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अंग्रेजी के ‌लिए सर्जिकल आपरेशन जरूरी

अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, चाइनीज, जर्मन जैसी हर भाषा के अच्छे ज्ञान का सदैव स्वागत होना चाहिए। लेकिन भारत जैसे देश में अंग्रेजी की अनिवार्यता राजनीतिक मजबूरियों और ब्रिटिश विरासत में मिले बाबुई तंत्र के कारण 70 वर्षों में समाप्त नहीं हो सकी।
अंग्रेजी के ‌लिए सर्जिकल आपरेशन जरूरी

इसी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या उससे जुड़ी संस्‍थाओं के कुछ कट्टरपंथी अभियानों पर असहमतियों के बावजूद संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्‍थान संस्‍थान द्वारा अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने संबंधी सिफारिश पर सरकार को गंभीरता से विचार कर दृढ़ता के साथ निर्णय लागू कर दिया जाना चाहिए। इंदिरा गांधी यदि दृढ़ राजनीतिक शक्ति के साथ अमेरिका के कड़े सामरिक विरोध के बावजूद पाकिस्तान की गुलामी से बांग्लादेश को आजाद करा सकती हैं, अटल ‌बिहारी वाजपेयी दुनिया के दबावों की परवाह किए बिना बड़ा परमाणु परीक्षण कर सकते हैं। सारी आर्थिक कठिनाइयों के बीच आज भारत महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका, चीन, रूस के बराबर खड़ा होने की स्थिति में आ सकता है, तो चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी, दक्षिण कोरिया की तर्ज पर अंग्रेजी की शिक्षा की सुविधाएं जारी रखते हुए हिंदी तथा विभिन्न प्रदेशों में भारतीय भाषाओं की शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं कर सकता है? वर्षों पहले संसद और सरकार ने त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का फैसला किया था, लेकिन वह आज तक ठीक से लागू नहीं हो सका। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के लिए गठबंधन की मजबूरियां थीं। वैसे तब भी उनका निर्णय संभवतः देर-सबेर सभी स्वीकार कर लेते। लेकिन इस समय केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्पष्ट बहुमत मिला हुआ है। पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर हुए सर्जिकल ऑपरेशन को संपूर्ण भारत का समर्थन मिला। अंग्रेजी की अनिवार्यता पर विराम के एक सर्जिकल आपरेशन में हिंदीभाषी ही नहीं विभिन्न राज्यों के तमिल, तेलुगु, मलयालम, असमी, कश्मीरी, मराठी, गुजराती जैसे भारतीय भाषाओं को मातृभाषा मानने वाले भारतीय कई पीढ़ियों तक गौरवान्वित महसूस करेंगे। शिक्षा संस्कृति संस्‍थान ने मानव संसाधन मंत्रालय को अपनी सिफारिश भेजी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर को जीवन भर हिंदी तथा गुजराती-मराठी पर गौरव रहा है और दोनों ने इन दोनों भाषाओं में लेखन भी किया है। फिर प्रतिपक्ष का कौन नेता भारतीय भाषाओं का विरोध कर अपने लिए राजनीतिक गड्ढा खोदने की कोशिश करेगा? इस एक फैसले से शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार की नई संभावनाएं भी पैदा हो जाएंगी। सीमा पार से अधिक जरूरी है अपने देश के हर कोने में जय भारत और भारतीय भाषाओं की जयकार की।

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