![चर्चाः खजाने की उदारता और कंजूसी | आलोक मेहता](https://outlookhindi-assets.s3.ap-south-1.amazonaws.com/public/uploads/article/gallery/e40352a50ca6f0b373fa48fb793d1d17.jpg)
चर्चाः खजाने की उदारता और कंजूसी | आलोक मेहता
सरकारी खजाने से कल्याण की उम्मीद सदा रहती है। सत्ताधारी कांग्रेस हो अथवा भाजपा या आम आदमी पार्टी, हर वर्ष बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री जन-हित और सुविधाओं के लिए विभिन्न मदों में उदारतापूर्वक करोड़ों रुपयों का प्रावधान कर देते हैं। लेकिन साल के अंत में बही-खाता खोलने पर पता चलता है कि कई विभागों के लिए रखी गई धनराशि का बड़ा हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ।