इसमें कोई शक नहीं कि विराट ने कप्तानी बहुत अच्छे ढंग से संभाली। अच्छे क्रिकेटर होने के साथ उनमें नेतृत्व गुण भी है। कप्तानी छोड़ने का उनका निर्णय व्यक्तिगत है, पर मुझे लगता है कि उन्हें यह लगने लगा था कि खेल में जितना उन्हें कॉन्ट्रिब्यूट करना चाहिए, उतना नहीं कर पा रहे हैं। कप्तान होने का अर्थ बहुत अलग है। कप्तान को किसी भी सीरिज शुरू होने के साल दो साल पहले से तैयारी शुरू कर देनी होती है। उसे खिलाड़ियों की तकनीक और उनकी स्ट्रेंथ देखनी होती है। कप्तान को रणनीति बनानी होती है। कप्तान की जिम्मेदारी अलग होती है। विराट ने तय किया होगा कि वे बल्लेबाज के रूप में ही भूमिका निभाना चाहते हैं। फिर वे काफी दिनों से कप्तानी कर भी रहे थे। हर कप्तान की एक शेल्फ लाइफ होती है। जब उसे लगने लगे कि एक कप्तान के रूप में उसकी शेल्फ लाइफ खत्म हो गई है, तो उसे यह काम छोड़ ही देना चाहिए और यही विराट ने किया। यह स्वागतयोग्य है। वे तीनों फॉर्मेट में कप्तानी कर रहे थे। यह बहुत ही कठिन है कि कोई खेले भी और तीनों फॉर्मेट में कप्तानी भी करे। कप्तान बनने के बाद खिलाड़ी को अपने खेल से ज्यादा टीम को समय देना होता है। बहुत सोच विचार करना होता है। उसकी बहुत जिम्मेदारी होती है।
जहां तक धोनी की कप्तानी और विराट की कप्तानी का सवाल है, तो इसकी कोई तुलना नहीं, क्योंकि हर कप्तान की चुनौती अलग होती है। सबका अलग-अलग व्यक्तित्व होता है। इसे बदल नहीं सकते। बदलना भी नहीं चाहिए। कप्तानी खिलाड़ी का ही एक एक्सटेंशन है। कप्तानी में एक खिलाड़ी बहुत कुछ सीखता है। तभी धार भी मिलती है और निरंतर सुधार आता है।
जाहिर सी बात है, कप्तानी छोड़ने पर विराट का प्रेशर रीलिज होगा। उन्हें अपने खेल पर ध्यान देने का समय मिलेगा। जहां तक उनके टीम लीडर होने की बात है, तो उसमें कोई शंका ही नहीं है, क्योंकि सभी ने उनकी लीडरशिप क्वालिटी देखी है। उनके नेतृत्व में भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। टीम ने नई ऊंचाइयों को छुआ। कुछ जगहों पर रोहित शर्मा और उनके बीच राइवलरी की बात भी सुनाई पड़ती है। ऐसा है भी तो कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि दो खिलाड़ियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा खेल में चलती है। जहां तक उनके कप्तानी छोड़ने से भारतीय टीम पर असर की बात है तो मुझे नहीं लगता कि इससे कोई फर्क पड़ेगा। टीम में बहुत से अनुभवी खिलाड़ी हैं और उनका अनुभव काम आएगा। विराट अब टीम को अपना शानदार कॉन्ट्रिब्यूशन दे पाएंगे।
नया कप्तान कौन होगा, यह तो निर्णायक ही तय करेंगे। इसमें समय लगेगा। लेकिन जो भी होगा वह भी अच्छे नतीजे देगा। मुझे पूरा विश्वास है कि नया कप्तान भी टीम को बेहतर ऊंचाइयों पर ले जाएगा। जब कोई नया व्यक्ति आता है, तो नई सोच के साथ आता है। नई सोच का मतलब परिवर्तन है और परिवर्तन होते रहना चाहिए।
यह भी चर्चा है कि हर फॉर्मेट का कप्तान अलग होना चाहिए। मुझे लगता है कि अभी वह जमाना नहीं आया है। राय तो यह भी बन रही है कि ह्वाइट बॉल और रेड बॉल के कप्तान अलग-अलग हों लेकिन ऐसा कब होगा, कहा नहीं जा सकता।
(लेखक पूर्व क्रिकेटर, पूर्व चयनकर्ता और पूर्वी क्षेत्र से राष्ट्रीय चयनकर्ता हैं। आकांक्षा पारे काशिव से बातचीत पर आधारित)