जस्टिस अनवारूल हक की अध्यक्षता वाले बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आइसीटी-बीडी) के न्यायाधीशों के तीन सदस्यीय पैनल ने इस फैसले की घोषणा की। इनमें से दो आरोपी तो फैसले के वक्त मौजूद थे, जबकि छह अन्य फरार हैं। अभियोजन ने सभी आठ आरोपियों पर सामूहिक हत्या, अपहरण, उत्पीड़न और लूट के आरोप लगाए थे।
अभियोजन पक्ष के वकीलों ने कहा कि छह दोषी युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना के कुख्यात अल बद्र सहायक बल के सदस्य थे और उत्तरी जमालपुर जिले में उन्होंने कहर बरपाया था। दो अन्य पाकिस्तान के बंगाली सैन्य समूह राजाकर से थे। यह समूह भी मुक्ति संग्राम के दौरान गठित किया गया था।
यह फैसला ऐसे समय आया है, जब देश में हाल ही में एक के बाद एक इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा आतंकी हमले किए जा चुके हैं और देशभर में इन हमलों के कारण तनाव पसरा हुआ है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इन हमलों के पीछे जमात का हाथ होने के संकेत दिए थे।
बांग्लादेश में 1971 के युद्ध अपराधों के मामले में अब तक चार दोषियों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के 2008 के चुनावी वादे के अनुरूप इस मामले में दोषियों पर मुकदमे की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
ढाका कैफे के हमलावर का करीबी कॉलेज शिक्षक गिरफ्तार : ढाका के कैफे पर आतंकी हमला करने वाले आतंकियों में से एक के करीबी बताए जा रहे एक कॉलेज शिक्षक को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कहा कि पियार अली स्कूल एवं कॉलेज के एक शिक्षक मिलन हुसैन को शनिवार रात को अशुलिया से गिरफ्तार किया गया है। वह गुलशन कैफे पर हमला बोलने वाले शफीकउल इस्लाम उज्जल का करीबी था। बीडीन्यूज ने पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया कि मिलन इससे पहले अशुलिया के मडबार मेमोरियल स्कूल में काम करता था। उसने उज्जल को स्कूल में शिक्षक के रूप में नौकरी दिलवाने में मदद की थी। मिलन को अदालत के समक्ष पेश किया गया, जिसने पूछताछ के लिए उसे पांच दिन की हिरासत में भेज दिया।
बोगरा के मदरसे का छात्रा उज्जल उन पांच आतंकियों में से एक था, जिनकी तस्वीरें इस्लामिक स्टेट ने छापी थीं। इस्लामिक स्टेट ने ही एक जुलाई को ढाका में किए हमले की जिम्मेदारी ली थी। इस हमले में एक भारतीय और दो पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 20 बंधक मारे गए थे। उज्जल के परिवार ने कहा था कि उसने हमले से छह माह पहले घर छोड़ दिया था। उज्जल ने उन्हें बताया था कि वह तबलीग जमात के चिल्ला में जाएगा। यह व्याख्यानों को सुनने के लिए और लोगों को नमाज के लिए बुलाने के लिए एक मस्जिद से दूसरी मस्जिद तक की जाने वाली 40 दिन की रस्म है।
एजेंसी