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डिजिटल रिकॉर्ड में भी पहली दिल्ली

ऐतिहासिक दस्तावेजों को सुरक्षित रखने का महाअभियान
दुर्लभ दत्सावेज तलाशती शोधार्थी

आजादी की पहली लड़ाई के अगुआ, आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर पर अंग्रेजों ने क्या-क्या आरोप मढ़े थे? अंग्रेजों के आरोप-पत्र के करीब छह सौ पेज की मूल प्रति केवल दिल्ली के अभिलेखागार या लंदन के इंडिया ऑफिस में ही देखी जा सकती है। दिल्ली या देश के इतिहास के गवाह ऐसे अनेक अहम दस्तावेज समय के साथ जर्जर हो चले हैं। शायद कुछ और वक्त बीता तो उन्हें देख पाना भी मुमकिन नहीं होगा। सो, उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के लिए दिल्ली अभिलेखागार एक महायोजना पर काम कर रहा है। देश में पहली बार करीब चार करोड़ पृष्ठों के डिजिटलीकरण और माइक्रो फिल्म बनाने की इस परियोजना को अमलीजामा पहनाने में अभिलेखागार के मुखिया को 16 साल का समय लग गया। ढाई साल में परियोजना पूरी होने पर दस्तावेजों को पांच सौ साल तक सुरक्षित रखा जा सकेगा।

लेकिन इस कवायद में दिल्ली अभिलेखागार के मुखिया संजय गर्ग को लंबी जद्दोजहद से गुजरना पड़ा। वे तब सहायक ही हुआ करते थे। उन्होंने 2000 में इस प्रोजेक्ट को जब अपने वरिष्ठ अफसरों के सामने रखा तो किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। आखिर 2011 में तत्कालीन सचिव केशव चंद्रा ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्मार्ट गवर्नमेंट (एनआईएसजी) को सलाहकार नियुक्त किया जिसकी रिपोर्ट 2012 में पेश की गई। दिल्‍ली की आप सरकार ने तीन मई 2015 को इस पर अमलीजामा पहनाने का फैसला लिया। दिल्ली सरकार की वित्त व्यय समिति ने भी मार्च 2016 में इस प्रोजेक्ट को पास कर दिया। इसी साल जनवरी में इसका टेंडर निकाला गया है और चेन्नै की नाइन स्टार कंपनी को इसका ठेका दिया गया है। यह टेंडर कंपनी को 25 करोड़ 40 लाख रुपये में दिया गया है।

दिल्‍ली के उपमुख्‍यमंत्री मनीष सिसोदिया कहते हैं, “दुनिया में दिल्ली का अभिलेखागार पहला संस्थान होगा, जहां चार करोड़ पेज डिजिटल होने के साथ माइक्रो फिल्मिंग में तब्दील हो जाएंगे यानी किसी फिल्म के नेगेटिव के तौर पर यह रिकॉर्ड्स बन जाएगा। एक तरह से पूरा रिकॉर्ड रेपलिका के तौर पर तैयार हो जाएगा। शोधार्थी इनका लाभ उठा सकेंगे।” उनका कहना है कि वैसे भी कागजी रिकॉर्ड की एक लाइफ है। दिल्ली अभिलेखागार में बेशकीमती दस्तावेज हैं। इनमें बहादुरशाह जफर के मुकदमे की मूल प्रति के अलावा मुगल बादशाह शाह आलम का फरमान और सनद, भगत सिंह की फाइल, 1857 की क्रांति से जुड़े कागजात हैं। यह भी कि राष्ट्रपति भवन और लुटियन जोन का निर्माण कैसे हुआ। 1803 से जमीन के मालिकाना हक से जुड़े कागजात हैं यानी दिल्ली में मालिकाना हक से जुड़े 50 फीसदी विवाद नई कवायद से हल हो जाएंगे। यहां 1890 से सजायाफ्ता कैदियों का रिकॉर्ड भी है।

संजय गर्ग बताते हैं, “यूं तो दस करोड़ पेज का प्रस्ताव था लेकिन पहले चरण में चार करोड़ पेज ही लिए जाएंगे। रिकॉर्ड की एक प्रति दिल्ली के अभिलेखागार में रहेगी और दूसरी किसी अन्य राज्य में, ताकि किसी आपदा की स्थिति में दूसरी प्रति सुरक्षित रह सके। इसके लिए एमओयू किया जाएगा।”

जेएनयू में इतिहास के प्रोफेसर रहे अरविंद सिन्हा कहते हैं, “शोधार्थियों के लिए यह बेहतर कदम है। दिल्ली का इतिहास जानने के लिए रिकॉर्ड्स का संरक्षण जरूरी है। पहले दिल्ली का अभिलेखागार जब कश्मीरी गेट में था तो कई रिकॉर्ड्स खराब हो गए और इससे चीजों को जोड़ने में काफी दिक्कतें आती हैं।” बहादुर शाह जफर के मुकदमे पर किताब लिख रहे प्रो. केसी यादव का कहना है, “दिल्ली के रिकॉर्ड अपने में बहुत महत्वपूर्ण हैं। सरकार का कदम अहम है।”

राष्ट्रीय अभिलेखागार में बतौर माइक्रो फोटो ग्राफिस्ट काम कर चुके एनएस मणि कहते हैं, “रिकॉर्ड डिजिटल और माइक्रो फिल्मिंग में बदलने से शोध करने वालों को काफी लाभ होगा। समय खराब नहीं होगा और रिकॉर्ड से छेड़छाड़ नहीं की जा सकेगी।”

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