सत्तर साल बाद ब्रिटेन की शाही गद्दी पर ब्रिटेन में 6 मई 2023 को नए उत्तराधिकारी की ताजपोशी हुई। बेशक, यह महज औपचारिक है, लेकिन वैभवशाली शानो-शौकत और ठाठ-बाट के लिए मशहूर ब्रिटेन ने फिर एक बार वही तड़क-भड़क पेश की। जाहिर है, इस समारोह को देखने वालों में ज्यादातर ने 70 साल पहले हुए पुराने जश्न की सिर्फ कहानियां ही सुनी थीं। नए किंग, चार्ल्स तृतीय भी अपनी मां की ताजपोशी के वक्त महज चार साल के थे। हालांकि क्वीन एलिजाबेथ की ताजपोशी के वक्त सड़कों पर उमड़े लोग और दुनिया भर से आए मेहमान इस बार के मुकाबले ज्यादा थे लेकिन इस बार दुनिया भर में इस आयोजन को टीवी स्क्रीन पर देखने वालों की संख्या पिछली बार की तुलना में कई गुना ज्यादा थी। किंग चार्ल्स के साथ क्वीन कैमिला पार्कर की भी ताजपोशी हुई। ब्रिटेन की राजशाही परंपरा और रिवाज के अनुसार किंग की पत्नी को क्वीन का दर्जा मिल जाता है लेकिन अगर क्वीन को गद्दी मिलेगी तो उनके पति को किंग नहीं कहा जाएगा बल्कि वे प्रिंस या ड्यूक ही रहेंगे। क्वीन एलिजाबेथ के पति फिलिप, प्रिंस फिलिप ही कहे जाते रहे।
अब ताजपोशी हो चुकी है और ब्रिटेन को नया राजा भी मिल चुका है, सम्राट की कोई व्यक्तिगत पहचान नहीं होगी, न उनका पासपोर्ट होगा न ड्राइविंग लाइससेंस और न ही वे अब सार्वजनिक तौर पर अपनी राय रख सकेंगे। तो, क्या आने वाले दिनों में किंग चार्ल्स के लिए सब कुछ वैसा ही सामान्य रहेगा जैसा अब तक रहा है। वे पर्यावरणवादी, कई वैश्विक मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रखने वाले रहे हैं और कई अवसरों पर तो विवादास्पद भी। राजकुमार अब बतौर राजा कैसे साबित होंगे यह सवाल उठने लगा है। ब्रिटिश इतिहास में उत्तराधिकारी के रूप में सबसे लंबे समय तक राजगद्दी के सेवा देने वाले शख्स हैं किंग चार्ल्स। बतौर उत्तराधिकारी 70 साल लंबी उनकी यात्रा ने उन्हें सिंहासन के लिए अब तक का सबसे अधिक तैयार सम्राट बनाया है।
इन वर्षों में ब्रिटेन के 15 प्रधानमंत्री और अमेरिका के 14 राष्ट्रपति समेत दुनिया के कई नेताओं की पीढ़ियां आती-जाती रही हैं। वे पहले महाराजा हैं जिनकी शिक्षा दीक्षा राज परिवार से बाहर हुई है। विश्वविद्यालय की डिग्री हासिल करने वाले भी वे पहले व्यक्ति हैं और ऐसी शख्सियत भी जो मीडिया की लगातार बढ़ती चकाचौंध में शाही व्यवस्था के प्रति सम्मान भी फीका पड़ते देख और महसूस कर रहे हैं। जाहिर है, उनकी सबसे बड़ी चुनौती राजशाही की अहमियत को बरकरार रखने की ही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि इक्कीसवीं सदी का लगभग एक चौथाई समय बीत जाने के बाद और तकनीक के जरिए हर रोज बदलते इस दौर में क्या वाकई ब्रिटेन जैसे संपन्न राष्ट्र को राजशाही की जरूरत भी है?
दरअसल ब्रिटेन में संसदीय राजतंत्र है, यानी यहां राजा भी है और संसद भी। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक और मजबूत संस्थान हैं। आधिकारिक तौर पर किंग ही ब्रिटेन के राष्ट्र प्रमुख हैं और प्रधानमंत्री उनके प्रतिनिधि। लेकिन राजगद्दी की शक्तियां प्रतीकात्मक और औपचारिक हैं। ऐसे में ब्रिटेन के किंग और क्वीन को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना होता है। महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद प्रिंस चार्ल्स, तुरंत ही किंग नियुक्त हो गए थे लेकिन उनकी औपचारिक ताजपोशी अब हुई है। किंग के पास सबसे अहम काम आम चुनाव के बाद जीतने वाली पार्टी को नई सरकार बनाने के लिए औपचारिक आमंत्रण देता होता है।
किंग चाहें तो किसी कानून को बनाने से मना कर सकते हैं। प्रधानमंत्री हर बुधवार को पैलेस जाकर कागजात पर उनके हस्ताक्षर लेते हैं। हालांकि आखिरी बार 1708 में ऐसा हुआ था जब राजगद्दी ने कोई कानून पास करने से मना किया हो, यानी संसद ताकतवर संस्था है। इसके अलावा, ब्रिटेन के राजा कॉमनवेल्थ देशों के समूह के प्रमुख हैं और साथ ही 14 कॉमवेल्थ देशों के राष्ट्र प्रमुख भी। किंग चार्ल्स तृतीय ऐसे वक्त गद्दी पर बैठे हैं जब दुनिया भर में राजशाही परंपराओं के खिलाफ आवाज बुलंद हो रही है, जिसका असर ब्रिटेन में ताजपोशी के दौरान भी देखने को मिला जब कुछ युवकों ने “नॉट माय किंग” की तख्तियां दिखाईं और नारे लगाए। इसके पहले नवंबर में भी यॉर्कशायर में एक कार्यक्रम के दौरान किंग चार्ल्स और क्वीन कैमिला पर “गॉड सेव द किंग” गाने के दौरान एक युवक ने अंडे फेंके थे और कहा था कि ये देश गुलामों के खून पर बना है।
किंग चार्ल्स तृतीय जिन कॉमनवेल्थ देशों के राष्ट्रप्रमुख हैं उनमें से भी कई देश अब गणतंत्र स्थापित करना चाहते हैं। एक तरफ चार्ल्स की ताजपोशी का शाही आयोजन हो रहा था तो दूसरी तरफ जमैका अपने लिए गणतंत्र की तारीख तय कर रहा था। ऑस्ट्रेलिया और बरबूडा पहले ही अपनी मंशा जता चुके हैं। इन सबको साथ लेकर चलना और अपनी अहमियत साबित करना ब्रिटेन के नए राजा के लिए बड़ी चुनौती होगी। साथ ही यूनाइटेड किंगडम ऑफ ब्रिटेन ऐंड नॉर्दर्न आयरलैंड का एक हिस्सा स्कॉटलैंड काफी अरसे से दोबारा जनमत संग्रह कराकर अलग देश बनने की कवायद में जुटा है। अलग स्कॉटलैंड की मांग रखने वाले पाकिस्तानी मूल के युवा नेता हमजा युसूफ को स्कॉटलैंड ने कुछ समय पहले ही अपना नया नेता चुना है। हालांकि जानकार बताते हैं कि भले ही हमजा अलग राष्ट्र की मांग करें लेकिन वो राष्ट्रप्रमुख के तौर पर किंग की बादशाहत को शायद ही चुनौती दें। फिर भी उनकी नीयत पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
साल 2021 में महारानी की प्लैटिनम जुबली के मौके पर ब्रिटिश रिसर्च कंपनी यू-गव ने एक सर्वे किया जिसमें 62 फीसदी ब्रिटिश नागरिकों का मानना था कि राजशाही बरकरार रहनी चाहिए, जबकि 22 फीसदी लोगों का कहना था कि राष्ट्रप्रमुख का चुनाव होना चाहिए। इप्सॉस मॉरी नामक संस्था ने भी 2021 में दो सर्वे किए। इन सर्वे में हर पांच में एक शख्स का मानना था कि राजशाही हटाना ब्रिटेन के लिए अच्छा होगा। हालांकि यू-गव ने जब साल 2012 में सर्वे किया था तो राजशाही का समर्थन करने वाले 75 फीसदी थे। 2011 में जहां 59 फीसदी युवा (18 से 24 साल) राजशाही के पक्षधर थे वहीं 2021 में महज 33 फीसदी युवाओं ने इस पर अपनी सहमति दी। महारानी एलिजाबेथ के निधन के बाद कई लोगों ने खुलकर राय रखी और कहा कि वे अब तक राजशाही के समर्थक रहे हैं लेकिन अब लगता है कि वे क्वीन के समर्थक रहे हैं। मतलब साफ है, जो करिश्मा क्वीन एलिजाबेथ का था उसे बरकरार रखना किंग चार्ल्स तृतीय के लिए आसान नहीं होगा। उनके और महारानी के मुकुट में कोहिनूर भी नहीं होगा। दोनों हीरे जड़े मुकुट पहने लेकिन कोहिनूर पहनने से इनकार कर दिया।
पारिवारिक विवाद का साया भी किंग पर रहेगा। प्रिंस हैरी ने अपनी आत्मकथा ‘स्पेयर’ में शाही परिवार से शिकायतों और कड़वाहटों का जिक्र किया है। जैसे, प्रिंस हैरी और उनके बड़े भाई ने पिता को कैमिला से शादी न करने को कहा था। प्रिंस हैरी पिता किंग चार्ल्स की ताजपोशी में अमेरिका से आए लेकिन समारोह में उनकी पत्नी मैगन और बच्चे नहीं शामिल हुए। देखना दिलचस्प होगा कि जिस ताज में कोहिनूर नहीं बहुत से कांटे हैं किंग चार्ल्स तृतीय उससे कैसे पार पाएंगे।