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बसपा नोट छापने की मशीन : माया बोलीं, जातिवादी अमित शाह जलते हैं हमसे

बसपा नोट छापने की मशीन : माया बोलीं, जातिवादी अमित शाह जलते हैं हमसे

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने बसपा को ‘नोट छापने की मशीन’ बनाये जाने के भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आरोप को घोर जातिवादी और ईर्ष्यापूर्ण मानसिकता की निशानी करार दिया है। मायावती ने रविवार को पार्टी के उत्तर प्रदेश इकाई के पदाधिकारियों तथा वरिष्ठ नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की बैठक में कहा कि बसपा को नोट छापने वाली मशीन बना दिये जाने का भाजपा का आरोप घोर जातिवादी व ईर्ष्यापूर्ण मानसिकता का सूचक है।
लापरवाही: ऑक्सीजन की जगह दी बेहोशी की गैस, एक बच्चे की मौत, दूसरा गंभीर

लापरवाही: ऑक्सीजन की जगह दी बेहोशी की गैस, एक बच्चे की मौत, दूसरा गंभीर

मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित शासकीय महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय (एमवाईएच) में गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है जिसमें एक बच्चे की मौत हो गई जबकि एक छोटा बच्चा जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है।
शाही दंपति ने बनाया डोसा

शाही दंपति ने बनाया डोसा

ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस विलियम तथा उनकी पत्नी केट मिडलटन ने आज मुंबई के एक रसोईघर में दक्षिण भारतीय लोकप्रिय भोजन डोसा बनाया। और खास बात यह रही कि पहले ही प्रयास में शाही दंपति ने शानदार डोसा बनाया।
हिंसक घटनाओं के बीच पश्चिम बंगाल में 79% और असम में 82% मतदान

हिंसक घटनाओं के बीच पश्चिम बंगाल में 79% और असम में 82% मतदान

पश्चिम बंगाल में पहले चरण के दूसरे दौर और असम चुनाव के दूसरे और आखिरी चरण के लिए आज बंपर वोटिंग के साथ मतदान संपन्न हुआ। असम के 61 विधानसभा क्षेत्रों में आज हुए मतदान में 82 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। जबकि पश्चिम बंगाल में 31 सीटों के लिए 79 प्रतिशत मतदाताओं ने अपना फैसला ईवीएम मशीनों में बंद कर दिया।
युवा पार्टियों के लिए ऑक्सीजन हैं

युवा पार्टियों के लिए ऑक्सीजन हैं

भारत में आजादी के आंदोलन में छात्रों और नौजवानों की अहम भूमिका रही थी। शहीद भगत सिंह, जयप्रकाश नारायण (जेपी) और लोहिया तक उस युवा शक्ति के क्रांतिकारी पक्ष के प्रतीक हैं।
‘राम मंदिर मुद्दा पैसा कमाने की मशीन है’

‘राम मंदिर मुद्दा पैसा कमाने की मशीन है’

मैं अयोध्या के बाराबंकी कस्बे का रहने वाला हूं। मैंने अपने इलाके और उसके आसपास कभी राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर नफरत का माहौल नहीं देखा। इस माहौल की शुरूआत दिल्ली से हुई। सन 1947 में हमारी जमीन बंटी और 1992 में हमारे दिल बंट गए। जिस दिन हमारे दिल बंटे, वह दिन हमारे लिए सबसे बदनसीब दिन था। चुनाव जीतने के चक्कर में हमारी नस्लें बरबाद हो गईं। हैरान हूं कि यह लोग अभी भी चैन से नहीं बैठ रहे हैं। आखिर यह इस मुद्दे को कहां ले जाकर छोड़ना चाहते हैं?
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