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सवाल एक लाख करोड़ का

फ्लिपकार्ट के वॉलमार्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के हाथों बिकने से स्वदेशी स्टार्टअप का सपना चकनाचूर
वॉलमार्ट का फ्लिपकार्ट

अक्टूबर, 2007 में बरसात के दिन थे। तेलंगाना के महबूबनगर में रहने वाले पुस्तक प्रेमी वी.वी.के. चंद्रा को एक किताब 90 किलोमीटर दूर हैदराबाद में भी नहीं मिली तो उन्होंने ऑनलाइन खोजबीन शुरू की। वह किताब थी जॉन वुड्स की लीविंग माइक्रोसॉफ्ट टू चेंज द वर्ल्ड। इसे खोजते हुए अचानक चंद्रा की कंप्यूटर स्क्रीन पर सचिन नाम के एक व्यक्ति का मैसेज आता है। मैसेज खोला तो एक वेबसाइट दिखी जो भारत में कहीं भी किताबें भेज सकती थी। किताब मिल गई और 500 रुपये के इस ऑर्डर ने आइआइटी दिल्ली से पढ़े दो नौजवानों सचिन और बिन्नी बंसल के सपनों को पंख लगा दिए। दोनों अमेजन की नौकरी छोड़कर खुद का कारोबार खड़ा करने में जुटे थे।

यह फ्लिपकार्ट की शुरुआत थी! और वह किताब इसकी पहली बिक्री, जो बड़ी मुश्किल से खरीदार तक पहुंची। यह घटना भारत में ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया बदलने वाला लम्हा साबित हुई। किताबों से इलेक्ट्रॉनिक्स और फैशन में हाथ आजमाते हुए अगले 10 साल में फ्लिपकार्ट करीब 20 अरब डॉलर (1.35 लाख करोड़ रुपये) का वैल्यूएशन हासिल करने वाली देश की पहली ई-कॉमर्स कंपनी बनी।

देश में ई-कॉमर्स क्रांति और देसी स्टार्ट-अप की कामयाबी की मिसाल बनी फ्लिपकार्ट अब बिकने जा रही है। यूं इसकी हिस्सेदारी विदेशी हाथों में पहुंचने का सिलसिला कई साल पहले ही शुरू हो गया था। कमाई और कर्मचारियों की तादाद के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट की 77 फीसदी हिस्सेदारी लेने का ऐलान किया है। वॉलमार्ट करीब 16 अरब डॉलर (करीब एक लाख 7 हजार करोड़ रुपये ) का भुगतान करेगी। यह पैसा फ्लिपकार्ट के प्रमोटर्स के अलावा सॉफ्टबैंक, टाइगर ग्लोबल, एक्सेल पार्टनर्स, नैसपर्स, आइडीजी वेंचर्स सरीखे वैश्विक निवेशकों के हिस्से में आएगा।

 यूपीए सरकार के दौरान देश के खुदरा बाजार में प्रवेश करने में नाकाम रही वॉलमार्ट इस भारी-भरकम निवेश के जरिए एक तीर से कई निशाने साधना चाहती है। फ्लिपकार्ट के रास्ते वह तेजी से फलते-फूलते भारतीय खुदरा बाजार में तो सेंध लगाएगी ही, साथ ही ई-कॉमर्स की दौड़ में अमेरिका की अमेजन और चीन की अलीबाबा से पिछड़ने की भरपाई भी करना चाहेगी। 28 देशों में 11 हजार से ज्यादा स्टोर और करीब 23 लाख कर्मचारियों वाली वॉलमार्ट को बाजार बिगाड़ने और प्रतिस्पर्धा खत्म करने वाले अपने कारोबारी तौर-तरीकों से दुनिया भर में विरोध का सामना करना पड़ा है। हालांकि, अमेरिका में कंपनी को डायवर्सिटी को बढ़ावा देने वाली नीतियां अपनानी पड़ीं। इसी तरह चीन में वॉलमार्ट का प्रवेश स्थानीय खरीद को तवज्जो देने की शर्त पर हुआ था। लेकिन भारत में किन शर्तों पर वॉलमार्ट दस्तक दे रही है, इस पर कोई बात ही नहीं हो रही है। भारत से शुरू हुई एक कंपनी के एक लाख करोड़ रुपये में बिकने को ही बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी कहते हैं कि वॉलमार्ट के हाथों फ्लिपकार्ट का बिकना सरकार की मेक इन इंडिया नहीं बल्कि मेक फॉर इंडिया नीति का सबूत है। वॉलमार्ट दुनिया में कहीं से भी सस्ता सामान बनवाकर बड़े बाजारों में खपाने के लिए जानी जाती है। वॉलमार्ट के जरिए सरकार देश के खुदरा बाजार को बहुराष्ट्रीय कंपनी के हवाले करना चाहती है। जबकि विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने रिटेल सेक्टर में एफडीआइ का विरोध किया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने भी इस सौदे का विरोध किया है। लेकिन केंद्र में भाजपा सरकार होने की वजह से यह विरोध अब पहले जितना मुखर नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने इस सौदे को देश की एफडीआइ नीतियों का उल्लंघन बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसे रुकवाने की मांग की है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में महाजन ने फ्लिपकार्ट के सिंगापुर में पंजीकृत होने का मुद्दा उठाते हुए वॉलमार्ट के साथ डील को छोटे उद्यमियों, किसानों और नौकरियों के लिए खतरा करार दिया है। उन्होंने फ्लिपकार्ट के कारोबार पर भी कई गंभीर सवाल उठाए हैं।

आरोप हैं कि फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और फ्लिपकार्ट इंटरनेट प्राइवेट लिमिटेड ने 2015 से अपने अकाउंट जमा नहीं किए हैं। पत्र के मुताबिक, प्रवर्तन निदेशालय और आरबीआइ में फ्लिपकार्ट के खिलाफ एफडीआइ नियमों के उल्लंघन की कई शिकायतें हो चुकी हैं, जिन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। महाजन ने बाजार मूल्य को प्रभावित करने और फ्लिपकार्ट के जरिए माल बेचने वाले थोक विक्रेताओं को भारी डिस्काउंट और प्रीडेटरी प्राइसिंग को खतरनाक बताया है, जिसके तहत विदेश पूंजी का इस्तेमाल बाजार को कब्जाने में किया किया जाता है। ऐसा करने वाले बहीखाते में घाटा दिखाकर आयकर देने से बच जाते है जबकि इनकी विदेश में स्थित होल्डिंग कंपनी की वैल्यू बढ़ती जाती है।

वॉलमार्ट सौदे की वजह से फ्लिपकार्ट में जरा भी हिस्सेदारी रखने वाले निवेशक मालामाल हो जाएंगे। मिसाल के तौर पर, सचिन बंसल को उनकी 5.5 फीसदी हिस्सेदारी के बदले करीब एक अरब डॉलर (करीब 6700 करोड़ रुपये) मिलने की उम्मीद है। लेकिन इस एक लाख करोड़ रुपये की डील का बड़ा हिस्सा उन विदेशी निवेशकों के खाते में जाएगा, जिन्होंने फ्लिपकार्ट में पैसा लगाया था और उस निवेश को भुनाने का इंतजार कर रहे हैं। इस मुनाफे पर आयकर विभाग की नजरें भी लगी हुई हैं। आयकर विभाग ने टैक्स देनदारियां तय करने के लिए फ्लिपकार्ट और वॉलमार्ट के बीच हुए सौदे का ब्यौरा मांगा है। फ्लिपकार्ट इंडिया में अधिकांश हिस्सेदारी सिंगापुर में पंजीकृत कंपनी के पास है। इस तरह इस सौदे के तहत फ्लिपकार्ट इंडिया की मि‌ल्कियत अंतत: वॉलमार्ट के पास पहुंच जाएगी। इसलिए भारत में भी टैक्स देनदारी बन सकती है।

जितनी जल्दी फ्लिपकार्ट के बिकने की नौबत आई और वॉलमार्ट जितना बड़ा दांव इसके जरिए भारतीय बाजार पर लगा रही है, उसे लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि जो भारतीय कंपनी महज एक दशक में एक लाख करोड़ के वैल्यूएशन को पार कर गई, वह अपने बूते ग्लोबल ब्रांड क्यों नहीं बन सकती थी? क्या यूं बिक जाना ही भारतीय स्टार्ट-अप की नियति है? आखिर फ्लिपकार्ट के संस्थापकों ने इतनी जल्दी हथियार क्यों डाल दिए? और क्या इस सौदेबाजी से भारतीय स्टार्ट-अप को लेकर होने वाली स्वदेशी राजनीति पर पूर्णविराम नहीं लग जाएगा?

बाजार के जानकार और वजीर एडवाइजर्स के एमडी हरमिंदर साहनी कहते हैं कि फ्लिपकार्ट बिकने के लिए ही बनी थी। पहले इसके संस्थापकों ने वित्तीय निवेशकों को अपनी हिस्सेदारी बेची और अब वे अपनी अधिकांश हिस्सेदारी रणनीतिक निवेशकों को बेचने पर आमादा हैं। लेकिन फ्लिपकार्ट के लिए अच्छी बात यह है वॉलमार्ट ने इसकी वैल्यूएशन 20 अरब डॉलर से अधिक आंकी है जो अगस्त, 2017 के मुकाबले करीब 67 फीसदी ज्यादा है, जब कंपनी ने जापानी समूह सॉफ्टबैंक से 2.5 अरब डॉलर जुटाए थे। एक ऐसी कंपनी जो अमेजन से ई-कॉमर्स की लड़ाई लगभग हार चुकी थी, उसके लिए यह शानदार वापसी है।

वॉलमार्ट को भारत के खुदरा बाजार की ताकत का अंदाजा है। लेकिन मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआइ नीतियों के चलते वॉलमार्ट भारत में अपना ट्रेडमार्क स्टोर नहीं खोल पाई। भारती इंटरप्राइजेज के साथ सात साल की साझेदारी से अलग होने के बाद वॉलमार्ट अब मुंबई में अपने सेंटर के अलावा बी2बी सेगमेंट में 21 स्टोर चलाता है।

फिलहाल भारत में मल्टी ब्रांड रिटेल में 51फीसदी एफडीआइ की मंजूरी है, लेकिन इसमें भी कई शर्तें हैं। यही वजह है कि बड़ी अंतरराष्ट्रीय रिटेल कंपनियां भारतीय बाजार में बड़ा निवेश नहीं कर पाईं। उधर, वॉलमार्ट ऑनलाइन की जंग अमेजन और अलीबाबा से तकरीबन हार चुकी है। अगर वह अब फ्लिपकार्ट जैसे बड़े अधिग्रहण नहीं करेगी तो भारतीय बाजार से भी हाथ धो बैठेगी।

डिजिटल अर्थव्यवस्था पर शोध करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वानिया के व्हार्टन स्कूल के मार्केटिंग विभाग के प्रोफेसर कार्तिक होसनगर कहते हैं, “डॉटकॉम के उछाल के बाद अमेजन का सारा कारोबार ऑनलाइन का था और इसलिए उसे नए-नए प्रयोग करने पड़े। जब तक वॉलमार्ट जैसी रिटेल कंपनियों को एहसास हुआ कि ई-कॉमर्स का भविष्य है, तब तक अमेजन काफी आगे निकल चुकी थी।” आज अमेजन 43 फीसदी हिस्सेदारी के साथ ऑनलाइन रिटेल में अपना दबदबा बनाए हुए है, जबकि 495 अरब डॉलर (अमेजन से ढाई गुना से अधिक) कमाई वाली दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी होने के बावजूद ऑनलाइन बाजार में वॉलमार्ट की हिस्सेदारी महज चार फीसदी ही है। बाजार पूंजी के मामले में अमेजन की कीमत वॉलमार्ट से करीब दोगुनी बढ़ी है। पिछले पांच वर्षों में वॉलमार्ट के मुकाबले अमेजन की कमाई कई गुना अधिक तेजी से बढ़ी है। हालांकि, चीन में अमेजन के मुकाबले वॉलमार्ट का प्रदर्शन बेहतर रहा। चीन में वॉलमार्ट ने स्थानीय रिटेल कंपनियों से साझेदारी की थी। उसी तरह की कामयाबी को वह अब भारत में दोहराना चाहती है।

फ्लिपकार्ट के लिए 20 अरब डॉलर का वैल्यूएशन हासिल करना, एक तरह से इसकी वापसी है। 2014-2015 में कंपनी बड़े पैमाने पर फंड जुटाने और कई गलतियों के कारण मुसीबतों में फंस गई थी। जुलाई 2014 में जब कंपनी ने टाइगर ग्लोबल और नेसपर्स से एक अरब डॉलर रुपये फंड जुटाया तो इसकी वैल्यू सात अरब डॉलर की हो गई। लेकिन तभी अमेजन ने भारत में दो अरब डॉलर के निवेश की घोषणा कर अपने मंसूबे जाहिर कर दिए थे। अमेजन से मुकाबले के लिए फ्लिपकार्ट को और ज्यादा फंड की जरूरत थी। यह जरूरत उसे वॉलमार्ट तक ले गई।

2013 से 2015 के बीच फ्लिपकार्ट की वैल्यूएशन 1.6 अरब डॉलर से बढ़कर 15 अरब डॉलर तक पहुंच गई। यह बड़ी छलांग थी। इस दौर में कंपनी ने खुद का सामान बेचने के बजाय खरीद-फरोख्त के प्लेटफार्म (मार्केटप्लेस मॉडल) के तौर पर आगे बढ़ाया। लेकिन वेंडरों की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने की वजह से कंपनी की छवि खराब होने लगी। निवेश पर मुनाफा कमाने को बेचैन निवेशकों को संतुष्ट करने के लिए सचिन की जगह बिन्नी बंसल कंपनी के सीईओ बने। लेकिन अमेजन के बढ़ते बाजार की वजह से फ्लिपकार्ट दबाव में आई। स्थितियों को बदलने के लिए टाइगर ग्लोबल के अनुभवी कल्याण कृष्णमूर्ति को लाया गया। तब अमेजन और फ्लिपकार्ट के बीच छूट को लेकर बड़ी प्रतिस्पर्धा चल रही थी। जनवरी 2017 में कृष्णमूर्ति कंपनी के सीईओ और बिन्नी समूह के सीईओ बने। दोनों ने फ्लिपकार्ट को बजूबी संभाला।

लेकिन फॉरेस्टर रिसर्च के वरिष्ठ फोरकास्ट विश्लेषक सतीश मीणा कहते हैं कि अब बिना सिर-पैर की छूट वाली योजनाओं के दिन लद गए हैं। ई-कॉमर्स कंपनियों को लगने लगा है कि ग्राहकों को छूट के जाल में फंसाना एक टिकाऊ रणनीति नहीं है। अब चुनौती मौजूदा ग्राहकों को ही अपने प्लेटफॉर्म पर विभिन्न सेगमेंट में खरीदारी के लिए बार-बार बुलाने की है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा सेगमेंट खड़े करने और निवेश की जरूरत है। जाहिर है, इस होड़ में बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगलती जाएंगी। यही पूंजीवाद का उसूल है। लेकिन सवाल यह उठता है कि सारा खेल सिर्फ मुनाफे का है, तो इन स्टार्ट-अप पर राष्ट्रवाद और भारतीयता का मुखौटा क्यों चढ़ाया जाता है? क्या कोई घरेलू कंपनी अपने बूते ग्लोबल ब्रांड नहीं बन सकती?

मोटी बात यह है कि मुनाफे का कोई राष्ट्र नहीं होता, न ही पूंजी की कोई राष्ट्रीयता। इस बात को यूं समझिए कि जो फ्लिपकार्ट अब तक भारतीय स्टार्ट-अप की कामयाबी की मिसाल बनी हुई थी, उसमें देश-विदेश के करीब 150 निवेशकों का पैसा लगा है। इन निवेशकों को मुनाफे के लिए वॉलमार्ट से बेहतर पेशकश कौन कर सकता था। ई-कॉमर्स बाजार के जानकारों का मानना है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के जियो के जरिए ई-कॉमर्स में उतरने और अमेजन और अलीबाबा की तैयारियों को देखते हुए फ्लिपकार्ट के प्रमोटर्स ने अपने कंधों पर बोझ उठाने के बजाय मुनाफा दर्ज कर कारोबार को वॉलमार्ट जैसे अनुभवी हाथों में सौंपना बेहतर समझा।


 

 

सौदे से किसको कितना मुनाफा

सौदे से किसको कितना मुनाफा

कंपनी    हिस्सेदारी निवेश    कमाई

सॉफ्ट बैंक 22.3%   2. 5 अरब डॉलर    4 अरब डॉलर

टाइगर ग्लोबल  21.99%  1 अरब डॉलर   3.5 अरब डॉलर

नैसपर्स    13.76%  60 करोड़ डॉलर 2.2 अरब डॉलर

एक्सेल पार्टनर्स  6.88%   10 करोड़ डॉलर 80 करोड़ से 1 अरब डॉलर

सचिन बंसल    5.96%   दो लाख रुपये  6700 करोड़ रुपये

 निवेश का मामला

-2007 : करीब 4 लाख रुपये के निवेश से फ्लिपकार्ट की शुरुआत

-2008 : आशीष गुप्ता से मिला पहला वेंचर फंड

-2009 : एक्सेल पार्टनर्स से 10 लाख डॉलर की फंडिंग

-2012 : टाइगर ग्लोबल, एक्सेल पार्टनर्स सहित कई निवेशकों से 15 करोड़ डॉलर की फंडिंग

-2014 :  टाइगर ग्लोबल, नैसपर्स, एक्सेल पार्टनर्स से एक अरब डॉलर की फंडिंग

-2017 : माइक्रोसॉफ्ट, सॉफ्ट बैंक, ईबे, टेनसेंट से 2.9 अरब डॉलर का निवेश

-2018 : वॉलमार्ट को 16 अरब डॉलर में  77 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का सौदा 

(इनपुट-आउटलुक बिजनेस से कृपा महालिंगम)

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