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नोटबंदी से पेटीएम की बल्ले बल्ले, दैनिक खरीद का आंकड़ा 120 करोड़ रुपये पहुंचा

नोटबंदी से पेटीएम की बल्ले बल्ले, दैनिक खरीद का आंकड़ा 120 करोड़ रुपये पहुंचा

नोटबंदी के बाद लोगों के गैर-नकदी लेन-देन की ओर रूख करने के चलते डिजिटल मोबाइल भुगतान सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी पेटीएम से रोजाना 70 लाख सौदे होने लगे हैं जिनका मूल्य करीब 120 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
दिनेश त्रिवेदी एवं केडी सिंह की संसदीय स्थाई समिति से छुट्टी तय

दिनेश त्रिवेदी एवं केडी सिंह की संसदीय स्थाई समिति से छुट्टी तय

तृणमूल कांग्रेस अपने दो सांसदों को संसदीय स्थाई समिति से हटवाने जा रही है। तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के निर्देश पर राज्यसभा के सदस्य केडी सिंह और लोकसभा के सदस्य दिनेश त्रिवेदी को संसदीय समितियों से हटाने की सिफारिश करते हुए राज्यसभा अध्यक्ष एवं लोकसभा स्पीकर को पार्टी की तरफ से चिट्ठियां भेजी गई हैं। अगले एक महीने में विभिन्न संसदीय स्थाई समितियों की मियाद खत्म होने वाली हैं। इन समितियों का पुनर्गठन होना है।
दिनेश त्रिवेदी का तृणमूल में फिर विस्फोट

दिनेश त्रिवेदी का तृणमूल में फिर विस्फोट

सीडी कांड में तृणमूल कांग्रेस के जिन नेताओं पर आरोप लगे हैं, उन्हें साथ लेकर चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी घूम रही हैं। वे यह संकेत दे रही हैं कि ये लोग बेदाग हैं और सीडी कांड साजिश है। दूसरी ओर, उनकी ही पार्टी के सांसद दिनेश त्रिवेदी इस मसले पर बगावत का झंडा उठाने की तैयारी कर रहे हैं। जिन नेताओं पर दाग लगे हैं, उन्हें घर बैठने की सलाह दी है पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने।
नजरिये का नहीं, मतिभ्रम का रेल बजटः विपक्ष

नजरिये का नहीं, मतिभ्रम का रेल बजटः विपक्ष

रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के लिए दूसरी बार पेश रेल बजट को पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने यह कहकर खारिज कर दिया कि रेल बजट में नजरिया पेश करने का बयान होता है लेकिन इसमें तो रेल मंत्री मतिभ्रम वाला बयान दिया है। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने कहा कि भाजपा ने बहुत हल्का बजट पेश करते हुए पूरी रेल व्यवस्‍था को ही पटरी से उतार दिया, इसमें कुछ नयापन नहीं था।
मम्मा की डायरी के बहाने

मम्मा की डायरी के बहाने

इंडिया हैबिटेट सेंटर का केसोरिना हॉल। जब हम पहुंचे तो हॉल में गिनती के लोग। देखते ही देखते हॉल में बच्चों की शैतानियां शुरू हो गईं। मम्मियों की आंखें लाल होने लगीं और इस सबके बीच सज गया मंच, ‘मम्मा की डायरी’ पर बातों के लिए। नताशा ने संचालन का जिम्मा उठाया और लेखिका अनु सिंह चौधरी ने बातों की भूमिका बांधी। एक सवाल के साथ, ‘मैं मां न होती तो न जाने क्या होती?’ औपचारिक शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों की बनाई फिल्म, ‘आओगी न मां’ से हुई। संवाद के तौर-तरीके चिट्ठी-पत्री से बदल कर ईमेल तक पहुंचे।
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