अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले ही नेपाल के प्रधानमंत्री पद से के पी ओली के इस्तीफे के बाद देश में राजनीतिक संकट एक बार फिर गहरा गया है। ओली ने अविश्वास प्रस्ताव को देश को प्रयोगशाला में बदलने और नए संविधान को लागू करने में रोड़ा अटकाने की विदेशी ताकतों की साजिश करार दिया।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली मोदी सरकार के दो साल के शासनकाल में मानवाधिकार और धार्मिक आजादी कम होने का दावा किया है। कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को भारत की अमेरिका के साथ होने वाली नियमित वार्ता का अंग बनाने को कहा है।
विकलांग व्यक्तियों को संबोधित करने के लिए दिव्यांग शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति प्रकट करते हुए एक विकलांग अधिकारवादी संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विकलांग सशिक्तकरण विभाग में विकलांगजन शब्द के स्थान पर दिव्यांगजन लिखने से संबंधित अधिसूचना वापस लेने की अपील की है।
मानवाधिकार समूह द ह्यूमन राइट्स वाच (एचआरडब्ल्यू) ने कहा है कि भारत राजद्रोह और आपराधिक मानहानि जैसे अस्पष्ट शब्दों वाले कानूनों का इस्तेमाल नियमित रूप से असंतोष को दबाने के लिए राजनीतिक हथियार के तौर पर करता है। एचआरडब्ल्यू ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह ऐसे कानूनों को रद्द करे जिनका इस्तेमाल शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति को गैरकानूनी घोषित करने के लिए किया जाता है।
आज विश्व मानवाधिकार दिवस के मौके पर विश्व खाद्य कार्यक्रम के भारत में कार्यकारी निदेशक डॉ. हमीद नूरू ने कहा कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में भुखमरी से जूझ रहे लोगों के लिए जल्द कार्यक्रम लॉन्च किए जाएंगे। नूरु का कहना है कि मानवाधिकारों में अहम है कि सारी दुनिया में सभी को भर पेट खाना मिले। फिर वह चाहे किसी भी धर्म, जाति, देश का हो। यहां तक कि वह आतंकवादी हो या न हो, इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन भोजन मिलना उसका मूलभूत अधिकार है। नुरु विश्व मानवाधिकार दिवस के मौके पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूम्न राइट्स की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।
मलबा हटाने, जोखिम भरी सफाई करने के लिए चेन्नै में हजारों दलितों को उतारा जा रहा है, मानो ये काम सिर्फ उनका है और उधर राहत वितरण में हो रहा है उनसे भेदभाव
भारत सरकार में इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व अधिकारी और विवेकानंद फाउंडेशन के फेलो आरएनपी सिंह को खुफिया से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में गहरा अनुभव है। उनकी राइट्स एंड रांग्स, बांग्लादेश डिकोडेड और हिंदी में दो पुस्तकें बहुत चर्चित रहीं। नेहरू: ए ट्रबल्ड लीगेसी से उन्होंने कुछ मौलिक सवाल उठाए हैं: क्या हमने कभी नेहरू के बारे में ईमानदारी से मूल्यांकन किया है और इस प्रभाव में क्या हमने देश के समकालीन इतिहास का निष्पक्ष मूल्यांकन किया है? इस पुस्तक में नेहरू के सिद्धांतवाद या अपने हित में दोहरे मानदंड अपनाने पर सवाल उठाए गए हैं।