संविधान मानवीय विचारों से भरापूरा है। उसमें न्यायोचित अधिकारों का विस्तार किया जा सकता है, मगर उसे बेमानी बनाने, बदल डालने की कोशिशें प्रगतिशील नहीं हो सकतीं
राज्य व्यवस्था की जिम्मेदारी है कि संवैधानिक मूल्यों को सभी भाषा, व्यक्ति, समाज, समुदाय के लोग समान प्रमाण में स्वीकारें और आचरण करें
संविधान के दर्शन और मनुष्यता के दार्शनिक संकट से अपनी बात की शुरुआत करना चाहूंगा। उसके बाद भारत के संविधान को लेकर जो चीजें घट रही हैं, मैं उस पर आऊंगा।
मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों
संविधान को 2024 के संसदीय चुनावों ने राजनीति का केंद्र-बिन्दु बना दिया है।
यह संसद का चुनाव नहीं है, यह संविधान सभा का चुनाव है।
विनेश फोगाट की दुर्भाग्यपूर्ण घटना और अपेक्षा से कम पदकों की आमद ने दिल तोड़ा तो हॉकी की चमत्कारी जीत से उत्साह बढ़ा
बाढ़ में बह गई बस्तियां ही बस्तियां, मौत हौसला फिर भी कम कर न सकी, केरल की भीषण तबाही के बीच जीवन की उम्मीद की कहानी
अवामी लीग के भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन कैसे तख्तापलट तक पहुंच गया
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में अब भारत का कोई हितैषी नहीं बचा, यह सबसे बड़ी दिक्कत , फिलहाल अगले घटनाक्रम का इंतजार है
संविधान पर आधारित पुस्तकें
संविधान लागू होने का यह 75वां वर्ष है। इस मौके पर संग्रहणीय विशेषांक में संविधान से जुड़े तमाम पहलुओं पर ख्यात विशेषज्ञों के लेख हैं। यह संविधान सभा के सदस्यों के प्रति आदर ज्ञापन भी है जिन्होंने ऐसे कालजयी दस्तावेज का निर्माण किया
नृत्य की जादूगर यामिनी का सांवला, शांत, गंभीर व्यक्तित्व अपने में ही खोया हुआ नजर आता था