नागरीप्रचारिणी सभा में चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने आठ पृष्ठों के फ़ैसले में ज़िला प्रशासन द्वारा कराये गये चुनाव में विजयी व्योमेश शुक्ल के नेतृत्व वाली प्रबंधसमिति को मान्यता देते हुए दूसरे पक्ष की याचिका को निरस्त कर दिया। व्योमेश शुक्ल की ओर से जानेमाने अधिवक्ता कुणाल शाह ने पक्ष रखा, जबकि याचिकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे पैरवी कर रहे थे।
घटनाओं का क्रम :
विहित प्राधिकारी – उपज़िलाधिकारी, सदर, वाराणसी के न्यायालय में 2015 से नागरीप्रचारिणी सभा की प्रबंधसमिति का विवाद चला आ रहा था। हिंदी की इस महान संस्था में दो-दो प्रबंधसमितियाँ बन गयी थीं. दोनों ख़ुद को असली बताती थीं।
2020 में हिंदी कवि और देश के जानेमाने संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल ने इस मुक़द्दमे में पक्षकार बनने के लिये आवेदन किया। अपने निर्णय में न्यायालय ने उन्हें पक्षकार मान दोनों ही प्रबंधसमितियों को फर्जी और विधिशून्य घोषित करते हुए 2004-2007 की सदस्यता-सूची के आधार पर नये चुनाव कराने का आदेश दे दिया। (28.03.2022)
विहित प्राधिकारी– उपज़िलाधिकारी, सदर, वाराणसी के संस्था में चुनाव कराने के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक पक्ष ने उच्च न्यायालय में रिट दाख़िल की। (WRIT – C, No – 11607 of 2022)
इस रिट में उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश के ज़रिये चुनाव तो करवा दिया, लेकिन उसी आदेश में यह भी लिख दिया कि इस मुक़द्दमे के अंतिम निर्णय के बाद ही तय होगा कि संस्था का ‘प्रभावी नियंत्रण’ किसके पास रहे। (29.04.2022)
9 जून, 22 को राइफल क्लब में ज़िला प्रशासन की ओर से संस्था के 19 पदों के चुनाव संपन्न कराये गए, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मतों की गिनती नहीं हुई। मतपत्रों को कड़ी सुरक्षा के बीच ज़िला कोषागार के डबल लॉक में सुरक्षित रख दिया गया।
इस निर्णय के बाद इसी मुक़द्दमे में एक और अंतरिम आदेश के माध्यम से उच्चन्यायालय ने मतगणना करवाने का आदेश दे दिया। ज़िला प्रशासन ने राइफल क्लब में कड़ी सुरक्षा के बीच मतगणना कराई, जिसमें कवि-संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल संस्था के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए और शिक्षाविद प्रोफ़ेसर अनुराधा बनर्जी सभापति चुनी गयीं; लेकिन मुक़द्दमे का अंतिम फ़ैसला अभी भी नहीं आया था, इसलिए संस्था के सभी विभागों– आर्यभाषा पुस्तकालय, प्रकाशन, विक्रय आदि पर ताला ही बंद रहा। (6 अप्रैल, 2023)
22 दिसंबर’23 को बहस के बाद न्यायालय ने चुनाव को मान्यता देते हुए व्योमेश शुक्ल और नवनिर्वाचित प्रबंधसमिति के पक्ष में कल फ़ैसला सुनाया है और संस्था का नियंत्रण उन्हें देकर याचिका को निरस्त कर दिया। (अंतिम निर्णय : 24.02.24)
अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा है कि चुनावों के नतीजे की घोषणा के बाद मुक़द्दमे और शिकायतों को औज़ार की तरह इस्तेमाल करके निर्णय को टाला नहीं जा सकता। हाईकोर्ट ने याचिका को व्यर्थ मानते हुए निरस्त कर दिया है। अब आर्यभाषा पुस्तकालय समेत दूसरे सभी विभाग खुल सकेंगे और लंबे समय से बंद पड़ी संस्था में हिंदी प्रेमियों, पाठकों और शोधार्थियों का आना-जाना शुरु हो जायेगा।