अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश के बाद, कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने नाराजगी जताई है। विपक्ष का कहना है कि भारत को कश्मीर मुद्दे का समाधान खोजने के लिए अमेरिका या किसी अन्य देश के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। साथ में ट्रंप को गंभीरता से मुद्दा समझने की नसीहत भी दी गई।
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने रविवार को एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि भारत को किसी भी देश के हस्तक्षेप के बिना इस चुनौती का सामना करना होगा। शिवसेना (यूबीटी) नेता ने कहा, "कश्मीर मुद्दे का समाधान खोजने के लिए हमें अमेरिका या किसी अन्य देश के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। नियति ने हमें यह जिम्मेदारी दी है और भारत को इस चुनौती के लिए तैयार रहना चाहिए।"
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, "पाकिस्तान एक दुष्ट देश है और उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वह हमेशा भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहता है और आतंकवादियों का समर्थन करता है। यह वही पाकिस्तान है, जहां अमेरिका ने घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारा था... कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि संसद का सत्र बुलाया जाए और प्रधानमंत्री विपक्ष और संसद को पूरी घटना के बारे में बताएं और यह भी बताएं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने किस तरह युद्ध विराम की घोषणा की और अमेरिका किस तरह भारत और पाकिस्तान को समानांतर रखकर बात कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री कहते हैं कि दोनों देश तटस्थ स्थान पर मिलेंगे। क्या इसका मतलब यह है कि शिमला समझौता रद्द हो गया है? अमेरिकी राष्ट्रपति कह रहे हैं कि मैं कश्मीर मामले में मध्यस्थता करूंगा। लेकिन, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हम किसी को भी इसमें हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं देंगे। प्रधानमंत्री और भाजपा को बताना चाहिए कि अमेरिका हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप क्यों कर रहा है।"
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा, "इस ट्वीट पर भी कई सवाल उठेंगे... तो क्या हुआ (भारत-पाकिस्तान समझौते को लेकर), कैसे और क्यों, इस बारे में हमें कोई जानकारी नहीं दी गई है... इसलिए हम आज कोई आलोचना नहीं करेंगे। हम सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि संसद का विशेष सत्र हो और सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए। मैं सभी राजनीतिक दलों से अपील करना चाहता हूं कि जब तक सरकार उन्हें भरोसा न दिला दे कि प्रधानमंत्री भी बैठक में मौजूद रहेंगे, तब तक वे बैठक में शामिल न हों। मुझे पूरा भरोसा है कि अगर आज डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होते तो वे सर्वदलीय बैठक में मौजूद होते और विशेष सत्र भी बुलाया जाता।"
आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा, "हम पीड़ित थे, और हमने यह सुनिश्चित करते हुए सटीक निशाना लगाया कि कोई नागरिक हताहत न हो, और 9 आतंकी स्थलों पर हमला किया। लेकिन हमने अपने लोगों, अधिकारियों को खो दिया। यह दो सेनाओं के बीच का अंतर है - भारत की एक पेशेवर सेना और एक दुष्ट देश पाकिस्तान की सेना। लेकिन, हमारी ब्रीफिंग से पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति ने युद्ध विराम की घोषणा की, जो शिमला समझौते के अनुसार भी सही नहीं है। सरकार ने इस दावे का खंडन करने की कोशिश की और कहा कि ऐसा कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ था। लेकिन, पूरी दुनिया के तथाकथित 'सरपंच' द्वारा किया गया यह प्रयास हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है।"
बीजेडी के उपाध्यक्ष प्रसन्न आचार्य ने कहा, "ट्रंप एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कैसे कर सकते हैं? क्या वह भारत के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति हैं? या वह पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करते हैं? वह एक तीसरा पक्ष हैं। युद्ध विराम की घोषणा करना उनका काम नहीं है। अंतिम निर्णय हमारा है, भारत का है। हमें किसी भी शक्तिशाली देश के दबाव में नहीं झुकना चाहिए, चाहे वह अमेरिका हो या रूस। हम एक स्वतंत्र, गौरवान्वित और सक्षम देश हैं। हमारे सशस्त्र बल बहुत देशभक्त हैं। हमें किसी तीसरे देश से प्रभावित या निर्देशित नहीं होना चाहिए।"
एक्स पर एक पोस्ट में, तिवारी ने कहा, "अमेरिका में किसी को अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को गंभीरता से शिक्षित करने की आवश्यकता है कि कश्मीर बाइबिल में वर्णित 1000 साल पुराना संघर्ष नहीं है। यह 22 अक्टूबर, 1947 को शुरू हुआ - 78 साल पहले जब पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के स्वतंत्र राज्य पर आक्रमण किया था, जिसे बाद में 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा 'पूर्ण' रूप से भारत को सौंप दिया गया था, जिसमें अब तक पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए क्षेत्र शामिल हैं। इस सरल तथ्य को समझना कितना मुश्किल है?"
भारत-पाकिस्तान के बीच गोलीबारी तथा सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए बनी सहमति पर विस्तार से चर्चा करने के लिए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक बुलाई जाने की मांग की है। साथ ही यह भी कहा कि इस पर संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सरकार से पूछा कि क्या नई दिल्ली ने भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के लिए दरवाजे खोले हैं, और क्या पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक चैनल खोले गए हैं। गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शनिवार को चार दिनों तक सीमा पार से ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद तत्काल प्रभाव से जमीन, हवा और समुद्र पर सभी गोलीबारी और सैन्य कार्रवाइयों को रोकने के समझौते के बाद उन्होंने यह सवाल दागे हैं।
एक्स पर एक पोस्ट में जयराम रमेश ने कहा, "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सर्वदलीय बैठक और पहलगाम, ऑपरेशन सिंदूर तथा पहले वाशिंगटन डीसी से और फिर बाद में भारत और पाकिस्तान की सरकारों द्वारा की गई युद्ध विराम की घोषणाओं पर पूर्ण चर्चा के लिए संसद के एक विशेष सत्र की अपनी मांग दोहराती है।"
रमेश ने कहा कि कांग्रेस का मानना है कि अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता के लिए "तटस्थ स्थल" का उल्लेख कई सवाल खड़े करता है।
उन्होंने पूछा, "क्या हमने शिमला समझौते को त्याग दिया है? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाजे खोल दिए हैं? भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यह पूछना चाहेगी कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक चैनल फिर से खोले जा रहे हैं? हमने क्या प्रतिबद्धताएं मांगी थीं और क्या प्राप्त कीं?"
गौरतलब है कि यह बात राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा रविवार को भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता समाप्त होने का स्वागत करने के बाद कही गई है। उन्होंने कहा कि अगर शांति स्थापित नहीं होती तो लाखों लोग मारे जा सकते थे। अमेरिकी राष्ट्रपति दोनों देशों के बीच संभावित परमाणु हमले का संदर्भ दे रहे थे।
ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, "मुझे भारत और पाकिस्तान के मजबूत और अडिग शक्तिशाली नेतृत्व पर बहुत गर्व है, क्योंकि उनके पास यह जानने और समझने की शक्ति, बुद्धि और धैर्य है कि वर्तमान आक्रमण को रोकने का समय आ गया है, जिससे बहुत से लोगों की मृत्यु और विनाश हो सकता था। लाखों अच्छे और निर्दोष लोग मारे जा सकते थे! आपकी विरासत आपके साहसी कार्यों से बहुत बढ़ गई है।"
ट्रम्प इस दावे पर कायम रहे कि अमेरिका ने शांति स्थापित करने में मदद की है और कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए मध्यस्थता की पेशकश की है।
उन्होंने लिखा, "मुझे गर्व है कि अमेरिका आपको इस ऐतिहासिक और वीरतापूर्ण निर्णय तक पहुँचने में मदद करने में सक्षम था। जबकि इस पर चर्चा भी नहीं हुई है, मैं इन दोनों महान राष्ट्रों के साथ व्यापार को काफी हद तक बढ़ाने जा रहा हूँ। इसके अतिरिक्त, मैं आप दोनों के साथ मिलकर यह देखने के लिए काम करूँगा कि क्या "हज़ार साल" के बाद कश्मीर के संबंध में कोई समाधान निकाला जा सकता है। भगवान भारत और पाकिस्तान के नेतृत्व को अच्छी तरह से काम करने के लिए आशीर्वाद दें!!!"
भारत ने बार-बार जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को अस्वीकार किया है तथा स्पष्ट रूप से कहा है कि यह क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है। शनिवार को भारत ने शत्रुता समाप्त करने के समझौते में अमेरिका की भूमिका को भी कमतर आंकते हुए कहा कि दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच सहमति बन गई है।