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क्या आडवाणी का होगा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में संबोधन

क्या आडवाणी का होगा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में संबोधन

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक शुक्रवार से शुरू होने वाली है। इस बीच यह सवाल उठा है कि क्या अब तक के चलन के मुताबिक पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करेंगे कि नहीं। पहले सिर्फ एक बार एेसा हुआ है जब आडवाणी ने कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित नहीं किया।
बाबरी मस्जिद मामले में पद्म विभूषण आडवाणी को नोटिस

बाबरी मस्जिद मामले में पद्म विभूषण आडवाणी को नोटिस

पूर्व प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को पद्म विभूषण से सम्मानित किये जाने के दूसरे ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बाबरी मस्जिद विंध्वंस की साजिश रचने के मामले में नोटिस भेजा है। इस मामले में आडवाणी के अलावा 19 और लोगों को नोटिस भेजा गया है।
राष्ट्रपति ने दिए भारत रत्न और पद्म पुरस्कार

राष्ट्रपति ने दिए भारत रत्न और पद्म पुरस्कार

प्रख्यात शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी महामना मदन मोहन मालवीय को मरणोपरांत सोमवार को देश के शीर्ष नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
तुम कहीं चहलकदमी पर निकले हो, नहीं?

तुम कहीं चहलकदमी पर निकले हो, नहीं?

राडिया टेप प्रकाशित करके विनोद मेहताने वही किया जो किसी अच्छे संपादक को करना चाहिए। राजनीतिज्ञों, पत्रकार/लॉबीस्टों और उनके कॉर्पोरेट प्रायोजकों के चल रहे समूह-सहवास की गंदी डायरियों को सार्वजनिक करके उन्होंने देश चला रही मित्र (माफिया) मंडली के क्लब नियमों को तोड़ दिया।
सोनिया ने आडवाणी को दी बधाई

सोनिया ने आडवाणी को दी बधाई

सोनिया गांधी ने आज लाल कृष्ण आडवाणी की शादी की 50 वीं वर्षगांठ पर उन्हें बधाई दी और कहा कि यह दिन उनके लिए भी एक विशेष दिन है क्योंकि इसी दिन 47 साल पहले वह राजीव गांधी के साथ परिणय सूत्र में बंधी थी।
सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

सियासी चौराहे पर अकेले ही ठिठके

क्या कारण है कि जिस आडवाणी ने पहली बार जनसंघ का अध्यक्ष बनने पर 1973 में एक झटके में बलराज मधोक जैसी मजबूत शख्सियत को पार्टी से जड़ से उखाड़ फेंका, 1974 में जयप्रकाश आंदोलन के उड़ते तीर को पार्टी के लिए पकड़ बाद की इमरजेंसी के प्लावन मं सांप्रदायिकता की अस्पृश्यता धोने में गजब की फुर्ती दिखाई, संघ परिवार के संगठनों द्वारा आजादी के वक्त से ईंट-बैठाकर सुलगाए जा रहे बाबरी-मस्जिद रामजन्म भूमि के मसले को गरमाने के अवसरवादी क्षण को 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के संकट में अचूक पहचाना, 1996 में भाजपा की सत्ता के लिए अन्य दलों के साथ जरूरी गठजोड़ बनाने के वास्ते खुद पीछे हटकर वाजपेयी को आगे करने की उस्तादी दिखाई, आज वही अपने नेतृत्व में न सहयोगी गठबंधन को उत्साहित कर पाए न अपनी पार्टी की दूसरी प्रांत के नेताओं को?
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