महज 18 साल में 18वां विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीतकर तमिलनाडु के गुकेश डोमाराजा ने इतिहास रच दिया। रोमांचक मुकाबले में चीन के डिंग लीरेन को हराकर वे विश्वनाथन आनंद के बाद यह प्रतिष्ठित खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय और यह उपलब्धि हासिल करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं। शतरंज की दुनिया में भारत का नाम रोशन करने वाले डी. गुकेश ने कड़ी मेहनत, लगन और असाधारण प्रतिभा के दम पर खुद को महान खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है। कम उम्र से ही शतरंज के कई रिकॉर्ड तोड़ने वाले गुकेश ने भारतीय शतरंज को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। विश्व चैंपियनशिप जीतने पर गुकेश को 11.45 करोड़ रुपये की इनामी राशि मिली है। गुकेश का कहना है कि वे पैसे के लिए शतरंज नहीं खेलते हैं। वे जीत के पल का आनंद लेने के लिए खेलते हैं। वे कहते हैं, ‘‘बचपन से ही चेसबोर्ड मुझे बहुत पसंद है। यह मेरा पसंदीदा खिलौना रहा है। शतंरज मेरा पहला प्यार है।’’
29 मई 2006 को चेन्नै, तमिलनाडु में जन्मे गुकेश के पिता रजनीकांत पेशे से नाक, कान, गला विशेषज्ञ हैं। मां पद्मा भी डॉक्टर हैं। तेलुगु भाषी गुकेश के माता पिता ने कम उम्र में ही उनकी शतरंज खेलने की प्रतिभा को पहचान लिया था और और उन्हें शतरंज खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। महज 7 साल की उम्र से उन्होंने शतरंज खेलना शुरू कर दिया था। गुकेश बिना किसी बाधा के शतरंज खेल पाएं इसके लिए पिता रजनीकांत ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी। वे लगातार उन्हें दूसरे शहरों में शतरंज खेलने के लिए ले जाते रहते थे। इस वजह से उनकी आर्थिक स्थितियां शुरुआत में थोड़ा गड़बड़ाई लेकिन उनकी मां ने घर की हर तरह की जिम्मेदारी संभाली।
गुकेश ने भी माता-पिता की मेहनत का मान रखा और जल्द ही उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना शुरू कर दिया। 2018 में विश्व अंडर-12 शतरंज चैंपियनशिप जीतकर पहली बार वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। सिर्फ 12 साल, 7 महीने और 17 दिन की उम्र में उन्होंने 2019 में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीत लिया था। वे विश्व के दूसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर बने और भारत में यह उपलब्धि हासिल करने वाले सबसे युवा खिलाड़ी। 2023 में गुकेश ने 2750 ईलओ रेटिंग को पार कर दुनिया के शीर्ष 10 खिलाड़ियों में जगह बनाई। वे विश्व चैंपियन मैग्नस कार्लसन को भी हरा चुके हैं। साल 2022 के शतरंज ओलंपियाड में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता और भारत की टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचाया। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में जीत हासिल कर चुके गुकेश की ताकत उनकी एकाग्रता है।
गुकेश आक्रामक और रचनात्मक ढंग से खेलते हैं। यह उनकी विशिष्ट शैली है। 2022 में वे चेसेबल मास्टर्स और 2023 में फीडे वर्ल्ड कप शामिल जीत चुके हैं। उनकी सफलता का सबसे अहम पड़ाव 2023 में विश्व चैंपियन बनने की दिशा में बढ़ाया गया कदम है। गुकेश के खेल में विश्वनाथन आनंद की झलक मिलती है। खासकर उनकी प्रतिभा, समर्पण और खेल भावना में। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि वे आनंद की नकल करते हैं। उनकी अपनी अनूठी शैली और दृष्टिकोण है, जिसके साथ वे भारतीय शतरंज को नई दिशा देने की क्षमता रखते हैं। आनंद की तरह, गुकेश भी भारतीय शतरंज के दिग्गज बनने की राह पर हैं और उनकी मेहनत देख कर लगता है कि वे ही आनंद विरासत के सच्चे अधिकारी होंगे।
वैसे भी विश्वनाथन आनंद और गुकेश के बीच गुरु-शिष्य का संबंध है। 2020 में, आनंद ने ‘वेस्टब्रिज आनंद चेस अकादमी’ (डब्लूएसीए) की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य भारतीय युवा खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षित करना है। गुकेश इस अकादमी के प्रमुख छात्रों में हैं। आनंद ने गुकेश के खेल को निखारने और उनकी मानसिक तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे न केवल गुकेश को तकनीकी सलाह देते हैं, बल्कि उन्हें मानसिक दबाव झेलने और बड़े टूर्नामेंट में प्रदर्शन करने के गुर भी सिखाते हैं।
गुकेश अपनी सफलता का पूरा श्रेय अपने परिवार, कोच और कड़ी मेहनत को देते हैं। गुकेश की विश्व चैंपियन बनने की यात्रा किसी सपने से कम नहीं है। उनके माता-पिता ने उन्हें यहां तक पहुंचाने के लिए लगातार मेहनत की है। गुकेश की जीत के साथ कहा जा सकता है कि शतरंज में भारत का दबदबा तेजी से बढ़ रहा है। विश्वनाथन आनंद की विरासत संभालने के लिए डी. गुकेश के साथ प्रज्ञानंद और अर्जुन एरिगैसी जैसे खिलाड़ी भी शामिल हैं।