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17 मार्च 2025 · MAR 17 , 2025

आवरण कथा/साइबर अपराध: डिजिटल माफिया साया

साइबर अपराध अब सिंडिकेट का रूप ले चुका, अपराधियों के तार देश-विदेश के बड़े गिरोहों से जुड़े, मामला फर्जी डिजिटल अरेस्ट जैसे हथकंडों से आगे बढ़ा, मगर कानून अधूरे और पुलिसिया तंत्र नाकाफी
बढ़ रही है साइबर ठगी

वर्धमान समूह के चेयरमैन और जाने-माने उद्योगपति एस.पी. ओसवाल पिछले साल सितंबर की एक सुबह अपने दफ्तर में बैठे थे। अचानक फोन की घंटी बजी। फोन उठाते ही गंभीर स्वर में आवाज आई, ‘‘मैं केंद्रीय जांच एजेंसी का अधिकारी बोल रहा हूं। आपका नाम मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आया है। ओसवाल के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं। इससे पहले कि वे कुछ बोल पाते, कॉल करने वाले ने बताया कि कार्रवाई में साथ नहीं देने पर फौरन उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जाएगा और संपत्तियों की जब्ती भी हो सकती है। घबराए हुए ओसवाल को तथाकथित सुप्रीम कोर्ट की विशेष ऑनलाइन सुनवाई में शामिल होने के लिए कहा गया। वीडियो में एक जज बैठा हुआ था। डिजिटल कोर्टरूम का माहौल पूरी तरह से असली कोर्टरूम की तरह लग रहा था। उसके बाद फर्जी सुनवाई शुरू हुई और उन्हें निर्देश दिया गया कि वे छह करोड़ रुपये एक ‘निगरानी खाते’ में ट्रांसफर करें ताकि जांच के दौरान उनकी वित्तीय स्थिति स्पष्ट हो सके। दबाव में आकर उन्होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए। बाद में जब उन्होंने अपने कानूनी सलाहकारों से संपर्क किया तो पता चला कि उनके साथ साइबर धोखाधड़ी हुई है। यह दास्‍तां सिर्फ ओसवाल की नहीं, देश में लाखों लोगों की है। इस नए तरह के साइबर फ्रॉड का शिकार तमाम लोग हो चुके हैं और मोटी रकम गंवा चुके हैं। राष्ट्रीय साइबर रिपोर्टिंग प्लेटफॉर्म (एनसीआरपी) के मुताबिक साइबर ठगों ने पिछले चार वर्षों में लोगों को 33,165 करोड़ रुपये की चपत लगाई है, जिसमें  2024 में 22,812 करोड़ रुपये, 2021 में 551 करोड़ रुपये, 2022 में 2,306 करोड़ रुपये और 2023 में 7,496 करोड़ रुपये की ठगी की गई।

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डिजिटल दौर में टेक्नोलॉजी जिंदगी का अभिन्न अंग बन चुकी है, तो साइबर अपराध भी नए-नए पैंतरे के साथ तेजी से लोगों की जेब खाली कर रहे हैं। केंद्र सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रयासों के बावजूद साइबर अपराधी हर बार नया हथकंडा खोज लेते हैं। उनके नए-नए तरीके भी ऐसे हैं कि उनके आगे सारी सरकारी व्‍यवस्‍था हांफती नजर आती है। पढ़े-लिखे लोग, बड़े-बड़े बिजनेसमैन, ब्यूरोक्रेट तक उनके झांसे में आ जा रहे हैं।

बदलते वक्त और दनादन नई-नई टेक्‍नोलॉजी और गैजेट की आमद के साथ साइबर अपराधी उनकी तोड़ भी फटाफट हासिल कर ले रहे हैं और उसी के मुताबिक अपने पैंतरे बदल रहे हैं। मसलन, जब की-पैड वाला मोबाइल आम लोगों के हाथ में पहुंचा तब फिशिंग लिंक वाले मैसेज मोबाइल के इनबॉक्स में पहुंचने लगे, जिस पर क्लिक करते ही आपके बैंक खाते से पैसे निकल जाते थे। डिजिटल लेनदेन बढ़ा, तो फ्रॉड कॉल और यूपीआइ से धोखाधड़ी बढ़ गई। फिर, इंटरनेट और सोशल मीडिया के विस्तार के साथ अपराधियों ने नकली विज्ञापन, ‌फिशिंग ईमेल और फेक अकाउंट के जरिये लोगों को ठगना शुरू कर दिया। कोविड के बाद ऑनलाइन वीडियो कॉलिंग के जरिये कोर्ट की सुनवाई और प्रशासनिक गतिविधियां शुरू हुईं, तो साइबर अपराधियों ने ठगी के लिए डिजिटल अरेस्ट नाम का नया तरीका खोज निकाला।

साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन एक्सपर्ट मुकेश चौधरी आउटलुक को बताते हैं, ‘‘साइबर अपराधी आगे की सोचते हैं। उनकी कामयाबी का राज यही है कि वे कितनी जल्दी नए तरीके खोज सकते हैं।’’

ठगी के शुरुआती हथकंडे

2000 के दशक की बात है। लोगों के हाथ में बटुए के साथ की-पैड वाला एक छोटा-सा मोबाइल फोन रहने लगा था। तब साइबर अपराधी कम पढ़े-लिखे लोगों को निशाना बनाते थे। ये लोग डिजिटल खतरों से अनजान थे। साइबर अपराधियों के लिए सबसे आसान टूल फिशिंग था। इसमें अपराधी बैंक या अन्य संस्थानों के नाम से नकली ईमेल भेजते थे। मैसेज में यूजरनेम, पासवर्ड, बैंक डिटेल भरने के लिए लिंक दिया जाता था। जैसे ही यूजर लिंक पर क्लिक करता, उसकी सारी जानकारी हैकर तक पहुंच जाती थी।

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फिर आया नाइजीरियन 419 स्कैम। उसमें संभवतः पहली बार विदेशी नागरिकों की संलिप्तता की बात सामने आई। यह ठगी ईमेल के जरिये होती थी। यूजर को किसी विदेशी नागरिक (आम तौर पर नाइजीरियाई) के नाम से संदेश आता था कि उन्हें बड़ी रकम भारत भेजनी है, लेकिन कुछ कानूनी अड़चनें हैं। स्कैमर इस मदद के बदले में उस यूजर को भारी कमीशन देने का लालच देता था। कई लोग लालच में आकर पहले खुद अपने अकाउंट से पैसे ट्रांसफर कर देते थे। जब तक उन्हें पता चलता कि वे साइबर अपराध का शिकार हो गए हैं, हजारों-लाखों रुपये गंवा बैठते थे। चौधरी के मुताबिक, ‘‘जब नाइजीरियाई 419 स्कैम की जानकारी सबके पास पहुंची, तो उन्होंने गोरे लोगों को हायर करना शुरू कर दिया। पुलिस ने शिकंजा कसना शुरू किया तो उन्‍होंने स्थानीय अपराधियों से साठगांठ कर ली। ये लोग भारतीय सिम कार्ड और बैंक अकाउंट का इस्तेमाल करने लगे। इससे ठगी पकड़ना मुश्किल होने लगा।’’

उसके बाद लॉटरी और ईनाम के नाम पर स्कैम का दौर आया। उसमें ईमेल या एसएमएस के जरिये लोगों को बताया जाता था कि उन्होंने कोई लॉटरी या ईनाम जीत लिया है। ईनाम पाने के लिए उन्हें पहले ‘प्रोसेसिंग फीस’ या ‘टैक्स’ के नाम पर पैसे जमा करने होंगे। जानकारी की कमी थी, लोग पैसा जमा कर देते थे। बाद में न कॉल करने वाले का पता होता था, न ईनाम-लॉटरी वालों का।

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मुकेश बताते हैं कि 2005 के आसपास ओएलएक्स और ई-कॉमर्स फ्रॉड भी काफी सुर्खियों में था। साइबर अपराधी फर्जी वेबसाइट बनाकर सस्ते मोबाइल, लैपटॉप या अन्य प्रोडक्ट के विज्ञापन डालते थे। लोग जब उनसे खरीदारी करते थे, तो या तो उन्हें नकली सामान मिलता था या फिर पैसे लेने के बाद कंपनी गायब हो जाती थी। उस दौरान जब लोगों को इंटरनेट की जरूरत महसूस होने लगी, तो शहर-शहर साइबर कैफे खुलने लगे। लोग घंटे के हिसाब से इंटरनेट का चार्ज देकर कंप्यूटर सिस्टम पर अपना काम करते थे। साइबर अपराधियों ने यहां भी धोखाधड़ी का रास्ता ढूंढ लिया। स्कैमर साइबर कैफे में की-लॉगर सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर देते थे। इससे यूजर के बैंकिंग पासवर्ड और अन्य संवेदनशील जानकारी चोरी हो जाती थी।

कोविड के बाद का दौर

कोविड-19 महामारी के बाद साइबर अपराध की दुनिया में नए-नए पैंतरे जुड़ते चले गए। लोग घरों में बंद थे और उनके पास करने को ज्यादा कुछ नहीं था, तब साइबर अपराधी ज्यादा सक्रिय हो गए।

द इंडियन डीपफेकर कंपनी के फाउंडर और एआइ एक्सपर्ट दिव्येंद्र जादौन आउटलुक से बातचीत में कहते हैं, ‘‘कोविड के दौरान जब कसीनो और सट्टेबाजी से जुड़े अन्य व्यवसाय ठप हो गए, तब स्कैमर ऑनलाइन शिफ्ट हो गए। ये सारे खेल अब डिजिटल होने लगे। जो लोग लॉकडाउन में बोरियत महसूस कर रहे थे, मनोरंजन के लिए इन प्लेटफॉर्म का रुख करने लगे। गेमिंग साइट्स पर लुभावने मैसेज और ऑफर पॉप-अप होने लगे। क्लिक करते ही लोग ठगी का शिकार बन जाते।’’

कोविड के बाद देश का डिजिटल परिदृश्य काफी तेजी से बदला है। स्टेटिस्टा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड से पहले देश में इंटरनेट की पहुंच सिर्फ 33 प्रतिशत थी, जो आज 54 प्रतिशत से अधिक है। इस दौरान 15 करोड़ नए इंटरनेट यूजर बने। बढ़ती ऑनलाइन गतिविधि ने साइबर अपराधियों को ठगी की संजीवनी दे दी और रकम उड़ाने का नया मैदान तैयार कर दिया।

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मुकेश चौधरी कहते हैं, ‘‘महामारी के दौरान कई नए प्रकार के स्कैम सामने आए, जैसे वर्क-फ्रॉम-होम स्कैम। लोगों को अग्रिम शुल्क के बदले में फर्जी रिमोट नौकरी के अवसरों की पेशकश की जाने लगी। इस दौरान डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल बढ़ा तो अपराधी यूपीआइ फ्रॉड करने लगे।’’ बाचतीत और लेन-देन के लिए जैसे-जैसे लोगों की निर्भरता डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ती गई, धोखेबाजों ने व्हाट्सएप, टेलीग्राम और इंस्टाग्राम जैसे मैसेजिंग ऐप का सहारा लेना शुरू कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2024 की पहली तिमाही में व्हाट्सएप से संबंधित 43,797, टेलीग्राम से 22,680 और इंस्टाग्राम से 19,800 साइबर धोखाधड़ी की शिकायतें दर्ज की गईं हैं। यहां तक कि गूगल विज्ञापनों का भी दुरुपयोग किया जा रहा है, जिससे विदेश में बैठे साइबर अपराधी टारगेटेड विज्ञापनों के जरिये भारतीयों को निशाना बना रहे हैं।

गाजीपुर में रहने वाले रवि चौरसिया आउटलुक को बताते हैं, “फेसबुक पर जूते की सस्ती सेल देखने के बाद मैंने एक विज्ञापन लिंक पर क्लिक किया। वहां सभी ब्रांडेड जूते सस्ते दामों पर मिल रहे थे। पेमेंट करने के लिए मैंने अपना पासवर्ड डाला। मोबाइल पर ओटीपी आया। ओटीपी डालते ही मेरे सारे पैसे साफ हो गए। मुझे नहीं पता था कि मैं ठगी का शिकार होने जा रहा हूं।”

साइबर अपराधियों के हौसले अब इतने बुलंद हो चुके हैं कि वे सिर्फ एक व्यक्ति को निशाना नहीं बना रहे हैं। बड़े संगठन और कॉरपोरेट भी उसके शिकार हो रहे हैं। 2024 में लगभग 300 छोटे भारतीय बैंकों को सी-एज टेक्नोलॉजी (इन बैंकों के लिए एक सर्विस प्रोवाइडर) पर हुए रैंसमवेयर हमले के कारण ऑफलाइन होना पड़ा। इस घटना ने वित्तीय सेवाओं को बाधित किया और नुकसान पहुंचाया। 2023 में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि 2020 से 2022 के बीच करीब 150 सरकारी वेबसाइटें हैक हुई हैं।

साइबर अपराध और एआइ

कोरोना महामारी ने साइबर अपराध की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ-जनरेटेड वॉइस क्लोनिंग, डीपफेक वीडियो और फिशिंग तकनीक को जन्म दिया। दिव्येंद्र का कहना है कि एआइ की वजह से साइबर क्राइम के स्केल में काफी बढ़ोतरी हुई है। पहले साइबर क्राइम में टेक्निकल चीजें होती थी जो सबको पता नहीं होती थी। इसीलिए पहले साइबर क्राइम अधिकतर विदेश से होता था, लेकिन अब अपराधी जनरेटिव एआइ की वजह से कोडिंग वगैरह आसानी से कर सकते हैं। एआइ ने ठगना आसान बना दिया है और पकड़ना उतना ही मुश्किल।

आइजेएसआरए की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में जहां साइबर फ्रॉड के 9,622 केस दर्ज हुए थे, 2024 के शुरुआती आठ महीनों में यह आंकड़ा 77,858 तक पहुंच गया। यह पिछले 10 वर्षों में लगभग 709 फीसदी की बढ़ोतरी है। अब ठगी इतनी बारीकी से होने लगी है कि जब तक लोगों को अहसास होता है, तब तक उनके बैंक अकाउंट खाली हो चुके होते हैं। उदाहरण के लिए, वॉयस क्लोनिंग की मदद से अपराधी आपके किसी करीबी की हूबहू आवाज में फोन करते हैं। फोन पर किसी जानने वाले की आवाज होती है, ‘‘मुझे किडनैप कर लिया गया है, तुरंत इतने पैसे भेजो!’’ अपनों की आवाज सुनकर लोग रकम ट्रांसफर कर देते हैं, लेकिन बाद में पता चलता है कि वह फर्जी कॉल थी। इसी तरह, डीपफेक वीडियो बनाकर लोगों को ब्लैकमेल किया जा रहा है, जिसमें किसी के चेहरे, उसके हावभाव और आवाज को इतने सटीक तरीके से कॉपी किया जाता है कि असली और नकली व्यक्ति में फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है।

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दिव्येंद्र बताते हैं कि अब डेटा ब्रीच (बिना इजाजत डेटा चोरी या लीक) पहले से कहीं ज्यादा आसान और खतरनाक हो गया है। हमारी व्यक्तिगत जानकारियां, जो अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद होती हैं, बेहद सटीक रूप में साइबर अपराधियों तक पहुंच रही हैं। जब हम लोन एप्लिकेशन, डेटिंग ऐप, ऑनलाइन गेम या सोशल मीडिया पर अपनी जानकारी साझा करते हैं, तो एआइ इन्हें एक पैटर्न में ढालकर हमारे व्यवहार, पसंद-नापसंद, आर्थिक स्थिति और मनोवैज्ञानिक झुकाव को समझने में मदद करता है।

अगर किसी को पता चल जाए कि किसी व्यक्ति को लोन चाहिए, तो अपराधी बैंक एजेंट बनकर संपर्क करते हैं। अगर कोई बाइक खरीदने की सोच रहा है, तो फर्जी सेलर बनकर धोखा दिया जाता है। अगर कोई निवेश करने की योजना बना रहा है, तो नकली स्कीम में फंसाया जाता है। एआई-आधारित डेटा विश्लेषण यह भी बताता है कि व्यक्ति किस मानसिक स्थिति में है और उसी के आधार पर घात लगाए बैठे साइबर अपराधी उसे ठगने की योजना बना लेते हैं।

क्रॉस-बॉर्डर क्राइम

साइबर अपराध अब सिर्फ अलग-थलग बैठे ठगों या छोटे गैंग का खेल नहीं रहा, बल्कि यह एक वैश्विक नेटवर्क में तब्दील हो चुका है। आज अपराधी सिंडिकेट में काम करते हैं, जिनके सदस्य अक्सर कई देशों में फैले होते हैं। फरवरी 2025 में छत्तीसगढ़ पुलिस ने कंबोडिया स्थित एक अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराध सिंडिकेट का पर्दाफाश किया। इस गिरोह में भारतीय नागरिक भी शामिल थे, जो कॉल सेंटर के जरिये शादी के फर्जी प्रस्ताव, नौकरी के झांसे और निवेश घोटालों के माध्यम से भारतीयों को ठग रहे थे। इन ऑपरेशनों के मास्टरमाइंड अक्सर विदेशों में बैठे होते हैं जिससे उन्हें ट्रैक करना और गिरफ्तार करना बेहद मुश्किल हो जाता है। अपराधियों को अब तकनीक विशेषज्ञ होने की भी जरूरत नहीं, एआइ से जुड़ी कई सेवाएं मुफ्त में उपलब्ध हैं।

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हाल के वर्षों में भारत में कई अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराध सिंडिकेट का भंडाफोड़ हुआ है, जो विदेशी नेटवर्क के माध्यम से भारतीय नागरिकों को ठगने में शामिल थे। सितंबर 2024 में सीबीआइ ने दिल्ली-एनसीआर में एक बड़े फर्जी कॉल सेंटर का पर्दाफाश किया जो अमेरिकी और कनाडाई नागरिकों, खासकर बुजुर्गों को निशाना बना रहा था। यह सिंडिकेट तकनीकी सहायता और कानून प्रवर्तन एजेंसियों का  प्रतिनिधि बनकर पीड़ितों से संपर्क करता था और उन्हें बिटकॉइन के जरिये भुगतान करने के लिए मजबूर करता था। जांच में पाया गया कि इस गिरोह ने लगभग 260 करोड़ रुपये की ठगी की थी। अगस्त 2024 में उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर धोखाधड़ी सिंडिकेट के मास्टरमाइंड सुरेश कुमार सैनी को गिरफ्तार किया, जो वीडियो कॉल के जरिये खुद को पुलिस या सरकारी अधिकारी बताकर लोगों से धन की मांग करता था। इस सिंडिकेट के तार कंबोडिया, थाईलैंड और कनाडा तक जुड़े हुए थे।

अक्षम कानून, मजबूर पुलिस

आंकड़े बताते हैं कि भारत में साइबर सुरक्षा की स्थिति गंभीर है। साइबर इंटेलिजेंस फर्म क्लाउडएसईके के मुताबिक भारत साइबर हमलों के मामले में दूसरे  नंबर पर निशाने पर है। साइबर विशेषज्ञों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों की राय है कि भारत के कानून अप्रभावी हैं, सुरक्षा प्रणाली पुरानी पड़ चुकी है और एजेंसियां तेजी से बढ़ते साइबर अपराधों को संभालने में असमर्थ हैं।

साइबर अपराध के जानकार वकील पवन दुग्गल बताते हैं कि भारत में साइबर अपराधों से निपटने में सबसे बड़ी समस्या मौजूदा कानूनों की निष्क्रियता है। देश का प्रमुख साइबर सुरक्षा कानून सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 अब पुराना हो चुका है और आधुनिक साइबर खतरों से निपटने में पर्याप्त नहीं है। उनके मुताबिक, ‘‘भारत के पास कोई समर्पित साइबर सुरक्षा कानून नहीं है। सरकार ने साइबर अपराध पोर्टल जैसी पहलें शुरू की हैं, लेकिन वे भी सीमित हैं। यह पोर्टल केवल अपराध दर्ज करने की सुविधा देता है, लेकिन एफआइआर पंजीकरण या जांच की प्रक्रिया को आसान नहीं बनाता। चूंकि कानून व्यवस्था राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आती है, इसलिए शिकायतें राज्य सरकारों के पास भेजी जाती हैं जहां अधिकांश मामले प्रशासनिक प्रक्रियाओं में उलझकर दम तोड़ देते हैं।’’

एनसीआरबी की आंकड़ों के मुताबिक साइबर क्राइम से जुड़े मामलों में दंड की दर मात्र 1.7 प्रतिशत है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों पुलिस इन आंकड़ों को सुधारने में विफल है। चौधरी का कहना है कि साइबर अपराध की जांच में सबसे बड़ी बाधा पुलिस के पास पहले से मौजूद मामलों का भारी दबाव और संसाधनों की कमी है। वे कहते हैं, ‘‘साइबर अपराध अक्सर कई राज्यों में फैला होता है जिससे जांच जटिल हो जाती है। अगर किसी व्यक्ति के साथ नोएडा में धोखाधड़ी होती है और पैसा विभिन्न राज्यों से होते हुए घूमता है, तो चार राज्यों की पुलिस को समन्वय करना पड़ेगा लेकिन उसके पास अन्य राज्यों में जाकर अपराधियों को पकड़ने के लिए पर्याप्त बजट नहीं होता। यात्रा, ठहरने और अन्य खर्चों की भरपाई सरकार नहीं करती। इससे जांच प्रभावित होती है।’’

कानूनी चुनौतियों के अलावा ढांचागत और तकनीकी समस्याएं भी हैं। साइबर अपराधी पुलिस और जांच एजेंसियों से कहीं अधिक तकनीकी रूप से सक्षम हैं। वे बैंकिंग वेबसाइटों की हूबहू कॉपी बनाकर लोगों को धोखा देने में माहिर हो गए हैं।

‘‘एक कॉल, एक डर और चार लाख का नुकसान’’

गुड्डू कुमार गुप्ता, सहरसा, बिहार

गुड्डू कुमार गुप्ता

मेरा एक बिजनेस है। मैं हमेशा काम में व्यस्त रहता हूं। पैसों का लेन-देन करना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है। एक दिन जब मैं कहीं जा रहा था, तो मेरे पास एक कॉल आई। कॉल बिल्कुल वैसी ही थी जैसे बैंक या टेलीकॉम कंपनियों के ऑटोमेटेड कॉल होते हैं- ‘‘अगर आपको अपनी सेवा जारी रखनी है तो एक दबाएं, अधिक जानकारी के लिए दो दबाएं।’’ उस कॉल में बताया गया कि मेरा बैंक अकाउंट दो घंटे में बंद हो जाएगा और इसका कारण भी बताया गया। मैं घबरा गया क्योंकि अकाउंट बंद हो जाने से मेरे बिजनेस को बड़ा नुकसान हो सकता था। कॉल में एक नंबर दिया गया था और कहा गया कि अधिक जानकारी के लिए वहा संपर्क करें। मैंने बिना देरी किए उस नंबर पर कॉल किया।

फोन उठाने वाले व्यक्ति ने खुद को एसबीआइ क्रेडिट कार्ड डिपार्टमेंट का अधिकारी बताया और कहा कि मेरे नाम पर एक क्रेडिट कार्ड जारी हुआ है, जिस पर एक लाख रुपये का बकाया है। मैं हैरान था क्योंकि मैंने ऐसा कोई कार्ड लिया ही नहीं था। मैंने जब इस पर आपत्ति जताई, तो उसने मुझे मुंबई पुलिस के एक अधिकारी का नंबर दिया और कहा कि वह इस मामले की जांच कर रहे हैं। मैंने उस नंबर पर कॉल किया। फिर जो हुआ, वह मेरी कल्पना से परे था। उसने मुझे वीडियो कॉल पर आने को कहा। जब मैंने वीडियो कॉल उठाया, तो वह व्यक्ति पुलिस की वर्दी में बैठा था, उसके पास पहचान पत्र था और बैकग्राउंड में एक पुलिस स्टेशन जैसा माहौल दिख रहा था। उसने मुझसे बात करते हुए वॉकी-टॉकी का इस्तेमाल किया, जिससे मुझे यकीन हो गया कि वह सच में पुलिस अधिकारी है।

फिर उसने बताया कि मेरा नाम एक बड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में आया है। उसने कहा कि नरेश गोयल मनी लॉन्ड्रिंग केस में 247 बैंक अकाउंट्स का दुरुपयोग हुआ है और मेरा नाम भी उसमें शामिल है। जब मैंने कहा कि मेरा सेंट्रल बैंक में कोई खाता नहीं है, तो उसने तुरंत कहा, ‘‘आपके नाम से खाता खोला गया है और यही सबूत है कि आप भी इस केस में शामिल हैं।’’ फिर उसने कहा कि मुझे ‘‘डिजिटल अरेस्ट’’ किया जा रहा है। उसने मुझे एक दस्तावेज भेजा जिसमें मेरा नाम, फोटो और एक आधिकारिक मुहर थी। मैंने जब यह देखा, तो मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ गए।

इसके बाद मुझसे पूछताछ शुरू हुई, ‘‘तुम्हारे पास कितने बैंक अकाउंट्स हैं, तुम रोज कितना लेन-देन करते हो, तुम्हारा बिजनेस क्या है, घर में कौन-कौन रहता है?’’ फिर उसने कहा कि ‘‘अगर तुमने सहयोग नहीं किया, तो तुम्हारे परिवार पर भी कार्रवाई होगी।’’ उसने धमकी दी कि ‘‘अगर तुमने बैंक डिटेल्स नहीं दीं तो तुम्हारी लोकल पुलिस अभी तुम्हारे घर आएगी और तुम्हें गिरफ्तार कर लेगी।’’ इतने में मुझे मेरे लोकल थाने से एक कॉल आई। उधर से किसी ने कहा, ‘‘तुम्हारे नाम से केस आया है, जल्द ही पुलिस पहुंच रही है।’’ मैं बुरी तरह डर गया। तभी उस ‘पुलिस अधिकारी’ ने मुझसे कहा, ‘‘पैसे ट्रांसफर कर दो, मामला सुलझा देंगे।’’ डर के कारण मैंने सबसे पहले दो लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए। कुछ दिनों बाद उसने फिर फोन किया और कहा कि ‘‘तुम्हारा नाम हटाने के लिए और दो लाख रुपये और देने होंगे। आधा काम अभी बाकी रह गया है। मैं इतना डर चुका था कि मैंने फिर से पैसे भेज दिए। जब उसने तीसरी बार और पैसे मांगे, तब मैंने अपने एक दोस्त को पूरी बात बताई। उसने कहा, ‘‘तू ठगी का शिकार हो गया है!’’ मैंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, हालांकि पुलिस ने भी कुछ नहीं किया।

 ‘‘फ्री फिल्में डाउनलोड करने गया था, लेकिन अपनी कमाई लुटा बैठा’’

गणेश कुशवाहा, प्रयागराज, यूपी (वेब डेवलपर)

गणेश कुशवाहा

मैं फिल्मों का बहुत शौकीन हूं। जब से स्मार्टफोन आया है, थिएटर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इंटरनेट पर सब कुछ मिल जाता है, नई फिल्में, वेब सीरीज, क्रिकेट के लाइव लिंक, सब कुछ फ्री में! पहले टॉरेंट का जमाना था, लेकिन जब उस पर बैन लगने लगा तो टेलीग्राम सबसे आसान तरीका बन गया। यहां किसी भी नई रिलीज का एचडी प्रिंट चुटकियों में मिल जाता था। इसी शौक ने मुझे ऐसे जाल में फंसा दिया जिसका अंदाजा मुझे बिल्कुल नहीं था।

कुछ महीने पहले एक टेलीग्राम ग्रुप मिला, Hollywood & Bollywood Free Movies। इसमें हर नई फिल्म एचडी क्वालिटी में फ्री मिलती थी। ग्रुप के एडमिन रोज नए लिंक डालते थे। मैं खुश था कि बिना पैसे खर्च किए सब कुछ मिल रहा था। फिर एक दिन ग्रुप में एक पोस्ट आया, ‘‘1000 लगाकर 5000 कमाइए! बिना किसी मेहनत के!’’ पोस्ट में स्क्रीनशॉट थे जिनमें लोग एडमिन को धन्यवाद कह रहे थे। लिखा था, ‘‘100 प्रतिशत गारंटी, कोई फ्रॉड नहीं!’’ नीचे एक लिंक था, जिसे क्लिक करके व्हाट्सएप या टेलीग्राम पर जॉइन करना था।

मैंने सोचा, ‘‘अगर ये ग्रुप फ्री में फिल्में देता है, तो गलत थोड़ी होगा?’’ मैंने लिंक पर क्लिक किया और एक टेलीग्राम चैनल खुला, जिसमें कई लोग पैसे कमाने के तरीके के बारे में बात कर रहे थे। फिर एक मैडम ने मुझे मैसेज किया,  ‘‘हम क्रिप्टो और स्टॉक ट्रेडिंग में निवेश कराते हैं। अभी 1000 लगाइए और 24 घंटे में 5000 पाइए!’’

पहली बार में ही शक हुआ, लेकिन ग्रुप में लोगों के मैसेज देखकर भरोसा हो गया। मैंने 1000 भेज दिए। अगले दिन मेरे अकाउंट में सच में 5000 आ गए! मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैंने बैंक स्टेटमेंट चेक किया, पैसे सच में आए थे। लगा कि मैंने कोई सही सोर्स पकड़ लिया है। अब मैडम ने कहा, ‘‘5000 से 25,000 बना सकते हैं!’’ लालच बढ़ा और मैंने 5000 भेज दिए। इस बार 25,000 नहीं आए, बल्कि एक मैसेज आया, ‘‘सर, आपकी रकम कंपनी की सिक्योरिटी होल्ड में चली गई है। इसे निकालने के लिए आपको 20,000 और जमा करने होंगे।’’

अब थोड़ा डर लगने लगा, लेकिन मैडम ने समझाया, ‘‘घबराइए मत, हमने पहले भी आपको पैसे भेजे हैं। ये आखिरी पेमेंट है। उसके बाद सारा पैसा वापस मिलेगा!’’ मैंने जैसे-तैसे 20,000 और जमा कर दिए। फिर मैसेज आया, ‘‘अब आपको 50,000 जमा करने होंगे, तभी पिछले पैसे रिफंड होंगे!’’ अब समझ आया कि फंस चुका हूं।

मैंने उनसे रिक्वेस्ट की, गिड़गिड़ाया, ‘‘मेरा पैसा लौटा दो, मैं और नहीं दे सकता!’’ पर कोई जवाब नहीं आया। मैडम के सारे मैसेज गायब हो गए, टेलीग्राम ग्रुप डिलीट हो गया, और मैं ब्लॉक कर दिया गया।

मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था खुद पर, अपनी बेवकूफी पर। 26,000 चले गए। कोई सबूत नहीं, कोई केस नहीं। जब मैंने अपने दोस्तों को बताया, तो उन्होंने कहा, ‘‘यार, तू भी न! इतना सीधा मत बना कर!’’ लेकिन असलियत यह है कि ऐसे जाल में पढ़ा-लिखा आदमी भी फंस सकता है।

आज जब भी टेलीग्राम खोलता हूं, खुद पर गुस्सा आता है। फ्री के चक्कर में अपनी मेहनत की कमाई लुटा बैठा। अब मैं किसी भी ऐसी स्कीम में नहीं फंसता। दूसरों को भी समझाता हूं कि लालच मत करो, वरना लुट जाओगे!

"जूता तो नहीं मिला, पर खाते से 6 लाख रुपये निकल गए!"

रवि चौरसिया, गाजीपुर, यूपी

गांव में खेती और स्कूल की नौकरी के बीच जिंदगी ठीक चल रही थी। मोबाइल पर फेसबुक स्क्रॉल करना आदत बन गई थी। छोटे-मोटे वीडियो देखते हुए कब दिन निकल जाता, पता ही नहीं चलता। पर एक दिन ऐसा हुआ कि मोबाइल से ही मेरा सब कुछ लुट गया।

उस दिन दोपहर में खेत से लौटकर फेसबुक देख रहा था। अचानक एक विज्ञापन दिखा, ‘‘एडिडास का जूता 500 रुपये में! 80% डिस्काउंट! सिर्फ एक घंटे के लिए ऑफर!’’ ऊपर शाहरुख खान की फोटो लगी थी, नीचे टाइमर चल रहा था। 59 मिनट... 58 मिनट... 57 मिनट... ऑफर खत्म होने वाला था। भरोसेमंद वेबसाइट लग रही थी, ‘‘Adidas-Official-Sale.com’’ लिखा था। मैंने तुरंत क्लिक किया।

अंदर बहुत सारे ब्रांडेड जूते दिख रहे थे, सब पर भारी डिस्काउंट। मैंने सोचा, 500 रुपये में एडिडास मिल रहा है, मौका नहीं छोड़ना चाहिए! एक जूता चुना, कार्ड डिटेल डाली, और ‘पे नाउ’ दबा दिया। स्क्रीन पर लिखा आयाः ‘ऑर्डर प्लेस्ड!’ बस एक मिनट बाद फोन पर मैसेज आयाः ‘‘ऑर्डर वेरिफाई करने के लिए यह ओटीपी डालें।’’ मुझे शक नहीं हुआ। हर ऑनलाइन खरीदारी में ओटीपी तो आता ही है। मैंने ओटीपी डाल दिया।

अगले ही पल तीन मैसेज आए जिसमें मेरे अकाउंट से बारी-बारी से 75 हजार निकल चुके थे। मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। घबराकर बैंक फोन लगाया। बैंक वाले बोले, ‘‘आपने खुद ओटीपी डाला है, हम कुछ नहीं कर सकते!’’

मैं पुलिस स्टेशन भागा। एफआइआर दर्ज हुई, लेकिन कोई खास उम्मीद नहीं थी। अब समझ आया कि वो वेबसाइट नकली थी। ऑफर का टाइमर, शाहरुख की फोटो और 500 रुपये का लालच, सब कुछ धोखा था।

आज भी जब फेसबुक पर ऐसे डिस्काउंट वाले विज्ञापन द‌िखते हैं, तो झुरझुरी होती है। मैं तो लुट चुका, पर आपको चेतावनी दे रहा हूं, अगर कुछ ज्यादा सस्ता दिखे तो समझ लीजिए कि सस्ता नहीं, बल्कि सबसे महंगा सौदा होने वाला है! लालच में फंस कर अपना सब कुछ न गंवाएं

 

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