसेना के नेता और उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि जब महात्मा गांधी के लिए स्मारक बन सकता है तो फिर बाला साहब के लिए क्यों नहीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मुंबई के तट के पास 3600 करोड़ रुपये में तैयार होने वाले शिवाजी महाराज स्मारक का शिलान्यास किया। भव्य स्मारक के लिए यह कार्यक्रम नगर निकाय चुनावों के कुछ महीने पहले ऐसे समय आयोजित हुआ जब 17वीं सदी के महान शासक की विरासत पर दावा करने के लिए राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष जारी है।
‘वो स्वाइप करके उतर गई मेरे दिल में’ सुदीप नगरकर के अंग्रेजी उपन्यास नॉवेल ‘शी स्वाइप्ड राइट इनटू माय हार्ट’ का हिंदी अनुवाद है। नगरकर पहले से ही रोमांटिक नॉवेल्स के कारण जाने-पहचाने नाम बन चुके हैं। ये नॉवेल भी प्रेम कहानी है जो दोस्ती की चाशनी में भीगी हुई है।
पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी में बैठक का सिलसिला चल रहा था। पहले सभी संगठन मंत्रियों, महासचिवों की बैठक के बाद भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई। मुख्यमंत्रियों की बैठक में बैठक की चर्चा के ज्यादा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अनुपस्थिति की चर्चा रही।
बचपन सभी का सुनहरा होता है। इसी बचपन की यादों का पिटारा जब शब्दों में सहेज लिया जाता है तो किताब बन जाता है। ऐसी ही एक किताब है आर के नारायण की। उनके बचपन के संस्मरणों पर आधारित इस किताब का नाम है, मेरी जीवन गाथा।
कहते हैं औरत का मन कोई नहीं जान सकता। उसके दिल के जज्बातों को जब तक वह खुद अपनी जुबान से न कहे, अंदाजा लगाना मुश्किल है। इसके उलट, औरत सहजता से इस बात का अंदाजा लगा लेती है कि उसके सामने आए शख्स के दिल में उसको लेकर क्या चल रहा है और पाया भी यही जाता है कि ज्यादातर मामलों में औरत का अनुमान एक दम सही और सटीक होता है।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को क्रियांवित करने के लिए केंद्र सरकार ने मंगलवार को अधिसूचना जारी कर दिया। अधिसूचना जारी हो जाने से केंद्रीय कर्मचारियों-अधिकारियों को अगस्त माह से ही बढ़ा हुआ वेतन मिलने की संभावना है।
हर व्यक्ति का अपना एक अतीत होता है। बल्कि कहना गलत न होगा कि हमारा वर्तमान हमारे अतीत की नींव पर टिका होता है। ऐसे में अगर हमारे भीतर से अतीत विस्मृत हो जाए तो हमारा पूरा वजूद डावांडोल होने लगता है। हम अपनी पहचान के संकट से आक्रांत हो उठते हैं। ऐसे में किसी संवेदनशील व्यक्ति का अपने अतीत की तहों में उतरकर स्मृतियों के रेशे तलाशना स्वाभाविक है।