देश के अल्पसंख्यकों को वे स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं। इसके लिए तरीके अलग-अलग अपनाए जा रहे हैं। निशाने पर उनका धर्म है और हमले लगातार उनकी लगातार धार्मिक संस्थाओं पर हो रहे हैं। खान-पान, रहन सहन, पहनावे पर बहुसंख्यकवाद का आतंकी डंडा बज रहा है। दोषियों के खिलाफ सख्त निर्णायक कार्रवाई की कोई नजीर नहीं दिखाई दे रही। लिहाजा हमलावरों के मंसूबे परवान चढ़े हुए हैं। देश की राजधानी दिल्ली से महज 30-40 किलोमीटर दूर हरियाणा के बल्लभगढ़ में हुई सांप्रदायिक हिंसा की वारदात में जिस तरह से एकतरफा मुसलमानों को निशाने पर लिया गया, उनके घरों में आग लगाई गई, पुलिस की तैनाती के बीच कुल्हाड़ी से 60 वर्षीय हसन मोहम्मद पर हमला किया गया, उससे साफ है कि नफरत का यह चक्र लंबा चलेगा। अल्पसंख्यकों को सबक सिखाने की मानसिकता जोरों पर है।
गुजरात विधानसभा का बजट सत्र बुधवार को समाप्त हो गया लेकिन 2002 के दंगों के जांच आयोग की रिपोर्ट चार महीने पहले जमा किए जाने के बाद भी सदन में नहीं रखी गई।
भारत में भारत की बेटियों (इंडियाज डॉटर्स) पर बनी फिल्म देखना चाहे तो नहीं देख सकते, इस पर प्रतिबंध है। महाराष्ट्र में कोई गौ-मांस से बनी कोई डिश खाना चाहे, वह नहीं खा सकता, उसे बेचना चाहे नहीं बेच सकता-इस पर प्रतिबंध है। केरल या गुजरात में शराब का सेवन करना चाहे नहीं कर सकते, इस पर प्रतिबंध है।
देश में अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की घटनाओं के बीच मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ एक लंबा भाषण दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए एक राष्ट्रीय समारोह में अपने विचार व्यक्त किये।