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आलोक मेहता

चर्चाः चाहे कोई हमें जंगली कहे। आलोक मेहता

चर्चाः चाहे कोई हमें जंगली कहे। आलोक मेहता

हम हिंदुस्तानी का जवाब नहीं। दुनिया के किसी मुल्क और उसके प्रदेश या राजधानी का नेता अपनी प्यारी जनता और व्यवस्‍था को ‘जंगली’ नहीं बताता। लेकिन हाल के वर्षों में हमारे ‘सत्यवादी’ नेताओं ने पर्दाफाश का ठेका लेकर कहना शुरू कर दिया है- ‘दुनियावालों सुन लो- देख लो- यहां है जंगल राज।’
चर्चाः भ्रष्ट अवसरवादियों से छुटकारा जरूरी। आलोक मेहता

चर्चाः भ्रष्ट अवसरवादियों से छुटकारा जरूरी। आलोक मेहता

कांग्रेस हो अथवा भाजपा या कोई अन्य दल, जातिगत समीकरण अथवा आपराधिक दबदबे से चुनावों को प्रभावित करने वाले लोगों को मजबूरी में जोड़े रखना देर-सबेर घातक ही साबित होता है। ताजा प्रमाण छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के विद्रोही अजीत जोगी परिवार का विद्रोह और नई पार्टी बनाने की घोषणा है।
चर्चाः मथुरा में राष्ट्रद्रोह का आतंक। आलोक मेहता

चर्चाः मथुरा में राष्ट्रद्रोह का आतंक। आलोक मेहता

यह छत्तीसगढ़-झारखंड-आंध्र जैसे प्रदेशों के घने जंगलों वाला आदिवासी क्षेत्र नहीं है। यह जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्र नहीं है, जहां आतंकवादियों की घुसपैठ हो सकती है। यह तो राजधानी दिल्ली से डेढ़ घंटे में पहुंच सकने वाली ऐतिहासिक सांस्कृतिक मथुरा नगरी है, जहां लगभग दो वर्षों से भारतीय संविधान के तहत बने राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री को हटाने और अपनी करेंसी का विद्रोही अभियान चलाने वाले सिरफिरे गिरोह ने दो सौ एकड़ से अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर रखा था।
चर्चाः सस्ते सौदे में सीट संसद की। आलोक मेहता

चर्चाः सस्ते सौदे में सीट संसद की। आलोक मेहता

सौदागर सैकड़ों साल पहले सिल्क रूट से चीन, अमेरिका, यूरोप तक पहुंच जाते थे। तब यात्रा महीनों चलती थी और वाहन सीमित थे। अब तो गोल्डन, डायमंड रूट भी बन गए हैं। ये रूट व्यापार, हथियार के लिए ही नहीं राजनीति में भी कुछ सौदागरों के ‌लिए मुनाफे वाले हो चुके हैं। एक समय था, जबकि भैंरोंसिंह शेखावत जैसे नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए पत्नी के हाथ की सोने की चूड़ियां तक बेचनी पड़ती थी और कुछ सौ रुपयों का इंतजाम होता था। अब तो आलम यह है कि कुछ सौदागरों को सरकारी खजाने से एक सौ करोड़ सांसद के नाते अपने पेशे या संस्‍थान के लिए हर महीने 30 करोड़ आने के भरोसे के कारण चुनाव में 25 से 40 करोड़ रुपये लगाना भी सस्ता सौदा लगता है।
चर्चाः पद के पाप का हिसाब-किताब । आलोक मेहता

चर्चाः पद के पाप का हिसाब-किताब । आलोक मेहता

सत्ताधारी सफलता के पुण्य का बखान जोर-शोर से करते हैं लेकिन पद के पाप कर्मों का हिसाब-किताब होने पर जांच, सबूत, कानून, न्याय और अंतिम फैसले का बहाना बनाने लगते हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के वरिष्ठ मंत्री एकनाथ खडसे ऐसा ही बहाना बनाकर मंत्री पद पर बने रहने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।
चर्चाः असुरक्षित क्यों हैं सुरक्षा बल | आलोक मेहता

चर्चाः असुरक्षित क्यों हैं सुरक्षा बल | आलोक मेहता

केंद्रीय गृह मंत्रालय निरंतर दावा करता है कि जम्मू-कश्मीर सीमावर्ती क्षेत्र तथा नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा व्यवस्‍था पहले से अधिक मजबूत हो गई है। लेकिन विभिन्न इलाकों में सुरक्षा बलों पर हमलों में जवानों के मारे जाने की घटनाएं बढ़ना ऐसे दावों पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं।
चर्चाः नेहरू के बिना अंबेडकर-पटेल कैसे | आलोक मेहता

चर्चाः नेहरू के बिना अंबेडकर-पटेल कैसे | आलोक मेहता

महाराणा प्रताप को नमन करते समय अकबर के मुकाबले बहादुरी का ज्ञान किसी को दिया जा सकता है? इसी तरह पं. जवाहरलाल नेहरू के पहले प्रधानमंत्री बनने की जानकारी दिए बना संविधान निर्माता समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर और सरदार वल्लभ भाई पटेल का स्मरण किया जा सकेगा?
चर्चाः पत्थर का सिंहासन, न्याय के आंसू | आलोक मेहता

चर्चाः पत्थर का सिंहासन, न्याय के आंसू | आलोक मेहता

देश-दुनिया को न्याय दिलाने वाले भारतीय न्यायाधीशों की कोई यूनियन नहीं होती। वे नारे नहीं लगा सकते। विरोध में प्रदर्शन नहीं कर सकते। स्वयं बनाई आचार संहिता के तहत अधिकांश न्यायाधीश भव्य पार्टियों से भी बचते रहते हैं। निजी समारोह में भी कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करते। विधि संस्‍थानों अथवा प्रतिष्ठित संस्‍थानों को छोड़कर सभाओं को संबोधित करने नहीं जाते। केवल सत्य निष्‍ठा और निष्पक्ष न्याय उनका मूल मंत्र और लक्ष्य होता है। कानूनी ग्रंथों के अलावा अदालत में प्रस्तुत प्रकरणों की मोटी फाइलें दिन-रात पढ़ते और फैसले लिखते हैं।
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