अस्सी के दशक में जहां एक फीसदी अमीरों की आय देश की कुल आय की छह फीसदी के बराबर थी। वह 2015 आते-आते 25 फीसदी तक पहुंच गई। इसी तरह इस समय 10 फीसदी लोगों के पास भारत की 80 फीसदी धन-दौलत पहुंच गई है, जबकि 90 फीसदी आबादी केवल 19.3 फीसदी हिस्सेदारी पर सिमट गई है। साफ है कि भारत में अमीर और गरीब की खाई लगातार बढ़ रही है। यह खाई केवल आर्थिक स्तर पर नहीं बढ़ी है, बल्कि लैंगिक, क्षेत्रीय और वर्ग के स्तर पर भी बढ़ी है, जो भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए एक चिंता का विषय है। इस बात का खुलासा काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट की इंडिया सोशल डेवलपमेंट रिपोर्ट 2018 करती है, जिसका इस बार का विषय ‘राइजिंग इनइक्वालिटीज इन इंडिया’ है।
रिपोर्ट इस बात पर सवाल खड़ा करती है कि उदारीकरण के दौर में जब भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से विकास करने वाली बन गई है, फिर भी वहां असमानता क्यों बढ़ रही है? इस चुभते सवाल को भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत करने वाले, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी रिपोर्ट को जारी करते हुए उठाया। उनका कहना था कि तेज विकास दर का यह कतई मतलब नहीं है कि असामनता नहीं बढ़ेगी। इसी वजह से उनकी सरकार ने अधिकार देने के कदम उठाए, चाहे वह शिक्षा का अधिकार हो, सूचना का अधिकार, भोजन का अधिकार या फिर आदिवासियों के अधिकार हों। उनका कहना था कि विकास के तभी मायने हैं जब समाज के सभी तबके को उसका लाभ मिले।
मनमोहन सिंह की तरह ही रिपोर्ट को तैयार करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों और समाज विज्ञानियों ने भी अपने अध्ययन में इस बात पर जोर दिया है। 332 पेज वाली इस रिपोर्ट में 22 अध्याय हैं, जिनमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ती असमानता, क्षेत्र के आधार पर असमानता, आर्थिक विकास का लाभ पहुंचने में बढ़ी असमानता, लैंगिक स्तर पर व्याप्त असमानता से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर पर बढ़ती खाई का उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट में आर्थिक विकास के बावजूद असमानता कैसे बढ़ी है उस पर सी.पी.चंद्रशेखर, पुलिन बी. नायक, बी.पी.वाणी जैसे अर्थशास्त्रियों ने विस्तृत अध्ययन पेश किया है। इसी तरह शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बीच बढ़ी असमानता पर डॉ. टी.हक, एन.सी.सक्सेना, अमिताभ कुंडू और के.वर्गीज का अध्ययन भी उन पहलुओं को उभारता है, जो इस असमानता के कारक बन गए हैं। दलित, आदिवासी और दूसरे वंचित वर्ग कैसे विकास की मुख्यधारा में पिछड़ गए हैं, इस पर डी.नरसिंह रेड्डी, के.बी. सक्सेना की रिपोर्ट भी पठनीय है। सुरजीत देब ने सोशल डेवलपमेंट इंडेक्स 2018 तैयार किया है। रिपोर्ट लगातार बढ़ रही असमानता की वजह आर्थिक सुधारों की नीति और रूढ़िवादी सामाजिक ढांचे को मानती है। उसके अनुसार भारतीय समाज के दोहरे चरित्र की वजह से आर्थिक सुधारों का लाभ दलित, आदिवासी और किसानों जैसे वंचित वर्गों को नहीं मिल पाया है। इस कारण उनमें पिछड़ापन और गरीबी ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार राजनीति से लेकर आर्थिक और सामाजिक स्तर पर वंचित वर्ग की अनदेखी इस समस्या को कहीं ज्यादा विकराल बना सकती है, जिसकी वजह से संसाधनों पर अमीर वर्ग कहीं ज्यादा काबिज हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि नीतिगत स्तर पर बदलाव किए जाएं, अगर ऐसा नहीं होता है तो भारत के लिए टिकाऊ विकास मुश्किल हो जाएगा।
असमानता का आलम यह है कि 2000 से 2017 के बीच देश में धन,संपत्ति की असमानता छह गुना तक बढ़ी है। वहीं, अगर क्षेत्र के आधार पर देखा जाए तो मेट्रो शहरों में रहने वाले लोगों के पास संपन्नता ज्यादा है। लेकिन यहीं मुस्लिम और गरीब तबका बेहद कमजोर हुआ है, जिनमें ज्यादातर शहर के बाहरी इलाकों में मूल सुविधाओं से वंचित होकर गुजर-बसर कर रहे हैं। रिपोर्ट का कहना है कि जिन राज्यों में बेहतर आधारभूत सुविधाएं हैं, वहां प्रति व्यक्ति आय भी दूसरे राज्यों की तुलना में ज्यादा है।
देश की सबसे ज्यादा आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, जिसके हालात पर रिपोर्ट में यह अहम बात सामने आई है कि 1990 के दशक में कृषि क्षेत्र की विकास दर जहां दो फीसदी रही थी, वह 2004-05 से 2013-14 के बीच बढ़कर चार फीसदी तक पहुंच गई। उसके बावजूद किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
कृषि क्षेत्र में असमानता का स्तर राज्यों के आधार पर भी काफी गहरा है। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में गैर-कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आय, कृषि क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की तुलना में छह से ग्यारह गुना तक ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर भी गैर-कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आय, कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की तुलना में पांच गुना ज्यादा है। रिपोर्ट शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में बढ़ती असमानता की एक बड़ी वजह निजीकरण को ठहराती है। इस नीति के कारण वंचित और पिछड़े वर्ग को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा नहीं मिल पा रही है।
सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट द्वारा तैयार किए गए सोशल डेवलपमेंट इंडेक्स में केरल, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, दिल्ली, गोवा और नगालैंड ने बेहतर प्रदर्शन किया है जबकि असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश लगातार पीछे बने हुए हैं। विकास में असमानता की बढ़ती खाई कैसे रोड़ा अटका रही है, उसको पूरे तथ्यों के आधार पर न केवल रखा गया है बल्कि सुधार के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, उस पर भी प्रकाश डाला गया है। यह रिपोर्ट न केवल गंभीर मुद्दों पर अध्ययन करने वालों के लिए काफी कारगर साबित होगी, बल्कि नीति निर्धारकों के लिए प्रभावी नीतियां बनाने में भी उपयोगी साबित हो सकती है।