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अरुण जेटली पर कीर्ति आजाद ने फोड़ा चिट्ठी बम

अरुण जेटली पर कीर्ति आजाद ने फोड़ा चिट्ठी बम

दिल्‍ली जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के प्रमुख अरुण जेटली अब ललित मोदी और भाजपा सांसद कीर्ति आजाद के निशाने पर हैं। कीर्ति आजाद ने टीवी समाचार चैनलों पर साक्षात्कार देकर जेटली पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने जेटली से डीडीसीए में हुए घोटाला के साथ-साथ दिल्ली में क्रिकेट की दुर्दशा पर भी जवाब मांगा है।
अब कीर्ति आजाद ने अरुण जेटली पर दागे सवाल

अब कीर्ति आजाद ने अरुण जेटली पर दागे सवाल

ललितगेट मामले में भाजपा सांसद कीर्ति आजाद ने 'आस्‍तीन के सांप' वाले बयान के बाद अब वित्‍त मंत्री अरुण जेटली पर ही कई गंभी सवाल उठाए हैं। उधर, ललित मोदी ने ट्विटर पर हमले तेज करते हुए अरुण जेटली के कांग्रेस के लोगों के साथ रिश्‍तों पर निशाना साधा है।
ये दिल मांगे न्याय

ये दिल मांगे न्याय

करगिल की चोटी से 'ये दिल मांगे मोर’ का नारा देने वाले शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा का परिवार आज न्याय के लिए सरकारी तंत्र का चक्कर लगा रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा ने देश की जमीन को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी लेकिन आज उनका परिवार अपनी ही जमीन पाने के लिए भू-माफिया से जूझ रहा है। कैप्टन विक्रम बत्रा के परिवार के संघर्ष में न तो सरकार का सहयोग मिल रहा है और न प्रशासन का। रोचक तथ्य तो यह है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक गुहार लगाने वाले इस परिवार की सुध लेने से भी मध्य प्रदेश सरकार गुरेज कर रही है।
भाजपा ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है-कीर्ति आजाद

भाजपा ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारी है-कीर्ति आजाद

भाजपा सांसद कीर्ति आजाद दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के लिए पार्टी और संगठन के उन नेताओं को जिम्मेवार ठहराते हैं जिन्होंने आम आदमी पार्टी को कमजोर करके आंका और अरविन्द केजरीवाल को भगोड़ा साबित करने की कोशिश की।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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