सच्चिदा जी के समग्र लेखन में एक अंतर्दृष्टि मिलती है। इस दृष्टि का निर्माण समानता, लोकतंत्र, विकेन्द्रीकरण, व्यक्ति-स्वातंत्र्य, अहिंसा, श्रमशीलता, अपरिग्रह, सह-अस्तित्व जैसे मूलभूत मूल्यों से हुआ है
क्या इसे विराट युग के अंत की शुरुआत के रूप देखा जा सकता है? ऐसा कहना निस्संदेह जल्दबाजी होगी। कप्तानी की जिम्मेदारी से मुक्त होकर अच्छा प्रदर्शन करने वालों की मिसालें भी तो हैं ही