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6 फरवरी 2023 · FEB 06 , 2023

प्रथम दृष्टि: विकट ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा

सरकारी अस्पतालों को सुदूर इलाकों में सुचारू रूप से चलाने के बेहतर उपाय तो ढूंढे ही जा सकते हैं। भगोड़े चिकित्सकों को बर्खास्त तो किया जा सकता है लेकिन न तो यह तात्कालिक समाधान लगता है, न ही दीर्घकालिक
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं हर जगह खस्ताहाल

पिछले दिनों नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार में स्वास्थ्य विभाग के अस्पतालों में कार्यरत 81 चिकित्सकों को बर्खास्त कर दिया, जो लंबे समय से अनुपस्थित थे। उनमें 64 डॉक्टर ऐसे थे, जो पांच वर्षों से अधिक समय से गायब थे। सरकार ने भविष्य में भी ऐसी कार्रवाई करने की चेतावनी उन चिकित्सकों को दी है जो अपना ‘कर्तव्य निभाने में कोताही’ कर रहे हैं। बर्खास्त होने वाले चिकित्सकों में प्रायः वही हैं जिनकी नियुक्ति गांवों, कस्बों या छोटे शहरों के सरकारी अस्पतालों में हुई थी। गौरतलब है कि उनमें किसी की पोस्टिंग राजधानी पटना या आसपास के क्षेत्रों में नहीं थी। इतने बड़े स्तर पर डॉक्टरों की बर्खास्तगी से भले ही स्वास्थ्य विभाग में खलबली मची हो, लेकिन आम लोगों के लिए यह हैरान करने वाली खबर कतई नहीं है। लंबे समय से यह जाहिर है कि सरकारी सेवा में रहने के बावजूद अधिकतर डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में सेवाएं देने से कतराते हैं और बगैर किसी सूचना के या मेडिकल अवकाश लेकर अपने कार्यक्षेत्र से अनुपस्थित रहते हैं। पिछले कुछ वर्षों से सरकार उन पर नकेल कसने की कोशिश कर रही है लेकिन परिस्थितियां नहीं बदली हैं। मजबूरन सरकार को बर्खास्तगी जैसे कड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं। लेकिन, ऐसे प्रदेश में जहां ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की नितांत कमी है, क्या ऐसी कार्रवाई ही इस समस्या का हल है?

यह सर्वविदित है कि राज्य के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों का अभाव रहा है। या तो वहां वर्षों से किसी डॉक्टर की नियुक्ति नहीं हुई है या जिनकी हुई है, वे लंबे समय से वहां देखे नहीं गए हैं। इसके फलस्वरूप न सिर्फ वहां के अस्पतालों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है बल्कि उन इलाकों के लोगों को मजबूरन इलाज के लिए अन्यत्र जाना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद प्रदेश की लचर स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने का प्रयास किया गया और शुरुआत में इसके बेहतर नतीजे भी मिले लेकिन डॉक्टरों का गायब रहना सबसे बड़ी समस्या है। ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति आश्वस्त करने के लिए अनेक अभिनव प्रयोग किए गए, यहां तक कि उनके फोन के लोकेशन से उन्हें ट्रैक किया गया लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। नतीजतन, प्रखंड और अंचल स्तर के अस्पतालों में चिकित्सक और अन्य स्वास्थ्यकर्मी के नदारद रहने से वहां के जिला अस्पतालों में भीड़ बढ़ती रही है और लोग बेहतर चिकित्सा के लिए बड़े शहरों का रुख करते रहे हैं, जहां सरकारी अस्पतालों में भले ही जगह न मिले लेकिन निजी क्षेत्र के ऐसे अस्पतालों की कमी नहीं है जो बेहतर सेवाएं मुहैया कराने के लिए चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। भले ही उन अस्पतालों में भारी रकम अदा करनी पड़ती हो, लोगों को कम से कम अच्छे इलाज की तसल्ली तो होती ही है।

हालांकि ऐसी स्थिति सिर्फ बिहार नहीं, देश के अधिकतर राज्यों में है, खासकर वे जो विकास के पैमाने पर पिछड़े रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से जारी ‘रूरल हेल्थ स्टेटिस्टिक्स’ के ताजा आकड़ों से जाहिर है कि देश में डॉक्टरों की भारी कमी है। इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार समेत 25 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 70 प्रतिशत से ज्यादा कमी है। कुछ राज्यों में तो ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ डॉक्टर ही नहीं हैं। बारह राज्यों में ऐसे पद 90 से 99 प्रतिशत तक खाली हैं।

इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में वैसे डॉक्टरों की नियुक्ति जो वहां नियमित रूप से अपनी सेवाएं दे सकें, राज्य सरकारों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। दरअसल डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण काम नहीं करना चाहते। उन्हें उन इलाकों में न तो अपने बच्चों के लिए कोई ढंग का स्कूल मिल पाता है, न ही आधुनिक जीवन-शैली की अन्य आवश्यकताएं। इस कारण अधिकतर डॉक्टर उन इलाकों में काम करने से झिझकते हैं और बड़े शहरों में काम करना पसंद करते हैं।

हालांकि, विडंबना यह भी है कई डॉक्टर ग्रामीण इलाकों के सरकारी अस्पतालों में तो काम करने से कतराते हैं लेकिन वहीं उन्हें निजी क्लिनिक खोलकर प्रैक्टिस करने में कोई परेशानी नहीं होती। जो भी हो, इसका खामियाजा गांवों में रहने वाले हर आम आदमी को भुगतना पड़ता है। सरकार के लिए ग्रामीण इलाकों में मुफ्त और पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की चुनौती बढ़ती ही जा रही है। आज के दौर में हर बड़े शहर में फाइव-स्टार निजी अस्पताल खुल रहे हैं जो डॉक्टरों को आकर्षित करने के लिए भारी-भरकम पैकेज दे रहे हैं।

यह सही है कि स्वास्थ्य सेवा के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए निजी क्षेत्र के अस्पतालों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता, और यह भी सही है कि इतने बड़े देश में सिर्फ सरकारी अस्पतालों से काम नहीं चल सकता। लेकिन, सरकारी अस्पतालों को सुदूर इलाकों में सुचारू रूप से चलाने के लिए बेहतर उपाय तो ढूंढे ही जा सकते हैं। भगोड़े चिकित्सकों को बर्खास्त तो किया जा सकता है लेकिन न तो यह तात्कालिक समाधान लगता है, न ही दीर्घकालिक।

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