वर्ष 2009 में प्रतिबंधित माओवादी पार्टी का सदस्य होने के आरोप में गिरफ्तार किए गए कोबाड गांधी को तिहाड़ जेल में अनशन करने पर मजबूर होना पड़ा। इसकी जानकारी उन्होंने जेल से एक चिट्ठी में दी है। 68 वर्षीय कोबाड गांधी ने आरोप लगाया है कि तमाम बीमारियों के बावजूद उन्हें बार-बार एक वार्ड से दूसरे वार्ड में डाला जा रहा है। वह कई बार जेल प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं लेकिन उनका उत्पीड़न बंद नहीं हुआ। आखिकार गत श्ानिवार को उन्हें भूख हड़ताल शुरू करनी पड़ी।
पत्र में कोबाड गांधी ने लिखा है कि ह्रदय रोग, किडनी की समस्या, गठिया, स्लिप डिस्क, पीठ दर्द जैसी कई बीमारियों की वजह से बार-बार जगह बदलना उनके लिए बेहद पीड़ादायक है। पिछले 9 महीने में उन्हें 3 बार वार्ड बदलना पड़ा। दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्ष 2012 में तिहाड़ जेल प्रशासन को वरिष्ठ नागरिकों का विशेष ख्याल रखने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद उन्हें जेल में वरिष्ठ और बीमार नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है।
इस बीच, मीडिया में कोबाड गांधी के उत्पीडन की खबर आने के बाद तिहाड़ प्रशासन हरकत में आया है। जानकारी मिली है कि बुधवार को तिहाड़ प्रशासन कोबाड गांधी को वरिष्ठ और बीमार नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाएं देने को तैयार हो गया है। वापस उन्हें उनके पुराने वार्ड में ले जाया गया है। जेल अधिकारियों ने बार-बार उनका वार्ड नहीं बदलने का भरोसा भी दिलाया है।
दून स्कूल से माओवादी विचारक तक
मुंबई के एक रईस पारसी परिवार में पैदा हुए कोबाड गांधी की शुरुआती शिक्षा दून स्कूल और मुंबई के जेवियर्स कॉलेज से हुई। इसके बाद वह चार्टर एकाउंटेंसी की पढ़ाई करने लंदन चले गए। लंदन में ही वह मार्क्सवादी विचारधारा के करीब आए। सत्तर के दशक में भारत लौटने के बाद उन्होंने देश के विभिन्न इलाकों में आदिवासियों और गरीब जनता के साथ काम करना शुरू किया। दिल्ली में गिरफ्तारी के बाद वर्ष 2011 में उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाई थी कि उनके साथ राजनीतिक बंदी की तरह बर्ताव किया जाए न कि दोष सिद्ध हो चुके अपराधी की तरह।
20 से ज्यादा मुकदमे
वर्ष 2009 में कोबाड गांधी को दिल्ली के भीकाजी कामा प्लेस से गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस समय भी वह अपनी किडनी का इलाज करा रहे थे। उन्हें माओवादी विचारक माना जाता है लेकिन अभी तक उन पर राज्य के खिलाफ हिंसा फैसला के आरोप साबित नहीं हुए हैं। देश भर में उनके खिलाफ करीब 20 मुकदमे चल रहे हैं।