आतंकी फंडिंग रोकने, दुनियाभर की वित्तीय अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के लिए गठित अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि अगर वह इस संबंध में मान्य अंतरराष्ट्रीय नियमों को लागू नहीं करता है तो उसे अक्टूबर, 2019 में प्रतिबंधित किया जा सकता है।
एफएटीएफ ने कहा है कि यह चिंतित करने वाली बात है कि पाकिस्तान एक जनवरी और फिर एक मई वाला टारगेट पूरा नहीं कर पाया है। एफएटीएफ ने अपने एक बयान में कहा, ‘एफएटीएफ ने पाकिस्तान से आग्रह किया है कि वह अक्टूबर 2019 तक अपनी कार्ययोजना को तेजी से पूरा करे, नहीं तो उसके खिलाफ अगला कदम उठाया जाएगा।
फिलहाल एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान
पाकिस्तान को जून, 2018 में एफएटीएफ ने निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में रखा था। पिछले दो दिनों से अमेरिका में चल रही बैठक में इस एजेंसी ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में ही रखने का फैसला किया है। वैसे पाकिस्तान में सरकार और मीडिया इसे एक बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर प्रचारित कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि पाकिस्तान अभी भी खतरे से बाहर नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय संस्था है एफएटीएफ
एफएटीएफ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसकी स्थापना जी-7 देशों की पहल पर 1989 में की गई थी। संस्था का मुख्यालय पेरिस में है, जो दुनियाभर में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए नीतियां बनाती है। साल 2001 में इसने अपनी नीतियों में चरमपंथ के वित्तपोषण को भी शामिल किया था।
पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में शामिल करना चाहता था भारत
एफएटीएफ का सदस्य देश भारत चाहता था कि पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में शामिल किया जाए। भारत का पक्ष था कि पाकिस्तान वित्तीय अपराधों का मुकाबला करने में अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में विफल रहा है। लेकिन बताया जा रहा है कि इस बार चीन, मलेशिया, तुर्की की मदद से पाकिस्तान ने खुद को इससे बचा लिया। अगर पाकिस्तान एफएटीएफ के अगले और अंतिम लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाता है तो उसे ब्लैकलिस्ट में शामिल कर दिया जाएगा।
मलेशिया के प्रधानमंत्री से इमरान मांगी थी ये मदद
कुछ दिन पहले ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद से आग्रह किया था कि वह एफएटीएफ का सदस्य होने के नाते पाकिस्तान को निगरानी सूची से बाहर आने में मदद करे। मोहम्मद लगातार इमरान खान को मदद देने की बात करते रहे हैं। तुर्की की मीडिया में भी ये खबरें आ रही हैं कि उनकी सरकार ने एफएटीएफ में पाकिस्तान की मदद की है। इन देशों की कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान इस एजेंसी की निगरानी सूची में बना रहेगा जो उसके लिए एक बड़ी मुसीबत है। इसकी वजह से दुनिया के वित्तीय संस्थानों के बीच उसकी नकारात्मक छवि बनी रहेगी।
एफएटीएफ की निगरानी सूची से ऐसे बाहर आ सकता है पाक
निगरानी सूची से बाहर आने के लिए पाकिस्तान को 36 सदस्यीय एफएटीएफ में 15 देशों का समर्थन चाहिए। अब इस एजेंसी की अगली बैठक अक्टूबर में होगी। तब फिर पाकिस्तान द्वारा आतंकी फंडिंग या संदेहास्पद वित्तीय लेन-देन रोकने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा होगी।
इस हफ्ते हुई बैठक में क्या हुआ
इस हफ्ते की बैठक में भी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देशों ने पाकिस्तान में जारी कई आतंकी संगठनों की वित्तीय गतिविधियों पर चिंता जताई। खास तौर पर जिस तरह अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित हाफिज सईद और मसूद अजहर की गतिविधियां जारी हैं, उस पर आपत्ति जताई गई।
पाक एफएटीएफ की तरफ से दिए गए 25 में से केवल 2 से 3 मानकों को ही कर पाया है पूरा
एफएटीएफ की तरफ से पिछले वर्ष पाकिस्तान को 25 मानक दिए गए थे जो उसे निगरानी सूची से बाहर आने के लिए अनिवार्य थे। लेकिन अभी तक पाकिस्तान इसमें से दो-तीन मानकों को ही पूरा कर पाया है। यही वजह है कि पाक प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी तक एफएटीएफ की काली सूची में आने की संभावना के प्रति देश को आगाह कर चुके हैं। कुरैशी ने यहां तक कहा था कि इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 10 अरब डॉलर का झटका लगेगा।