सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) का बकाया सरकारी खजाने में अभी तक जमा न करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को जमकर लताड़ा है। अदालत ने यह कहते हुए सरकार की भी खिंचाई की है कि उसने अदालत के फैसले का दुरुपयोग किया है। जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुआई वाली तीन जजों की पीठ ने सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) से चार लाख करोड़ रुपये की मांग क्यों की गई। एजीआर की विशाल बकाया राशि आगामी 20 साल के दौरान धीरे-धीरे चुकाने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को अनुमति देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसने भविष्य में 20 साल का समय देखा है।
सरकार ने क्या कहा
दूरसंचार विभाग की ओर से मेहता ने अदालत में कहा कि केंद्र सरकार ने इस मसले का गहराई से अध्ययन किया है और उसने राहत देने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि कंपनियों के लिए एक बार में इतनी बड़ी बकाया राशि अदा करना मुश्किल है। अगर अदालत इसकी अनुमति नहीं देती है तो टेलीकॉम सेक्टर, नेटवर्क और आखिर उपभोक्ताओं पर बुरा असर पड़ेगा।
कंपनियों को देना होगा एफिडेविट
टेलीकॉम कंपनियों को एफिडेविट दाखिल करके बताना होगा कि बकाया राशि कैसे चुकाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने 18 जून को इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय की है। वैधानिक बकाए की अदायगी में विफलता पर अदालत ने पिछली सुनवाई में टेलीकॉम कंपनियों के साथ दूरसंचार विभाग की जमकर खिंचाई की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भारती एयरटेलकी ओर से पेश होकर अदालत में कहा कि कंपनी ने अपने खुद के आकलन के अनुसार बकाए एजीआर का पूरा भुगतान कर दिया है। बाकी बकाये के बारे में कंपनी पहले सरकार के साथ पुष्टि करेगी और उसके बाद चुकाएगी। भारती एयरटेल ने फरवरी में कहा था कि उसने एजीआर के बकाए के ताैर पर 18,004 करोड़ रुपये दूरसंचार विभाग को अदा किए। इस तरह वह अदालत के आदेश का पालन कर रही है। वोडाफोन आइडिया की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि कंपनी पर ब्याज, पेनाल्टी जोड़कर कुल 53,000 करोड़ रुपये का एजीआर बकाया है। अभी कंपनी के पास कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं हैं।