मुफ्ती सलीम नूरी से मैनचेस्टर से मौलाना असद मसूद ने दो साल पहले सवाल किया था कि जब इस्लाम में औरत और मर्द को बराबर का हक है तो महिला तलाक क्यों नहीं दे सकती। इसी मसले पर कानपुर के फहीम रजा ने फिर सवाल किया था कि क्या औरत तलाक का फैसला ले सकती है और अगर शौहर अख्तियार दे दे तो वो तलाक देने की हकदार है या नहीं। इस पर मुफ्ती सलीम नूरी का जवाब था कि फिकही जबान में इसको तफवीजे़ तलाक कहते हैं। इसकी कुछ खास शर्तें रखी हैं जिसका उल्लेख फिकही किताबों में मौजूद है
जिस औरत को तफवीजे तलाक का ये अधिकार दिया जाए उसके बारे में पहले ये यकीन कर लिया जाए कि वह इसका इस्तेमाल जायज तरीके से कर पाएगी या नहीं। महिला के अभिभावक को अगर ये खतरा हो कि हमारी बेटी का शौहर हमारी बेटी के ऊपर जुल्म करेगा या वे किसी गलत आचरण का शिकार हो जाएगा, जरूरत पड़ने पर हमारी बेटी को तलाक नहीं देगा और उसके अधिकारों की पूर्ति भी नहीं करेगा तो ऐसी सूरत में इस समस्या के समाधान के लिए शरीयत में तफवीजे़ तलाक का प्रावधान रखा गया है।
इस मामले में एक जरूरी पहलू दृष्टिगत जरूर रखना चाहिए कि जब भी तफवीजे़ तलाक की नौबत आए तो किसी अच्छे मुफ्ती या आलिमेदीन से उसका मजमून बनवा लें क्योंकि इसके जो शब्द हैं वो निर्धारित हैं और जो इसकी शर्तें हैं वे भी निर्धारित, भाषा भी निर्धारित है जिसमें जरा सी गड़बड़ी होने से तफवीजे़ तलाक़ के मसले में व्यवधान पैदा हो जाता है।
देवबंद से जुड़े जमीतुल उलमा के जिला सदर मुफ्ती मोहम्मद मियां कासमी ने भी तफवीजे़ तलाक पर सहमति जताई है। उनका कहना है कि शरियत में इसकी इजाजत है। अगर शौहर अपनी बीवी को तलाक लेने की इजाजत दे दे तो शरअन जायज है। लिहाजा औरत हजबे इजाजत अपने ऊपर तलाक दे सकती है।