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चर्चाः चुनाव से पहले चिंगारी | आलोक मेहता

पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव में अभी छह महीने से अधिक का समय है। लेकिन राजनीतिक पार्टियां जल्दी में हैं। समस्या, विकास, वायदों की चर्चा देर-सबेर होगी। राजनीतिक माहौल को गर्माने के लिए सांप्रदायिक चिंगारी डाली जा रही है।
चर्चाः चुनाव से पहले चिंगारी | आलोक मेहता

कभी कश्मीर में हिंदुओं के पुनर्वास के साथ उनके विस्‍थापन और भय की बातों को उछाला जाता है तो कभी उत्तर प्रदेश के गांव-कस्बे में भय से कुछ हिंदू परिवारों के पलायन के आरोपों को जोर-शोर से उछाला जा रहा है। मथुरा में एक अपराधी गिरोह और पुलिस के बीच टकराव से हुई हिंसा को जातीय रंग देकर दीवारों को गंदा किया जा रहा है। पंजाब में भ्रष्टाचार और मादक पदार्थों से बड़े पैमाने पर समाज को हो रहे नुकसान के मुद्दे के जवाब में एक बार फिर 1984 के सिख विरोधी दंगे और नरसंहार के कुछ मामलों को उछाला जा रहा है। तीन साल पहले अण्‍णा आंदोलन के दौरान श्रीमान अरविंद केजरीवाल लोकपाल विधेयक के प्रारूप के बहाने कांग्रेसी मंत्रियों-नेताओं के साथ घंटों उठने-बैठने में गौरवान्वित महसूस करते थे और विधानसभा में अल्पमत में रहने पर कांग्रेस का समर्थन लेकर कुछ हफ्ते सत्ता में रहने में तकलीफ महसूस नहीं करते थे, उन्हें अब 1984 के दंगों के कांग्रेसी पाप याद आ रहे हैं। आम आदमी पार्टी को पंजाब में कुछ महीनों में अपने लिए अच्छी राजनीतिक फसल की उम्मीद दिख रही है। उसके पास पंजाब में अपने नाम-काम का कोई रिकार्ड बताने के ‌लिए नहीं है। उसे केवल अकाली-भाजपा-कांग्रेस की गड़बड़ियां, विफलता और दंगों के आरोप सुनाने हैं। दिल्ली की तरह उसे पंजाब में भी चमत्कारी सफलता के साथ सत्ता पाने के लिए हर हथकंडे अपनाने हैं। दिल्ली के सफाई कर्मचारियों, जनता के लिए पानी-बिजली और सुविधाओं पर ध्यान दिए जाने के बजाय पंजाब के मतदाताओं को लुभाने के ‌लिए किसी सड़क, पुल के पंजाबी नामकरण को महान सेवा की तरह प्रस्तुत करने के लिए करोड़ों रुपयों के विज्ञापन छपवाए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस उ.प्र. में अल्पसंख्यकों को अपने साथ जोड़ने के लिए भाजपा के हिंदुत्ववादी अजेंडे को उछाल रही हैं। 

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