जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने के भारत सरकार के फैसले के बाद पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक हलचल तेज है। इस बीच अमेरिका ने जम्मू कश्मीर से भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 हटाए के फैसले पर अपनी बात रखी। अमेरिका ने कहा है कि भारत ने अनुच्छेद-370 हटाए जाने के फैसले से पहले उन्हें इसकी जानकारी या कोई सलाह नहीं ली थी।
ब्यूरो ऑफ साउथ एंड सेंट्रल एशियन अफेयर्स ऑफ द यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने ट्विटर पर पोस्ट किया, "प्रेस रिपोर्टिंग के विपरीत, भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति को रद्द करने से पहले अमेरिकी सरकार से परामर्श नहीं ली ना ही कोई जानकारी दी।"
दरअसल, कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने माइक पोम्पिओ को साफ तौर पर इस मसले पर सूचित किया था जब दोनों पिछले हफ्ते बैंकॉक में मिले थे।
इससे पहले मंगलवार को अमेरिका ने कहा था कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद भारत ने हमें जानकारी दी है। अमेरिका ने साथ ही कहा कि भारत ने इसे अपना आंतरिक मामला बताया है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मोर्गन ओर्टागस ने एक बयान में कुछ कश्मीरी नेताओं को हिरासत में लिए जाने की खबरों पर चिंता व्यक्त की और व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान और प्रभावित लोगों से वार्ता करने का आग्रह किया।
अमेरिका ने फिर की शांति की अपील
पाकिस्तान के भारत के साथ व्यापारिक और राजनयिक संबंध खत्म करने के कुछ घंटों बाद ही अमेरिका ने इसपर बयान दिया है। अमेरिका के विभागीय अधिकारी ने कहा है कि भारत के नए कानून और जम्मू-कश्मीर के शासन पर उसकी लगातार नजर बनी हुई है। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने बताया कि, 'जम्मू और कश्मीर की नई क्षेत्रीय स्थिति और शासन के बारे में अमेरिका भारत के कानून पर लगातार नजर बनाए हुए है। हम इन घटनाक्रमों के व्यापक प्रभाव को ध्यान में रख रहे हैं।'
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि वे सभी पक्षों से नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने की अपील करते हैं। वे भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर और अन्य मुद्दों पर सीधी बातचीत का समर्थन करते हैं। अमेरिकी राज्य विभाग ने कहा कि अमेरिका जम्मू और कश्मीर की मौजूदा स्थिति और शासन के बारे में बारीकी से नजर रख रहा है।
'जम्मू-कश्मीर के निवासियों पर जारी प्रतिबंधों की रिपोर्ट से चिंतित'
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा, “हम जम्मू-कश्मीर के निवासियों पर जारी प्रतिबंधों की रिपोर्ट से चिंतित हैं। हम व्यक्तिगत अधिकारों, कानूनी प्रक्रियाओं के अनुपालन और प्रभावित लोगों के साथ समावेशी संवाद का आग्रह करते हैं।”