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Search Result : "अमेरिका वाणिज्य दूतावास"

इस्लाम के खिलाफ नहीं अमेरिका: ओबामा

इस्लाम के खिलाफ नहीं अमेरिका: ओबामा

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अमेरिका की लड़ाई इस्लाम के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लोगों के विरूद्ध है जिन्होंने धर्म को विकृत करने का काम किया है।
अमेरिका में भारतीय की पिटाई

अमेरिका में भारतीय की पिटाई

अमेरिका के मैडिसन शहर में एक पुलिस वाले 57 साल के भारतीय व्यक्ति की इतनी पिटाई की कि उन्हें लकवा मार गया। मामले के उछलने के बाद आरोपी पुलिस अफसर एरिक पार्कर को गिरफ़्तार कर लिया गया है।
'आप' की जीत में ओबामा फैक्टर

'आप' की जीत में ओबामा फैक्टर

भारत में बढ़ रही धा‌र्मिक असहिषुणता से महात्मा गांधी को भी सदमा लगता। ओबामा के इस बयान ने बड़ी संख्या में युवाओं को आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ़ मोड़ा।
भारत की परमाणु परियोजनाओं में निवेश के लिए अमेरिका आशान्वित

भारत की परमाणु परियोजनाओं में निवेश के लिए अमेरिका आशान्वित

अमेरिकी कंपनियों ने भारतीय परमाणु परियोजनाओं में निवेश के संकेत दिए हैं। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षाा उप सलाहकार ने उम्मीद जताई कि भारत मेंहिस्सा लेने में सक्षम होंगी अमेरिकी कंपनियांऔर उनकी चिंताओं का हल जल्द निल आएगा।
आइएस के खिलाफ अमेरिका के साथ अमीरात

आइएस के खिलाफ अमेरिका के साथ अमीरात

संयुक्त अरब अमीरात आने वाले दिनों में इस्लामिक स्टेट (आइएस) के खिलाफ नए सिरे से सामने आ सकता है। वह आइएस विरोधी अमेरिकी अभियान में अपनी हवाई कार्रवाई बहाल कर सकता है।
ओबामा के निशाने पर मोदी!

ओबामा के निशाने पर मोदी!

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने भारत में बढ़ रही धार्मिक कट्टरता पर हमला बोला है। ओबामा का कहना है कि जिस तरह यहां धा‌र्मिक असहिष्णुता में इजाफा हुआ है उसे देखकर महात्मा गांधी को भी सदमा लगता।
ओबामा का भरोसा बढ़ाने वाला दौरा

ओबामा का भरोसा बढ़ाने वाला दौरा

मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ओबामा ने दोनों देशों के बीच बातचीत के तरीके में एक नई विधि जोड़ ‌दी है जिसके कारण अब आपसी विवाद के विषयों पर बातचीत करने में भी कोई हिचक नहीं रही है।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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