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धन लक्ष्मी के साथ सुख शांति

दीप सज गए। गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती की आराधना के लिए संपूर्ण भारत में धूमधाम होती रहेगी। धन तेरस और दीपावली के उत्सव भारतीय संस्कृति में संपूर्ण समाज के कल्याण, आर्थिक उन्नति एवं सुख-शांति की अवधारणा से जुड़े हुए हैं। समय के साथ रौनक बदली है।
धन लक्ष्मी के साथ सुख शांति

पूजा-पाठ और पटाखों के साथ बाजार का महत्व निरंतर बढ़ता गया है। खरीदी-बिक्री का ऐसा माहौल 50 वर्ष पहले देश में नहीं दिखता था। अब तो सोना-चांदी, हीरे-मोती के गहनों, आलीशान कारों, भव्य मकानों, इलेक्ट्रानिक सामान से लेकर निम्न आय वर्ग के लिए सिक्कों, चम्मच, थाली-कटोरी तक के लिए बाजार भर गए हैं। सरकार से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के संस्‍थान ने स्वयं सिक्कों की खरीदी के इंतजाम किए हैं। गणेश-लक्ष्मी की मिट्टी की बनी मूर्तियों के साथ चांदी या उसकी पालिश वाली मूर्तियां भी नई पैमाने पर बिकी हैं। नेता, अफसर, कर्मचारी, व्यापारी चाहे-अनचाहे दीपावली के बहाने छोटे या बड़े महंगे उपहार लेने-देने में व्यस्त हो गए। इस उत्सव पर चीन में बने सामान की खरीदी-बिक्री के विरोध एवं भारत-पाकिस्तान सीमा पर गोलाबारी से कहीं-कहीं अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दर्शन भी हो रहे हैं। दुनिया भर में ऐसे राष्ट्रीय सामाजिक पर्व पर युद्ध विराम की परंपरा रही है। वर्तमान दौर लगता है कि पटाखों के प्रदूषण की तरह समृद्धि की रोशनी की उम्मीद के साथ धुएं से खतरों, चुनौतियों का अहसास भी करा रहा है। सारी चकाचौंध और शक्ति संपन्न होने के बावजूद भारत भूमि के ‘राम राज्य’ में अब भी करोड़ों लोग पानी, दाल-रोटी, छत, कलम और दवाई की न्यूनतम सुविधाओं से वंचित हैं। उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रतीकात्मक ही सही अच्छी पहल की है कि सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन पाने वाले लगभग डेढ़ करोड़ बच्चों को थाली-कटोरी या ग्लास देने का ऐलान कर दिया। उ.प्र. ही नहीं हर राज्य सरकार को इस पहल के साथ यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे गरीब बच्चों को पौष्टिक आहार मिल सके। लक्ष्मी पूजा से पहले आयुर्वेद चिकित्सा क्षेत्र के प्राचीनतम देव धन्वंतरी के नाम के साथ केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेदिक दिवस की घोषणा कर दी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसे धार्मिक उत्सव तक सीमित न रखकर आगामी बजट में आयुर्वेद क्लिनिक एवं औषधियों की व्यवस्‍था के लिए केंद्र सरकार दस हजार करोड़ के बजट का प्रावधान करे। आखिरकार, भारतीय संस्कृति में हर उपासना स्‍थल के साथ पाठशाला, औषधालय होता था और मंदिर के प्रसाद का असली लक्ष्य उस क्षेत्र में रहने वाले साधनहीन लोगों के लिए कुछ भोजन उपलब्‍ध कराना था। इसलिए संस्कृति और परंपरा को आदर्श मानने वाले हर भारतीय को दीपावली के पावन पर्व पर संपूर्ण समाज के लिए सुख-शांति और समृद्धि में हर संभव योगदान का संकल्प भी लेना चाहिए। आउटलुक के पाठकों को दीपावली के पावन पर्व की अनेकानेक मंगल कामनाएं।

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