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गांधी कथाकार चला गया

मानसिक आघात के कारण मूर्छित होने के कुछ घंटे पूर्व तक नब्बे वर्ष के गांधी कथाकार नारायणभाई देसाई 9 दिसंबर की अपनी दिनचर्या के बारे में डायरी में लिख रहे थे। वे सोलह वर्ष की उम्र से बिना नागा अपनी डायरी रोज लिखा करते थे।
गांधी कथाकार चला गया

 इसी तरह से वे पांच साल की उम्र से रोजाना चरखे पर सूत कातते थे। डायरी लिखना और सूत कातना उनकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बन गया था। उनके पिता महादेवभाई देसाई ने भी जब से वे गांधीजी के साथ उनके सचिव के रूप में 1917 में जुड़े तब से मृत्यु की पूर्व संध्या 14 अगस्त 1942 तक नियमित डायरी लिखी जिसे अंग्रेजी में डे टू डे विथ गाँधी कहा गया। महादेवभाई की डायरी और नारायणभाई की डायरियां  भारत के आधुनिक इतिहास का अध्ययन करने वालों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। महादेवभाई की डायरी जहां भारत की आज़ादी की लड़ाई का गांधी की नज़रों से आंखों देखा हाल बताती है वहीँ  नारायणभाई की डायरी गांधी जी के सपनों के भारत के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले संत विनोबा भावे के नेतृत्व में चले भूदान आन्दोलन और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले संपूर्ण क्रांति आंदोलन नजदीकी वर्णन और विहंगावलोकन कराती है। नारायण भाई एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें देश के तीन – तीन महापुरुषों के साथ 25 - 25 वर्ष बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है – महात्मा गांधी ,विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण।

नारायण भाई का जन्म 24 दिसंबर 1924 को वलसाड़ में हुआ। पिताजी महादेवभाई 1917 से ही महात्मा गाँधी के साथ उनके सचिव के रूप में जुड़ चुके थे। इसलिए नारायण भाई का बचपन अहमदाबाद के सत्याग्रह आश्रम और वर्धा के पास सेवाग्राम आश्रम में बीता। बारह साल की उम्र में ही नारायण भाई ने वर्धा की अंग्रेजी स्कूल में पढने से इनकार कर दिया।  बापू ने अपने ‘बाबला’ के इस निर्णय का स्वागत किया और महादेव को निर्देश दिया कि 12 वर्ष के नारायण को स्वयं पढाये –लिखाए। बाबला ने सेवाग्राम आश्रम में रहने वाले और समय समय पर आने वाले दिग्गजों से  संस्कृत, उर्दू,  हिंदी,  अंग्रेजी,  इतिहास, भूगोल, विज्ञानं जैसे विषय में पढाई की और साथ ही काष्टकला तथा वस्त्रविद्या सीखी. उन्हें राजकुमारी अमृत कौर ने अंग्रेजी, आचार्य नरेंद्र देव ने अर्थशास्त्र और सियारामशरण गुप्त ने हिंदी पढाई। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने नारायण को पढ़ने के लिए महादेवभाई को बाबला से सात साल बड़ी इंदु  (इंदिरा) की गणित, विज्ञान, भूगोल और अंग्रेजी व्याकरण की पाठ्यपुस्तके दी थी ।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय गांधीजी ने जर्मनी के तानाशाह हिटलर को जो पत्र लिखा था वह 16  साल के बाबला ने ही टाइप किया था। महादेवभाई को टाइप करना नहीं आता था इसलिए महात्मा गांधी के पत्र बाबला ही टाइप किया करता था। पिता की आगा खान महल में 15 अगस्त 1942 के दिन जब 50 साल की उम्र में अचानक मृत्यु हुई तब नारायण भाई 18 वर्ष के थे। गांधीजी के जेल से रिहा होने पर नारायण भाई ने उनके सचिवालय में कुछ समय काम किया लेकिन इसमें उन्हें कुछ भी नया सीखने को नहीं मिल रहा ऐसा लगने पर उन्होंने इस बारे में बापू से शिकायत की। इस पर बापू ने पूछा कि उन्हें कैसा काम करना पसंद है। नारायण भाई ने कहा कि वे नयी तालीम का काम करना चाहते हैं।

सेवाग्राम में ही पढ़ने आई ओडिशा के प्रसिद्द स्वतंत्रता सेनानी दंपत्ति मालतीदेवी और नबकृष्ण चौधुरी की बेटी उत्तरा से 1947 में नारायण भाई के प्रेम विवाह होने के बाद दोनों नव वर-वधु ऐतिहासिक बारडोली सत्याग्रह के बाद आदिवासियों के बीच शिक्षा का काम कर रहे जुगतराम दवे के गोद लिए गांव वेडछी में नयी खुली पाठशाला में शिक्षक के रूप में जुड़ गए।  सूरत से 60 किमी पूर्व स्थित वेडछी गाँव में उन दिनों न बिजली थी और न ही पक्की सड़क। इन 65 वर्षो में वेडछी इलाके में गाँधी प्रेरित नयी तालीम की वजह से डॉक्टर, इंजिनियर, शिक्षक, सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं की जमात तैयार हो गई है।

विनोबा भावे की भूदान पदयात्रा जब गुजरात से गुजरने वाली थी तब नारायणभाई उसकी तैयारी में लग गए। 1954-55 के दौरान नारायणभाई ने गुजरात में 12,000 किमी पदयात्रा की और गांव – गांव भूदान के लिए आम सभा की। भूदान के प्रचार के लिए उन्होंने एक समाचार सेवा शुरू की जिसके द्वारा वे हर रोज विनोबा के भाषण और भूमि दान सम्बंधित प्रेस विज्ञप्ति गुजरात के सभी प्रमुख अख़बारों को भेजते थे। ये समाचार इतने रोचक होते थे कि इनको संकलित कर आसानी से एक सामयिक निकाला जा सकता था। ऐसा सामयिक “भूमिपुत्र” के नाम से निकाला गया जिसके नारायणभाई आदि सम्पादक बने। आगे चल कर “भूमिपुत्र” ने आपातकाल के दौरान अखबारों की आजादी के लिए मुहीम चलाई।

भूदान यज्ञ के अनुभवों पर नारायणभाई ने “माँ धरती ने खोले” (मां धरती की गोद में) शीर्षक से अपनी पहली पुस्तक लिखी। आगे चल कर नारायणभाई ने साहित्य के क्षेत्र में बहुत ख्याति प्राप्त की और पुरस्कार पाए। 1969 में गांधी शताब्दी वर्ष के दौरान गुजराती में “संत सेवता सुकृत वाधे” नामक पुस्तक के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का प्रथम पुरस्कार मिला। उनकी चार खंड में प्रकाशित महात्मा गाँधी की जीवनी “ मारू जीवन एज मारी वाणी” को ज्ञानपीठ का मूर्ती देवी अवार्ड मिला।

लेकिन नारायणभाई केवल एक साहित्यकार के रूप में ही नहीं जाने जाते थे। विनोबा द्वारा स्थापित और जयप्रकाश नारायण जिसके अध्यक्ष थे ऐसी अखिल भारतीय शांति सेना के नारायणभाई महामंत्री रहे।  शांति सेना में उन्होंने देश भर के हजारों स्वयं सेवक भर्ती किए और उन्हें प्रशिक्षित किया. शांति सेना का मुख्य काम था देश में सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाना और जहां कहीं कौमी दंगे फट निकले वहां शांति की स्थापना करना। 1960 और 1992 के बीच शांति सेना ने देश के कई हिस्सों में दंगों को रोकने का काम किया। शांति और सद्भावना के प्रसार के लिए उन्हें यूनेस्को को शांति पुरस्कार भी मिला। 1985 में नारायण भाई को वोर रेसिस्टेर्स इंटरनेशनल का अध्यक्ष चुना गया।

बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम के मित्र के नाते दुनिया भर में जनमत संग्रह करने के लिए कलकत्ता से दिल्ली शांति यात्रा के आयोजन के लिए उन्हें बांग्लादेश सरकार ने मुक्ति संग्राम मित्र पुरस्कार दिया।

जयप्रकाश नारायण की मृत्यु के बाद नारायण भाई ने वेडछी में संपूर्ण क्रांति विद्यालय की स्थापना की जहां देश के अलग अलग हिस्सों में चल रहे छोटे बड़े जन आंदोलनों में सक्रीय युवाओं को अहिंसक प्रतिकार और  सत्याग्रह संगठित करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। 1982 में स्थापित इस विद्यालय में अब तक कई हजार युवकों को प्रशिक्षित किया गया है।

गुजरात में सन 2002 में हुए जन संहार से नारायणभाई बहुत ज्यादा दुखी हुए और इसे न रोक पाने की अपनी असफलता के प्रायश्चित के रूप में उन्होंने गुजरात में गाँधी कथा करने का निर्धार किया। पिछले दस साल में नारायण भाई ने गुजरात के हर जिलों में गाँधी कथा कई बार की। गुजरात के बाहर, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, ओडिशा, तमिल नाडू,केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में वे कथा कर चुके हैं। हैदराबाद में वे जनवरी के मध्य में कथा करने वाले थे कि उसके एक महीने पहले वे मानसिक आघात के शिकार हो गए और ढाई महीने अस्पताल में मूर्छित और अर्ध मूर्छावस्था में रहने के बाद उनका 15 मार्च की प्रातः देहावसान हो गया। उनकी याद में गुजरात में जगह जगह शोक सभा का आयोजन हुआ।

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