सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल का दौर खत्म होने और मल्टीप्लेक्स आने के संक्रमण काल में किसी ने भी गांव-कस्बे में रह रहे लोगों के मनोरंजन के बारे में नहीं सोचा, ओटीटी का दौर आया तो उसने स्टारडम से लेकर दर्शक संख्या तक सारे पैमाने तोड़ डाले
नेशनल कॉन्फ्रेंस के गढ़ में उमर अब्दुल्ला ने मतदाताओं से अपनी इज्जत बचाने की लगाई गुहार
दस साल की एंटी-इन्कंबेंसी और परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे समीकरण साधने के चक्कर में सत्तारूढ़ भाजपा कलह के चक्रव्यूह में फंसी
पार्टी चुनाव दोतरफा होने के आसार से उत्साहित, बाकी सभी वजूद बचाने में मशगूल
उज्जैन में सरेराह दिनदहाड़े हुए बलात्कार पर लोगों का चुप रहना, उसे शूट कर के प्रसारित करना गंभीर सामाजिक बीमारी की ओर इशारा
फिल्मों में मामूली भूमिका पाने के लिए वर्षों कास्टिंग डायरेक्टरों के दफ्तरों के चक्कर लगाने वाले अभिनेता आजकल मुंबई में पहचाने नाम बन गए हैं, उन्हें न सिर्फ फिल्में मिल रही हैं बल्कि छोटी और दमदार भूमिकाओं से उन्होंने अपना अलग दर्शक वर्ग भी बना लिया
फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लगभग सभी कलाकार आज बड़े नाम हो चुके हैं, लेकिन उसके जरिये एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले फैसल मलिक के लिए संघर्ष के दिन कुछ और साल तक जारी रहे।
बचपन में गांव-गांव रुई बेचने से लेकर फिल्मी दुनिया की सबसे बड़ी महफिलों में से एक कान फिल्म फेस्टिवल तक का सफर तय करना अशोक पाठक के लिए आसान नहीं रहा है
दो बार बिहार से मुंबई गए लेकिन काम न मिलने की वजह से लौट आए
मेरा भाई यूपीएससी की तैयारी कर रहा था और मैं भी वही करना चाहता था।
पेरिस में भारत के शानदार प्रदर्शन से दिव्यांग एथलीटों की एक पूरी पीढ़ी को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली
बलात्कार की संस्कृति को हिंदी फिल्मों ने लगातार वैधता दी है और उसे प्रचारित किया है
हर अर्धसत्य में राई बराबर सच्चाई, लेकिन उसके सहारे सच के पहाड़ को छुपाने का खेल
बांग्लादेश का घटनाक्रम दक्षिण एशिया के भीतर शक्ति संतुलन और उसमें अमेरिका की भूमिका के संदर्भ में देखे जाने की जरूरत
शेखपुर गुढ़ा और बेहमई महज पचास किलोमीटर दूर स्थित दो गांव नहीं हैं, बल्कि चार दशक पहले फूलन देवी के साथ हुए अन्याय के दो अलहदा अफसाने हैं
यह राजनीतिक समय है। प्रेम हो या विश्वविद्यालय राजनीति से बाहर आज कुछ नहीं है
प्रसिद्ध विचारक राजमोहन गांधी की किताब अंडरस्टैंडिंग मुस्लिम माइंड बेहद महत्वपूर्ण है
ओटीटी की बदौलत तीसरी श्रेणी के स्टारों का उदय हुआ, जो साधारण भूमिकाओं को भी असाधारण बना देते हैं। ऐसे कलाकार बॉलीवुड की तीसरी दुनिया की नुमाइंदगी करते हैं। इस दुनिया में उनकी प्रतिस्पर्धा किसी स्टार किड से नहीं, बल्कि उनसे होती है जो समान पृष्ठभूमि से आते हैं