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अफगानिस्तान में तालिबानी राज, पाकिस्तान में भी धड़कनें तेज

“अमेरिका और तालिबान के बीच वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका खास थी।” अफगानिस्तान में किसी राजनीतिक...
अफगानिस्तान में तालिबानी राज, पाकिस्तान में भी धड़कनें तेज

“अमेरिका और तालिबान के बीच वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका खास थी।”

अफगानिस्तान में किसी राजनीतिक समझौते के बिना अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने इस देश को अहम मोड़ पर ला दिया है। मई में अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी शुरू होने के साथ ही हालात बिगड़ने लगे थे। जिस तेजी से तालिबान ने देश पर कब्जा किया, उससे अफगान नेशनल डिफेंस ऐंड सिक्युरिटी फोर्सेज (एएनडीएसएफ) की अक्षमता जाहिर होती है।

अमेरिका और तालिबान के बीच वार्ता में पाकिस्तान की भूमिका खास थी। उसकी कोशिश रही कि काबुल में सत्ता परिवर्तन शांतिपूर्ण हो। तालिबान को बातचीत की मेज पर लाने में उसकी भूमिका को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी माना। लेकिन शांति समझौते के बिना अमेरिका की वापसी से तालिबान पर दबाव खत्म हो गया है। इससे अभी तक जो हासिल हुआ, उसे भी खो देने का डर है।

अफगान संकट से पाकिस्तान के सर्वाधिक प्रभावित होने के आसार हैं। यह संकट भले विदेश नीति का मुद्दा हो, यह घरेलू मुद्दा भी कम नहीं। दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। आने वाले समय में अफगानिस्तान में हालात और बिगड़े तो पाकिस्तान में भी अस्थिरता की लहरें पैदा हो सकती हैं। पहले से समस्याग्रस्त सीमाई इलाकों में अफगान युद्ध का और बुरा असर होगा।

इस साल मई से पाकिस्तान में आतंकी घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांत के सीमाई इलाकों में दो महीने में ही 167 आतंकी हमले हुए। सीमा की बाड़बंदी से समस्या कुछ कम जरूर हुई, लेकिन घुसपैठ को पूरी तरह रोकना नामुमकिन है। अफगान संकट लंबा चला तो शरणार्थी भी बढ़ेंगे जो इस्लामाबाद के लिए आर्थिक और सुरक्षा की चुनौती पैदा करेंगे। पाकिस्तान पहले से मौजूद शरणार्थियों की वापसी की मांग करता रहा है। सीमा पर 20-30 लाख और शरणार्थी जमा हुए तो उन्हें रोक पाना मुश्किल होगा।

तालिबान की वापसी से तहरीक तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे घरेलू आतंकी संगठन फिर सिर उठा सकते हैं। अल कायदा जैसे दूसरे आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल भी सक्रिय हो सकते है। पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती पहले से ज्यादा मजबूत टीटीपी है। अफगानिस्तान में इस संगठन के छह हजार से ज्यादा लड़ाके हैं। पहले टीटीपी का एकमात्र लक्ष्य पाकिस्तान में शरीयत कानून लागू करना था, उसकी गतिविधियां अलगाववादी नहीं थीं। लेकिन हाल ही में सीएनएन के साथ इंटरव्यू में टीटीपी के चीफ नूर वली महसूद ने साफ कहा कि उनका संगठन “पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के खिलाफ युद्ध” जारी रखेगा। महसूद ने सीमाई इलाकों को कब्जे में लेकर उन्हें स्वतंत्र करने की भी बात कही। दरअसल यह सीमा की दोनों तरफ मौजूद उन ताकतों का समर्थन हासिल करने की कवायद है जो डूरंड रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानतीं। महसूद को अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया है और संयुक्त राष्ट्र ने भी प्रतिबंध लगा रखे हैं। इसके बावजूद सीएनएन पर उसका इंटरव्यू बदलते अंतरराष्ट्रीय नजरिए को दिखाता है। आने वाले दिनों में पाकिस्तान को टीटीपी के ऐसे और प्रमोशन का सामना करना पड़ सकता है।

(लेखिका सेंटर फॉर एरोस्पेस ऐंड सिक्युरिटी स्टडीज, इस्लामाबाद में सीनियर रिसर्च फेलो हैं। ट्विटर @NoorSitara)

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